आजादी के सुपर हीरो: जोरावर सिंह ने वायसराय पर फेंका था बम, ऐसे अंडरग्राउंड हुए कि खोज नहीं पाए अंग्रेज

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Published : Aug 10, 2022, 6:07 AM IST

Pratap Singh and Zorawar Singh Barhath
आजादी के सुपर हीरो ()

गुलामी की जंजीरों से भारत को आजाद कराने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की वीर गाथाएं हमेशा हमारी प्रेरणा स्त्रोत रही हैं. आजादी के लिए प्राण न्योछावर करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों में भीलवाड़ा के बारहठ परिवार की भूमिका (role of Barhath family in freedom movement) को भुलाया नहीं जा सकता है.

भीलवाड़ा. भारत को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों की ओर से चलाई की मुहिम शौर्य और अमर गाथाओं से भरी हुई है. देश के लिए हंसते-हंसते प्राण न्योछावर करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की बदौलत हम आजाद भारत के सूरज को देख पाए. स्वतंत्रता सेनानियों की शौर्य गाथाओं के बीच भीलवाड़ा के शाहपुरा क्षेत्र के प्रताप सिंह बारहठ (Story of Pratap Singh Barhath) और जोरावर सिंह (Story of Zorawar Singh Barhath) के अमूल्य योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता.

बारहठ परिवार ने देश को आजाद करवाने में प्राण न्योछावर कर दिए. स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ -चढ़कर हिस्सा लेने बारहठ परिवार की हवेली पर बना संग्रहालय आज भी देश के आजादी के आंदोलन की याद ताजा कर रहा है. बारहठ परिवार ने देश के हर आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया.

प्रताप सिंह बारहठ की कहानी

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स्वतंत्रता सेनानी प्रताप सिंह बारहठ केसरी सिंह बारहठ के लड़के थे. उन्होंने भी देश की स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी.उनका जन्म 24 मई 1893 को उदयपुर में कविराज श्यामलदास की हवैली में हुआ. देश की आजादी के आंदोलन में प्रताप सिंह 24 मई 1918 को 25 वर्ष की आयु में ही शहीद हो गए. प्रताप सिंह बारहठ के किस्से आज जो भी लोग सुनते हैं उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है.

लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग पर बम केसः 23 दिसंबर 1912 को केसरी सिंह बारहठ के छोटे भाई जोरावर सिंह बारहठ और केसरी सिंह बारहठ के पुत्र प्रताप सिंह बारहठ दिल्ली के चांदनी चौक स्थित मारवाड़ी कॉलेज की इमारत की छत पर वेष बदलकर (Role of Barhath family of Bhilwara) गए. जहां केसरी सिंह बारहठ के छोटे भाई जोरावर सिंह ने लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंका. हमले में लॉर्ड हार्डिंग गंभीर रूप से घायल हो गया. जबकि उसके एक गार्ड की मौत हो गई. मौके से जोरावर सिंह और उनका भतीजा प्रताप सिंह बारहठ फरार हो गए. पुलिस ने क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए अथक प्रयास किए. प्रताप सिंह बारहठ को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन सबूतों के अभाव में कुछ समय बाद रिहा कर दिया गया था.

जोरावर सिंह बारहठ की कहानी

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स्वतंत्रता आंदोलन (freedom movement) के दौरान उन्हें बरेली जेल में कहीं तरह की यातनाएं दी गई. लेकिन वे कभी भी अग्रजों के सामने झुके नहीं. उन्हें तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने कई तरह के प्रलोभन भी दिए. लेकिन वे अडिग बने रहे. उन्होंने अंग्रेजों के सामने कहा कि "मैं एक मां को हंसाने के लिए हजारों माताओं को नहीं रूला सकता हूं". ऐसे वीर कुंवर प्रताप सिंह अंग्रेजों की यातनाओं से कभी टूटे नहीं. अन्तत उनके प्राण पखेरू उड़ गए. तब अंग्रेजों को यह संदेह हुआ कि बाहर जनता को जब प्रताप की मृत्यु का समाचार मिलेगा तो कहीं आंदोलन न हो जाए. इसे देखते हुए प्रताप सिंह को बरेली जेल के अन्दर ही दफनाया गया. हाल ही में कुछ जागरूक व्यक्तियों के प्रयास से बरेली की जेल (जहां प्रताप का बलिदान हुआ) में शिलालेख लगाया गया है.

