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Pushkar Cattle Fair : 26 अक्टूबर को शुरू होना है पुष्कर पशु मेला, सरकार से नहीं मिली है स्वीकृति

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Published : Oct 5, 2022, 2:10 PM IST

Pushkar Cattle Fair
पुष्कर पशु मेला

अजमेर में 26 अक्टूबर से पुष्कर पशु मेला शुरू होना (Pushkar Cattle Fair ) है. पुष्कर का यह मेला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान रखता है. लेकिन मेले को लेकर सरकार की ओर से अभी स्वीकृति नहीं मिली है.

अजमेर. राजस्थान में सियासी संकट का असर पुष्कर पशु मेले (Pushkar Cattle Fair) पर भी पड़ता दिख रहा है. लंपी के कारण पुष्कर का अंतरराष्ट्रीय पुष्कर पशु मेले के आयोजन की स्वीकृति सरकारी स्तर पर लंबित होती जा रही है. इस कारण पशुपालकों और पर्यटन उद्योग से जुड़े कारोबारियों के साथ-साथ पर्यटक में भी पशोपेश की स्थिति है. जबकि दीपावली के अगले दिन से ही पुष्कर मेले में पशुओं का आना शुरू हो जाता है.

अंतरराष्ट्रीय पटल पर पुष्कर मेला अपनी विशेष पहचान रखता है. सदियों पहले आवागमन के साधन नहीं थे. तब तीर्थ करने लोग पशुओं पर आया करते थे, तो धन के रूप में पशुधन साथ में लाया करते थे. यहां पशुओं की खरीद-फरोख्त बढ़ने लगी और धीरे-धीरे पशुओं की खरीद-फरोख्त पशु मेले के रूप में तब्दील हो गई. वर्तमान में यहां 5 दिन का धार्मिक मेला का आयोजन होता है. 10 दिन पुष्कर मेले का भी आयोजन किया जाता है. तीर्थ यात्री कार्तिक स्नान और जगत पिता ब्रह्मा के दर्शन करने आते हैं और पुष्कर मेले का आनंद लेते हैं. सात समंदर पार से विदेशी पर्यटक भी पुष्कर की आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व से प्रभावित होते हैं.

संयुक्त निदेशक डॉ प्रफुल्ल माथुर

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पर्यटकों को पुष्कर मेले का रहता है इंतजार: पुष्कर मेले में मिट्टी के टीलों पर सजने वाली लोक संस्कृति विदेशी पर्यटकों को काफी आकर्षित करती आई है. यही वजह है कि पुष्कर मेले का देशी और विदेशी पर्यटकों को बेसब्री से इंतजार रहता है. पशुपालक और पशु खरीदने वाले कारोबारी के अलावा बड़ी संख्या में पर्यटन उद्योग से जुड़े कारोबार भी पुष्कर मेले पर निर्भर रहते हैं. लेकिन इस बार पुष्कर पशु मेले के आयोजन की स्वीकृति लंपी के कारण नहीं मिलने से काफी पशोपेश की स्थिति बन गई है. कई राज्यों से पशुपालक और पर्यटक फोन कर पशु मेले के बारे में पूछ रहे है. मगर किसी के पास कोई जवाब नहीं है.

26 अक्टूबर से शुरू होना है मेला: पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ प्रफुल्ल माथुर ने बताया कि मेले का आकर्षण धार्मिक और पशु मेला दोनों ही पर्यटकों के लिए आकर्षित करता है. उन्होंने बताया कि पर्यटन उद्योग भी पूरी तरह से पुष्कर मेले पर निर्भर है. कोरोना की वजह से 2020 में मेला नहीं हो पाया. 2021 में मेले का आयोजन छोटे स्तर पर हुआ था. इस बार लंपी के कारण पशु मेले की स्वीकृति अभी तक नहीं मिल पाई है. डॉ प्रफुल्ल माथुर ने बताया कि मानसून की वापसी हो रही है. ऐसे में लंपी बीमारी का प्रभाव भी कुछ हद तक कम हुआ है.

उन्होंने बताया कि जिला प्रशासन ने सरकार से मांग की है कि मवेशियों को मेले में प्रतिबंधित किया जाए. जबकि ऊंट और घोड़े को मेले में आने की स्वीकृति दी जाए. ताकि पशु मेले के आयोजन से पर्यटन उद्योग के साथ-साथ पशु मालिकों को भी लाभ मिल सके. उन्होंने यह भी बताया कि 26 अक्टूबर से मेला शुरू होगा. लेकिन अभी तक मेले को लेकर स्वीकृति जारी नहीं हुई है. यही कारण है कि विभाग ने अभी तक मेले की कोई तैयारी जमीनी स्तर पर शुरू नहीं की है.

