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गहलोत सरकार ने हेल्थ केयर पर सदन में किए थे कई ऐलान, सामाजिक संगठनों ने दिलाया याद पूछे कई सवाल

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Published : Feb 26, 2022, 2:12 PM IST

chiranjeevi health insurance Scheme
गहलोत सरकार को याद दिलाया गया स्वास्थ्य का अधिकार

गहलोत सरकार ने 2021 के बजट में हेल्थ केयर को लेकर बड़े ऐलान किए थे. स्वास्थ्य का अधिकार कानून उसी में से एक था. साल भर बाद सीएम ने सदन में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर कई बाते कहीं लेकिन उस कानून का जिक्र तक नहीं किया. सामाजिक संगठन अब उसी पर सवाल उठा रहे हैं.

जयपुर. कोरोना काल के बाद आम आदमी को स्वास्थ्य के अधिकार की आवश्यकता ज्यादा महसूस होने लगी है. इसके लिए राजस्थान सरकार ने देश का पहले 'स्वास्थ्य का अधिकार कानून' का मसौदा भी तैयार किया खुद सीएम अशोक गहलोत ने बजट 2021 (CM Gehlot On health care) में भरे सदन में इसका ऐलान किया. उम्मीद थी इस बार उसको लागू कराने की दिशा में कदम बढ़ाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सामाजिक संगठनों ने सरकार की नीयत को कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया है. चिरंजीवी बीमा योजना (chiranjeevi health insurance Scheme) के जरिए प्राइवटाइजेशन को बढ़ावा देने की ओर इशारा किया है.

आम जनता को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के मामले में प्रदेश को गहलोत सरकार हमेशा सुर्खियों में रही . फिर चाहे वो निशुल्क दवा ओर जांच योजना हो या फिर कोरोना काल का मैनेजमेंट . गहलोत सरकार ने दावा किया कि उसने अन्य राज्यों के लिए नजीर पेश की है. अब सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग स्वास्थ्य के अधिकार कानून को लेकर गहलोत सरकार से सवाल कर रहे हैं. इसके तहत कुछ सामाजिक संगठनों ने एक अभियान के जरिए सरकार से कुछ सवाल पूछे हैं और स्वास्थ्य का अधिकार कानून की डिमांड रखी है. अपनी मांगों को लेकर राज्य स्तरीय जन संवाद का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें राजस्थान सरकार की और से आम बजट घोषणाओं में स्वास्थ्य के अधिकार कानून को नज़र अंदाज़ करने पर नाराजगी जताई जा रही है.

गहलोत सरकार को याद दिलाया गया स्वास्थ्य का अधिकार
टैक्स दें और स्वास्थ्य लाभ न पाएं: अभियान से जुड़े डाॅ. नरेंद्र ने कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार मानव के मूल अधिकारों में आता है. बताते हैं कि इस कानून के आने के बाद प्रदेश के हर शख्स को घर से कुछ दूरी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो सकेंगी. टैक्स पेयर्स का दर्द बयां करते हैं. कहते हैं- कोई व्यक्ति बीमार होता है तो वो जो ₹100 खर्च करता है तो उसमें ₹70 उसे अपनी जेब से देना पड़ता है. सरकार महज ₹30 खर्च कर रही है. सरकार ने टैक्स के माध्यम से लोगों से पैसा लिया है तो जब जनता एक बार पहले पैसा दे चुकी है, तो दोबारा आखिर क्यों चुकाए.

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यह इतना खतरनाक है. बहुत से लोग ऐसे हैं जो गरीबी रेखा के नीचे हैं और जो ऊपर हैं वो स्वास्थ्य लाभ के चक्कर में गरीबी रेखा के नीचे आ जाते हैं. स्वास्थ्य के नाम पर लगने वाला पैसा गरीबी बढ़ाने का सबसे बड़ा कारण है इसलिए हमारी मांगे की सरकार सब को निशुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराएं.

कानून के माध्यम से आम आदमी का अधिकार हो कि उसका जो इलाज है वह निशुल्क होगा. डॉ नरेंद्र ने कहा कि हर व्यक्ति को जो चिकित्सा सुविधा मिले वो उसको उसके घर के नजदीक सीमित क्षेत्र के दायरे में और गुणवत्तापूर्ण मिले . यही हम लगातार मांग कर रहे हैं और यह सब संभव है. कठिन नहीं है क्योंकि आज चिकित्सा संसाधनों की काफी बढ़ोतरी हो गई है. हमारे पास डॉक्टरों का स्टाफ है ,नर्स - कंपाउंडर है , लैब टेक्नीशियन की पूर्ण व्यवस्था है , लेकिन सबके बावजूद भी सरकार उसको नहीं कर रही है. वो अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही से बचना चाहती है.

