आजादी के सुपर हीरो: स्वतंत्रता आंदोलन में केसरी सिंह बारहठ का रहा अमूल्य योगदान

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Published : Aug 8, 2022, 7:15 AM IST

Story of Kesari Singh Barahth

देश को आजाद कराने के लिए हजारों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राण न्योछावर किए हैं. इन वीर महापुरुषों की शौर्य गाथाएं आज भी हम सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनी हुई हैं. आजादी के आंदोलन में आगे बढ़कर भाग लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों मे केसरी सिंह बारहठ (Story of Kesari Singh Barahth) का नाम काफी खास है. तमाम स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते हुए बारहठ जेल भी गए, लेकिन वे अंतिम सांस तक देश के लिए लड़ते रहे.

भीलवाड़ा. देश को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद कराने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की वीर गाथाएं आज भी हम सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं. तमाम जुल्म और चुनौतियों का सामना करते हुए आजाद भारत सपना संजोए कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए. आजादी की राह में अपना सब कुछ गंवाकर देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने वाले वीर महापुरुषों की कई कहानियां हम सभी के बीच मौजूद हैं. जिन्हें पढ़ने और सुनने के बाद हमें इस देश पर और फख्र होता है. इन्हीं कहानियों के बीच आज हम आपके लिए भीलवाड़ा के क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ की कहानी (Story of Kesari Singh Barahth) लेकर आए हैं.

जिले के शाहपुरा क्षेत्र के वीर क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ के पूरे परिवार ने देश को आजाद करवाने में प्राण न्योछावर कर दिए. ईटीवी भारत की टीम भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा क्षेत्र में पहुंची. जहां देश के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ -चढ़कर हिस्सा लेने बारहठ परिवार की हवेली पर बना संग्रहालय आज भी देश के आजादी के आंदोलन की याद ताजा कर रहा है. बारहठ परिवार ने देश के हर आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया.

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शक्ति, भक्ति और कुर्बानी की अमर भूमि शाहपुरा में राष्ट्रीय कवि कैलाश मंडेला ने स्वतंत्रता आंदोलन में बारहठ परिवार की वीर गाथा सुनाई तो आजादी आंदोलन की यादें ताजा हो गई. उन्होंने बताया कि केसरी सिंह बारहठ का जन्म 21 नवंबर 1872 को शाहपुरा के पास देवपुरा गांव में हुआ था. उनका निधन 14 अगस्त 1941 को हुआ था. केसरी सिंह बारहठ ने आजादी की लड़ाई लड़ते हुए पहली गिरफ्तारी शाहपुरा से 21 मार्च 1914 को दी थी. तब उन्हें 20 वर्ष का कारावास हुआ था. हजारीबाग जेल में समय बिताया. लेकिन वह 1919 में हजारीबाग जेल से रिहा हुए, उसके बाद भी लगातार स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते रहे.

केसरी सिंह बारहठ का रहा अमूल्य योगदान

कैलाश मंडेला ने बताया कि रासबिहारी बोस ने तो क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ के लिए कहा था कि केसरी सिंह के सारे परिवार ने त्याग का जो उदाहरण पेश किया वह आधुनिक राजस्थान में आदित्य है. उन्होंने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन में शाहपुरा के बारहठ परिवार का अमूल्य योगदान है.

उन्होंने कहा कि शाहपुरा के ठाकुर केसरी सिंह बारहठ का परिवार हिंदुस्तान में उदाहरण बना. केसरी सिंह बारहठ ने अर्जुन लाल सेठी व राशबिहारी गौड़ के साथ मिलकर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया. पूरे परिवार ने बलिदान दिया. इनके स्वतंत्रता आंदोलन की कई महत्वपूर्ण घटनाएं आज भी रोचक हैं.

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इनमें एक प्रमुख घटना उस समय की है जब मेवाड़ के पूर्व महाराणा के वंशज फतेह सिंह को दिल्ली में वायस रॉय ने बुलाया. तब मेवाड़ के पूर्व महाराणा दिल्ली में वायस रॉय से मिलने के लिए ट्रेन से रवाना हो गए. उस दौरान केसरी सिंह को लगा कि महाराणा प्रताप के वंशज यदि अंग्रेजों की सभा में बैठेंगे तो मेवाड़ का ही नहीं बल्कि पूरे देश का अपमान होगा. इस पर केसरी सिंह बारहठ ने एक चेतावनी 'रा चूंगट्या' के नाम से 13 सोरठे लिखे. उन सोरठों को भीलवाड़ा जिले के सरेरी रेलवे स्टेशन पर मेवाड़ महाराणा को दिए. जब मेवाड़ के महाराणा के वंशज दिल्ली पहुंचे तो रेलवे स्टेशन पर उतरने के साथ ही 'चेतावनी रा चूंगट्या' के नाम से लिखे गए 13 सोरठे पढ़े.

उसके बाद वह वापस उदयपुर के लिए रवाना हो गए. महारणा दिल्ली वायस रॉय की सभा में भी नहीं गए. जिसके कारण वायस रॉय के सामने खाली कुर्सी दंभ के साथ मुस्कुरा रही थी. उदयपुर लौटते समय पूर्व महाराणा फतेह सिंह ने कहा कि ने यह चेतावनी रा चूंगट्या सोरठे पहले मिल जाती तो मैं उदयपुर से दिल्ली नहीं आता. स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने के कारण केसरी सिंह बारहठ को गिरफ्तार किया गया और उन्हें हजारीबाग जेल में रखा. वहां उनको काले पानी की सजा भी हुई. कवि कैलाश मंडेला ने केसरी सिंह बारहठ के सम्मान में कविता पाठ की.

उन्होंने कहा कि...

"नरसिंग छो नर पुत केसरी आन -बान को हामी

चेतावा ने भरिया चूंगट्या कलम धणी पथ थामी

ऊंची राखी कवियों मेंवाडी री पाग

हिदवाणी जाने माथ पर धरे" ।।

आजादी के साथ समाज सुधार की दिशा में किया कामः शाहपुरा में बारहठ स्मारक समिति संस्थान के सचिव के कैलाश जाड़ावत ने कहा कि केसरी सिंह बारहठ ने आजादी के साथ ही समाज सुधार में भी काफी काम किया. साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका बहुत योगदान रहा. उन्होंने बताया कि जब वो हजारीबाग जेल में थे, तब वहां के अंग्रेज अफसर की पत्नी को संस्कृत भाषा सिखाई थी. वहीं जेल में अन्य क्रांतिकारियों को दाल के दानों से भारत का नक्शा बनाना सिखाते थे.

पाठ्यक्रम में बारहठ की गाथा शामिल करने की मांगः कैलाश जड़ावत कहते हैं कि 26 जनवरी 2022 को दिल्ली के राजपथ पर भी केसरी सिंह बारहठ के जीवन पर फड़ चित्रकारिता लगाई गई. उन्होंने कहा कि हमारी सरकार से मांग है कि भारत सरकार जो नई शिक्षा नीति ला रही है, उनके पाठ्यक्रम में ठाकुर केसरी सिंह बारहठ की जीवन गाथा शामिल की जाए. राजस्थान के पाठ्यक्रम में तो शामिल है, लेकिन अगर नई शिक्षा नीति के तहत देशभर में केसर सिंह बारहठ की वीर गाथा शामिल हो जाए तो उन अमर स्वतंत्रता सेनानियों को भारत की भावी पीढ़ी याद रख सकेगी. उन्होंने कहा कि आज जितनी भी प्रतियोगी परीक्षा होती है, उसमें बारहठ परिवार के संदर्भ में कुछ प्रश्न जरूर आते हैं.

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