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Fathers Day 2022 : ऑटिस्टिक बेटे की खातिर छोड़ दी लाखों के पैकेज की मल्टी नेशनल कंपनी की नौकरी, अब और बच्चों को भी दे रहे ट्रेनिंग

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Published : Jun 19, 2022, 6:04 AM IST

Updated : Jun 19, 2022, 9:06 AM IST

Father left job for son with autism disorder
ऑटिज्म बेटे के खातिर छोड़ दी लाखों के पैकेज की मल्टी नेशनल कंपनी की नौकरी, अब और बच्चों को भी दे रहे ट्रेनिंग

जैसे हर बच्चे को मां के प्यार की जरूरत होती है, ऐसे ही पिता का भी बच्चे के लालन-पालन में महत्वूपर्ण स्थान है. पिता के प्यार को सेलिब्रेट करने के लिए हर साल फादर्स डे मनाया जाता है. इस दिन हम आपको मिलवा रहे हैं ऐसे पिता से जिसने अपने बेटे का ख्याल रखने के लिए अपनी लाखों रुपए की प्रतिष्ठित जॉब छोड़ दी. आइए मिलते हैं जयपुर के अनुराग श्रीवास्तव से और जानते हैं उनके बेटे से जुड़ी (Fathers day real story) कहानी.

जयपुर. हमारी जिंदगी में हर एक रिश्ता काफी अहमियत रखता है, लेकिन जीवन में हमारे लिए माता-पिता की सबसे अलग जगह होती है. जिस तरह मां खुद को न्यौछावर कर बच्चों को आगे बढ़ाती है. ठीक उसी तरह एक पिता भी अपनी सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाता है. जो उनके बेटे के उज्जवल भविष्य के लिए जरूरी होती है. पिता के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए जून महीने के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है, जो इस साल 19 जून को यानी आज मनाया जाएगा. इस खास दिन हम आप को मिलाते हैं एक पिता से, जिसने ऑटिज्म डिसऑर्डर से पीड़ित बेटे के लिए लाखों के पैकेज की मल्टी नेशनल कंपनी की जॉब को छोड़ (Father left job for son with autism disorder) दिया.

एक बार लगा सब सबकुछ खत्म कर लेते हैं: यह कहानी जयपुर की एक पॉश सोसायटी में रहने वाले अनुराग श्रीवास्तव की है. पेशे से इंजीनियर और मल्टी नेशनल कंपनी में अच्छे पद पर काम कर रहे अनुराग बताते हैं कि 1997 में उनकी शादी गरिमा श्रीवास्तव से हुई. जनवरी 2000 में बेटे वत्सल का जन्म हुआ. सब कुछ बहुत अच्छे से चल रहा था, लेकिन जैसे ही बेटा वत्सल 4-5 साल का हुआ तो उसमें कुछ ऐसा लगने लगा कि वो सामान्य बच्चों की तरह नही था. डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा कि वत्सल को ऑटिज्म डिसऑर्डर है. उस वक्त मानों पैरों तले जमीन निकल गई, लगा कि अब सब कुछ खत्म हो गया, अब इस जीवन को भी खत्म कर लेते हैं, लेकिन फिर दोस्तों और परिवार वालों ने समझाया और हिम्मत दिलाई.

ऑटिज्म बेटे के खातिर छोड़ दी लाखों के पैकेज की मल्टी नेशनल कंपनी की नौकरी....

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बेटे के खातिर छोड़ दी मल्टी नेशनल कंपनी की जॉब: अनुराग बताते हैं कि बेटे वत्सल को ऑटिज्म होने के चलते पढ़ाई और अपने दूसरे काम करने में भी उसे मुश्किल होती है. शुरआत में तो पत्नी गरिमा ने ही वत्सल को अकेले संभाला. टूरिंग जॉब होने के कारण में कभी दिल्ली, कभी मुंबई, चेन्नई सफर करता रहता. इस बीच कई बार वत्सल की कुछ छोटी मोटी दिक्कतें सामने आने लगीं. जैसे-जैसे वत्सल बड़ा होने लगा प्रॉब्लम और बढ़ने लगीं. फिर एक दिन मन में ख्याल आया कि पैसा नोकरी किस काम का, जब मैं अपने बेटे के साथ उस वक्त नहीं हूं. वो भी उस वक्त जब उसे मेरी सबसे ज्यादा जरूरत है, इसलिए तय किया कि बेटे को अच्छी परवरिश और उसके साथ इस वक्त खड़ा होने के लिए नौकरी छोड़नी है. जब प्रोफेशन के लिहाज से करियर की पीक पर था, उस वक्त नौकरी छोड़ दी.