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पुष्कर पशु मेले का गिरता स्तर: पुष्कर पशु मेले में पशुओं की आवक साल दर साल कम होती जा रही है. यह पशुपालन विभाग के लिए भी चिंता का विषय बना है. अंतरराष्ट्रीय पुष्कर पशु की बात करें तो वर्ष 2001 में 21 हजार 418 पशु मेले में आए थे. 2021 में 4 हजार 717 पशु मेले में बिकने के लिए आए. आंकड़े बता रहे हैं कि 20 साल में अंतरराष्ट्रीय पुष्कर पशु मेले में पशुओं की आवक तेजी से गिरी है.

पुष्कर पशु मेले में गोवंश, भैंस वंश, उष्ट वंश, अश्व वंश, भेड़ वंश, भेड़-मेढ़ा, बकरा-बकरी और गधा गधी मेले में बिकने के लिए आते रहे हैं. विगत 2006 में पशु मेला अपने चरम पर था. सर्वाधिक 23 हजार 852 पशु मेले में बिकने के लिए आए थे. आंकड़ों पर गौर करें तो 2013 के बाद से पुष्कर पशु मेले में पशुओं की आवक पर ग्रहण ही लग गया है. पशुओं की आवक लगातार कम होती जा रही है. इस कारण पशु मेला भी सिमट का जा रहा है. बावजूद इसके सरकारों ने पुष्कर मेले को कभी गंभीरता से नहीं लिया. यही वजह है कि पुष्कर स्टेडियम के पीछे लगने वाला पशु मेला अब वहां से 1 किलोमीटर आगे की ओर शिफ्ट हो गया है. अब तक जहां मेला लगा करता था वहां मिट्टी के टिब्बे गायब हो गए.

पशु मेले से आती है खुशहाली: अंतरराष्ट्रीय पुष्कर पशु मेला हमेशा से उत्साह और उमंग के साथ खुशहाली लेकर भी आता है. पशु पालकों को मेले से काफी उम्मीद रहती है. वर्ष भर पशु पालक पशुओं को पाल पोसकर बड़ा करते हैं. पशु पालकों को उम्मीद रहती है कि मेले में उन्हें पशुओं के अच्छे दाम मिल जाएंगे. यही वजह है कि प्रदेश से ही नहीं हरियाणा, पंजाब, गुजरात, मध्यप्रदेश, यूपी, बिहार तक से पशु पालक मेले में आते हैं. वहीं देश के कई राज्यों से पशुओं की खरीदारी के लिए खरीदार आते हैं.

खरीद में नहीं होता तोल-मोल: खरीदार और पशुपालक के बीच में पशुओं को लेकर होने वाली खरीद-फरोख्त में कोई तोल मोल नहीं होता. हर वर्ष पुष्कर मेले में करोड़ों रुपए के पशुओं की खरीद फरोख्त होती है. गत वर्ष मेला छोटे स्तर पर ही भरा था, बावजूद इसके पांच करोड़ रुपए के पशुओं की खरीद-फरोख्त हुई थी. बता दें कि 10 लाख तक के घोड़े और 2 लाख रुपए तक का ऊंट मेले में बिक चुका है. पशुपालन विभाग को पशुओं की खरीद फरोख्त से रेवेन्यू के तौर पर अल्प आय होती है. दरसल सन 1950 से रेवेन्यू की दर नहीं बढ़ाई गई है. लिहाजा मेले में पशु कितना भी महंगा बिके विभाग को 10 रुपए से कम निर्धारित आय ही प्रत्येक पशु पर होती आई है.

स्थानीय लोगों ने उठाई मांग: पुष्कर में लोगों का व्यवसाय पर्यटन पर निर्भर है. स्थानीय लोग भी चाहते हैं कि धार्मिक मेले के साथ पुष्कर के विख्यात पशु मेले का आयोजन शामिल हो. तीर्थ पुरोहित और व्यवसायी पंडित रवि शर्मा ने कहा कि पुष्कर पशु मेला हमेशा से पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देता आया है. दो वर्षो से कोरोना की वजह से पर्यटन उद्योग को इससे झटका लगा था. इस बार स्थानीय कारोबारियों को भी मुनाफे की उम्मीद है. लेकिन मेले की स्वीकृति अभी तक नहीं मिलने से पशोपेश की स्थिति बनी हुई है.

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