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प्रताप सिंह बारहठ ने स्कूली शिक्षा हर्बर्ट हाई स्कूल कोटा व उसके बाद डीएवी हाई स्कूल अजमेर में पूरी की. उसके बाद प्रताप सिंह बारहठ का स्वतंत्रता आंदोलन की तरफ झुकाव होने के कारण उनके पिता केसरी सिंह बारहठ ने उन्हें कम उम्र में जयपुर में "वर्धमान पाठशाला" चलाने वाले अर्जुन लाल सेठी के पास भेज दिया. जिसने गुप्त रूप से क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रशिक्षण दिया. बाद में प्रताप सिंह का परिचय रासबिहारी बोस से हुआ. इसके बाद जब इस स्कूल को इंदौर में स्थानांतरित कर दिया गया, तब ठाकुर केसरी सिंह ने सोचा कि प्रताप सिंह को दिल्ली भेजना अच्छा है. इसके बाद प्रताप सिंह बारहठ को दिल्ली में एक अन्य राष्ट्रवादी मास्टर अमीर चंद के पास भेजा गया.

role of Barhath family in freedom movement
केसरी सिंह प्रताप सिंह और जोरावर सिंह

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2018 में प्रताप सिंह की शहादत के 100 वर्ष पूरे हुएः वर्ष 2018 में प्रताप सिंह की शहादत (Martyrdom of Pratap Singh) के 100 वर्ष पूरे हुए. देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले प्रतापसिंह बारहठ की शहादत के 100 वर्ष पूरे होने पर शाहपुरा से मेवाड़ क्रांति गौरव यात्रा प्रारंभ की थी. गौरव यात्रा पूरे मेवाड़ क्षेत्र में निकली. यात्रा का शाहपुरा में समापन हुआ. उस समय देश के क्रांतिकारीयो के परिवार के लोग यहां पहुंचे उनका भी सम्मान किया था।

प्रताप सिंह की वीरता का बखान करते हुए कवि ने कहा कि...

पुत प्रतापी जरणी जण ज्यों जैडो कुंवर प्रताप ।

टूट गयो पर झुक्यो नहीं , ऐड़ी छोडी छाप ।

धन-धन माणक मायड़ ऐरा जीरा भाग।

कोखा सू आखो कुटुंब तरे ।।

देग्या कुर्बानी खेल्या रै खूनी फाग ।

गण मायड़ ज्यापें गर्व करें ।।

राजस्थान में सबसे कम उम्र में हुए शहीदः शाहपुरा में शहीद प्रताप सिंह बारहठ संस्थान के सचिव कैलाश सिंह जाड़ावत ने कहा कि 1857 की क्रांति के बाद राजस्थान में सबसे छोटी उम्र में शहीद का दर्जा जिसे मिला वह कुंवर प्रताप सिंह बारहठ ही थे. उन्होंने कहा कि सचिंद्र नाथ सान्याल के साथ प्रताप सिंह ने सिंध ,बंगाल व दिल्ली में क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया. प्रताप सिंह अपने काका जोरावर सिंह के साथ दिल्ली के बम कांड में भी साथ थे. बनारस षड्यंत्र (ब्रिटिश राज के खिलाफ 1915 के सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व करने के लिए बड़े गदर आंदोलन का हिस्सा) का नेतृत्व प्रताप सिंह बारहठ ने किया. 1916 में बनारस के षडयंत्र के मामले में प्रताप सिंह को गिरफ्तार किया और उनको 5 वर्ष की सजा सुनाई गई.

Pratap Singh and Zorawar Singh Barhath
संग्रहालय में पगड़ी सुरक्षित

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वीरवर जोरावर सिंह बारहठ - केसरी सिंह बारहठ के छोटे भाई जोरावर सिंह बारहठ (Story of Zorawar Singh Barhath) भी स्वतंत्रता आंदोलन में अपने भाई के साथ कूद पड़े, उनका जन्म भी शाहपुरा के पास देव खेड़ा गांव में 12 सितंबर 1893 को हुआ था. 23 दिसंबर 1912 को जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद की शक्ति के प्रतीक वायसराय लॉर्ड हार्डिंग का भव्य जुलूस दिल्ली की चांदनी चौक में पहुंचा तो जोरावर सिंह बारहठ ने बुर्के से चुपके से बम फेंक दिया. उस समय केसरी सिंह बारहठ के बेटे प्रताप सिंह बारहठ भी उनके साथ थे. वहीं, केसरी सिंह बारहठ के छोटे भाई जोरावर सिंह बारहठ ने दिल्ली में 23 दिसंबर 1912 को बम फेंका था. उसके बाद को 27 वर्ष तक मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में छिपे रहे कभी वह पुलिस की गिरफ्त में नहीं आए. जिसके कारण इनको राजस्थान का चंद्रशेखर आजाद भी कहा जाता है.

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