बजट से निराशा हाथ लगी : जन स्वास्थ्य अभियान से जुड़ी छाया कहती है कि सरकार ने अपने घोषणा पत्र में कहा था हम स्वास्थ्य का अधिकार कानून लेकर आएंगे लेकिन अभी तक उसकी घोषणा नहीं की. पिछले बजट भाषण में मुख्यमंत्री ने बोला था कि स्वास्थ्य का अधिकार कानून लाएंगे लेकिन इस बार उस कानून का जिक्र भी नहीं किया. स्वास्थ्य अधिकार कानून बनने की जो प्रक्रिया थी बहुत ज्यादा आगे बढ़ चुकी थी.

जन स्वास्थ्य अभियान की तरफ से हमने एक ड्राफ्ट तैयार करके दिया था और सरकार ने उसके आधार पर अपना एक और ड्राफ्ट तैयार कर लिया था. छाया कहती हैं- हम उम्मीद कर रहे थे कि इस बजट सत्र में सरकार स्वास्थ्य का अधिकार कानून लेकर आएगी , लेकिन वो नहीं लेकर आई है. इसको लेकर हमें काफी निराशा हुई है.

स्वास्थ्य बीमा कंपनियों को लाभ देने का खेल: चिरंजीवी योजना को लेकर छाया कहती हैं- चिरंजीवी योजना एक स्वास्थ्य बीमा योजना है , जिसका अपना एक सीमित दायरा है. उसकी अपनी लिमिट है. पहले वह 5 लाख था अब उसको 10 लाख कर दिया गया है. ये सब कुछ प्राइवेट अस्पतालों पर निर्भर करता है. आज जब हम इस पर आम लोगों से फीडबैक लेते हैं तो पाते हैं कि लोगों से जबरन बीमा कंपनी से पैसा वसूलने के लिए एक अस्पताल से दूसरे साल में भेजा जाता है.

कई जगह तो गलत उपचार सिर्फ इसलिए हुए हैं क्योंकि हॉस्पिटल्स को स्वास्थ्य बीमा का लाभ लेना है. इस तरह के केसेस को देखते हुए हम यह चाहते हैं कि सरकार हर व्यक्ति को सरकारी अस्पताल में ही बेहतर सुविधा उपलब्ध कराए. सरकार ऐसा कर सकती है, जरूरत कानून बनाने की है. अगर आम आदमी के पास उनका स्वास्थ्य का अधिकार कानून होगा तो सरकार की जवाबदेही होगी . हमें निजी अस्पतालों की निर्भरता को कम करना होगा. अगर हम स्वास्थ्य बीमा को बढ़ा रहे हैं मतलब प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा दे रहे हैं .

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क्या है इस कानून में?:इस मसौदे में मरीजों, उनके अटेंडेंट्स और हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स के अधिकारों को परिभाषित किया गया है . इसके साथ ही इस नए कानून में इनकी शिकायतों के समाधान के लिए एक प्रभावी सिस्टम भी तैयार किया गया है .'स्वास्थ्य का अधिकार' सरकारी और प्राइवेट स्वास्थ्य संस्थानों में आम लोगों को कुछ अधिकारों की गारंटी देता है. यह कानून न केवल इन सुविधाओं को ठीक तरह से उपलब्ध कराएगा बल्कि मरीजों और उनके अटेंडेंट्स के अधिकारों को भी सुनिश्चित करेगा .

गोपनीय रहेगा मरीज का हेल्थ रेकॉर्ड: यह बिल मरीज या उसके अटेंडेंट को कुछ बीमारियों के इलाज की लागत जानने का अधिकार प्रदान करता है. इसके साथ ही उन्हें इस बात का भी अधिकार मिलेगा कि वे इलाज से संतुष्ट न होने पर किसी अन्य डॉक्टर से कन्सल्ट करके मरीज को डिस्चार्ज करा सकें. इसके साथ ही बिल में अस्पतालों के लिए मरीज के हेल्थ रिकॉर्ड की गोपनीयता बनाए रखना भी अनिवार्य रखा गया है. इसका उद्देश्य हेल्थ सिस्टम में पारदर्शिता के साथ-साथ मरीजों का सस्ता इलाज सुनिश्चित करना है.

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