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पाताल भुवनेश्वर: यहां स्थित है श्रीगणेश का मस्तक, ब्रह्मकमल से गिरती हैं दिव्य बूंदें

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Published : Aug 22, 2020, 9:11 AM IST

lord Shiva Cave Uttarakhand  Lord Ganesh Cave Pithoragarh
यहां स्थित है श्रीगणेश का मस्तक

पुराणों के अनुसार, पाताल भुवनेश्वर के अलावा कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहां एक साथ चारों धाम के दर्शन होते हों. पाताल भुवनेश्वर गुफा में केदारनाथ, बदरीनाथ और अमरनाथ के दर्शन भी होते हैं. मान्यता है कि गुफा में भगवान गणेश के कटे मस्तक के पिण्डी रूप में दर्शन होते हैं. यही नहीं, ब्रह्मकमल से भगवान गणेश के मस्तक पर दिव्य बूंदें गिरती रहती हैं.

बेरीनाग (उत्तराखंड)/जयपुर : गुफाओं के नाम जेहन में आते ही उनके रहस्यों के बारे में जानने की इच्छा होती है. कई ऐतिहासिक गुफाएं पौराणिक रहस्यों को अपने आप में समेटे हुए हैं. ऐसी ही एक गुफा पिथौरागढ़ की गंगोलीहाट तहसील में स्थित है. मान्यता है कि शिव के प्रकोप से धड़ से अलग हुआ भगवान गणेश का मस्तक यहीं गिरा था. इस बात का उल्लेख पुराणों में विस्तार से मिलता है.

यहां स्थित है श्रीगणेश का मस्तक

किसी आश्चर्य से कम नहीं गुफा

हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं गुफाओं की घाटी से, जिसका सदियों पुराना पौराणिक इतिहास है. समुद्र तल से 1,350 मीटर की ऊंचाई पर पाताल भुवनेश्वर गुफा प्रवेश द्वार से 160 मीटर लंबी और 90 फीट गहरी है. पाताल भुवनेश्वर गुफा में केदारनाथ, बदरीनाथ और अमरनाथ के दर्शन भी होते हैं. इस गुफा का वर्णन स्कन्दपुराण में भी मिलता है.

मान्यताएं व विशेषताएं

पाताल भुवनेश्वर गुफा के अन्दर भगवान गणेश जी का मस्तक है. गणेशजी के जन्म के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव ने क्रोध में गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया था. बाद में माता पार्वतीजी के कहने पर भगवान गणेश को हाथी का मस्तक लगाया गया था. माना जाता है कि जो मस्तक शरीर से अलग किया गया, वो भगवान शिवजी ने पाताल भुवनेश्वर गुफा में रखा.

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गुफा में भगवान गणेश के शिलारूपी सिर के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाले ब्रह्मकमल के रूप की एक चट्टान है. इस ब्रह्मकमल से भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती हैं. मुख्य बूंद आदिगणेश के मुख में गिरती हुई दिखाई देती है. मान्यता है कि यह ब्रह्मकमल भगवान शिव ने ही यहां स्थापित किया था.

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ब्रह्मकमल से गिरती हैं दिव्य बूंदें

पुराणों में वर्णन

पुराणों में लिखा है कि इस गुफा में भगवान शिव स्वयं विराजमान रहते हैं, जिनकी उपासना करने के लिए देवता यहां पहुंचते हैं. द्वापर युग में पांडवों ने यहां चौपड़ खेला तो वहीं त्रेता युग में अयोध्या के राजा ऋतुपर्ण हिरण का पीछा करते हुए इस गुफा में पहुंच गए थे. उन्होंने बाबा भोलेनाथ के साथ ही अन्य देवताओं के साक्षात दर्शन किए थे.

कलियुग में जगद्गुरु शंकराचार्य का 722 ई. के आसपास जब इस गुफा से साक्षत्कार हुआ तो उन्होंने मंदिर के अंदर स्थित शिवलिंग को तांबे से बंद कर दिया था, क्योंकि इस शिवलिंग में इतना तेज था कि कोई भी व्यक्ति इसे नग्न आंखों से नहीं देख सकता है. इसके बाद जाकर कहीं चंद राजाओं ने इस गुफा को खोजा था.