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बेटे के साथ अन्य ऑटिज्म बच्चों के लिए सेंटर शुरू किया: अनुराग कहते हैं कि बेटे वत्सल को ऑटिज्म की वजह से सामान्य बच्चों का साथ नहीं मिलता. ऐसे में मन में ख्याल आया कि क्यों न हम एक सेंटर शुरू करें, जिसमें ऑटिज्म से पीड़ित दूसरे बच्चों और युवाओं को भी साथ जोड़े ताकि पेरेंट्स के साथ वत्सल को भी दोस्तों की कंपनी मिल जाएगी. अनुराग कहते है कि सेंटर को शुरू किए हुए ज्यादा समय नहीं हुआ, लेकिन अब दूसरे शहर से भी परिजन अपने बच्चों को प्रशिक्षण के लिए यहां भेज रहे हैं. अनुराग ने बताया कि यह कोई एनजीओ नहीं है, बल्कि ऑटिस्टिक बच्चों के परिजन का एक सेल्फ हेल्प ग्रुप है. इसमें जयपुर और कोटा सहित कई अन्य शहरों के परिजन शामिल हैं. ग्यारह वर्षों में सैकड़ों बच्चों को प्रशिक्षित किया गया है.

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अपने फ्लैट में किया शुरू, खुद किराए पर रह रहे हैं: अनुराग ने बताया कि वैशाली कि पॉश सोसायटी के अपने फ्लैट में ही आवासीय प्रशिक्षण केंद्र शुरू किया (Training center for autism kids) है. वह पास ही दूसरे टावर में किराए पर फ्लैट लेकर रहने चले गए. उन्होंने बताया कि जब सोसायटी में ऑटिज्म बच्चों के सेंटर खोलने के नाम पर जब फेल्ट किराए पर लेने जाते तो अलग-अलग बहाना बना कर मना कर देते. फिर एक दिन सोचा कि क्यों न अपना ही फ्लेट सेंटर के नाम पर किराए पर दे और खुद किराए के फ्लैट में शिफ्ट हो जाएं. फिलहाल केंद्र में तीन बच्चे रह रहे हैं. अनुराग कहते है कि हम चाहते हैं कि दो साल में बच्चे इतना सीखें कि वे आत्मनिर्भर हो जाएं.

दोस्त बने मददगार: अनुराग ने बताया कि जब नौकरी छोड़ी तब सब ने कहा कि मेरा यह गलत फैसला है, लेकिन मेरे माता-पिता ने साथ दिया कहा कि यह वक्त बच्चे को समय देने का है, उसको समय दो. हालांकि नौकरी छोड़ने के बाद आर्थिक दिक्कत तो आई लेकिन दोस्त अच्छे हैं, वो हर मुश्किल में साथ खड़े होते हैं. आवासीय प्रशिक्षण केंद्र में जो बच्चे आ रहे हैं, उनकी कुछ फीस ली जाती है, लेकिन, उससे पूरे खर्च नहीं निकल पाता.

क्या होता है ऑटिज्म : ऑटिज्म (स्वलीनता) मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला विकार है. इसके लक्षण जन्म से ही या बाल्यावस्था से नजर आने लगते हैं. जिन बच्चों में यह रोग होता है. उनका विकास अन्य बच्चों की अपेक्षा असामान्य होता है. इससे प्रभावित व्यक्ति सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है.

Last Updated :Jun 19, 2022, 9:06 AM IST
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