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गुफाओं की घाटी

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कलियुग का अंत

इस गुफा में चारों युगों के प्रतीक रूप में चार पत्थर स्थापित हैं. इनमें से एक पत्थर जिसे कलियुग का प्रतीक माना जाता है वह धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है. यह भी माना जाता है कि जिस दिन यह पत्थर दीवार से टकरा जायेगा, उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा.

पौराणिक इतिहास

पुराणों के अनुसार, पाताल भुवनेश्वर के अलावा कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहां एक साथ चारों धाम के दर्शन होते हों. माना जाता है कि पाताल भुवनेश्वर गुफा के दर्शन करने से चार धाम यात्रा का फल मिलता है. गुफा में चार युगों से जुड़े द्वार भी बने हुए हैं. मान्यता है कि इस गुफा में 33 करोड़ देवी-देवताओं ने अपना निवास स्थान बनाया है. इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं. इसके बारे में मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.

इस गुफा के अंदर केदारनाथ, बदरीनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन होते हैं. तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी चट्टान में नजर आती है. यहां बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं. इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं. इसके बारे में मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.

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दिव्य मंदिर

गुफा के अंदर बनी आकृतियां

गुफा में प्रवेश करते ही नरसिम्हा भगवान के दर्शन होते हैं. कुछ नीचे जाते ही शेषनाग के फनों की तरह उभरी संरचना पत्थरों पर नजर आती हैं. मान्यता है कि धरती इसी पर टिकी है. गुफा के अन्दर बढ़ते हुए छत से गाय के थन की आकृति नजर आती है. यह आकृति कामधेनु गाय का थन माना जाता है. मान्यता है कि देवताओं के समय में इस थन से दुग्ध धारा बहती थी. कलियुग में अब दूध के बदले इससे पानी टपक रहा है.

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इस गुफा के अंदर मुड़ी गर्दन वाला हंस एक कुंड के ऊपर बैठा दिखाई देता है. यह माना जाता है कि शिवजी ने इस कुंड को अपने नागों के पानी पीने के लिये बनाया था. इसकी देखरेख गरुड़ के हाथ में थी, लेकिन जब गरुड़ ने ही इस कुंड से पानी पीने की कोशिश की तो शिवजी ने क्रोध में उसकी गर्दन मोड़ दी थी. ब्रह्मा के इस हंस को शिव ने घायल कर दिया था क्योंकि उसने वहां रखा अमृत कुंड जूठा कर दिया था.

क्या कहते हैं इतिहासकार और पुरातत्व अधिकारी?

इतिहासकार वीडीएस नेगी ने बताया कि पाताल भुवनेश्वर में चूने का पानी गिरता रहता है, जिस कारण वहां कई आकृतियां उभरी हुई हैं. जिसे लोग पौराणिक कथाओं से जोड़कर देखते हैं. किवदंतियों के अनुसार इसी स्थान पर भगवान गणेशजी का कटा हुआ मस्तक रखा गया था. जिसकी लोग पूजा अर्चना करते हैं.

क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी चन्द्र सिंह चौहान का कहना है कि गुफा काफी प्राचीन है. जिसका उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है, गुफा के अंदर कई प्रतिमाएं हैं. जिसको लेकर लोगों में गहरी आस्था है. उन्होंने कहा कि मान्यता के अनुसार इस गुफा में ही भगवान गणेश का कटा हुआ मस्तक रखे जाने की पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. धार्मिक मान्यता के अनुसार जब तक भगवान गणेश के मस्तक पर दूसरा सिर नहीं जोड़ा गया तब तक पाताल भुवनेश्वर गुफा में ही उनका घड़ रखा गया, जिसमें ब्रह्मकमल से दिव्य बूंदें गिरती रहती हैं. इसलिए लोग यहां पूजा-अर्चना भी करते हैं.

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