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सिंगरौली-सोनभद्र के बिजलीघर और कोयला खदान कर रहे पर्यावरण नियमों की अनदेखी, पर्यावरण सचिव की अध्यक्षता में कमेटी गठित

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Published : Jan 23, 2022, 7:13 PM IST

national green tribunal
एनजीटी

एनजीटी ने केंद्रीय वन और पर्यावरण सचिव की अध्यक्षता में जिस कमेटी का गठन किया है. उसमें केंद्रीय कोयला सचिव, केंद्रीय ऊर्जा सचिव के अलावा उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव भी शामिल होंगे. एनजीटी ने कमेटी को निर्देश दिया कि वो इन प्लांट्स और इंडस्ट्रीज की ओर से फ्लाई ऐश के प्रबंधन और उससे जुड़े मामलों की मानिटरिंग और समन्वय का काम करेंगे.

नई दिल्ली: नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी) ने उत्तरप्रदेश के सोनभद्र और मध्यप्रदेश सिंगरौली के बिजली घरों (पावर प्लांट्स), कोयला खदान और एलुमिनियम स्मेल्टर इंडस्ट्रीज की ओर से पर्यावरण नियमों की अनदेखी करने पर चिंता जताते हुए वायु में गुणवत्ता की सुधार के लिए कई दिशानिर्देश जारी किए हैं. एनजीटी चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है, जो इन प्लांट्स की ओर से फ्लाई ऐश के प्रबंधन की निगरानी करेगा.

एनजीटी ने कहा कि इन प्लांट्स और इंडस्ट्रीज ने फ्लाई ऐश के प्रबंधन पर कोई काम नहीं किया जिसकी वजह से रिहंद जलाशय को काफी नुकसान हुआ है. इससे न केवल वायु और जल प्रदूषण में इजाफा हुआ है. वायु गुणवत्ता के प्रबंधन के लिए इन प्लांट्स और इंडस्ट्रीज ने प्लांट भी स्थापित नहीं किया है, जिसकी वजह से लोगों की मौतें हो रही हैं और पर्यावरण और प्रकृति को काफी नुकसान हो रहा है.

एनजीटी ने केंद्रीय वन और पर्यावरण सचिव की अध्यक्षता में जिस कमेटी का गठन किया है. उसमें केंद्रीय कोयला सचिव, केंद्रीय ऊर्जा सचिव के अलावा उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव भी शामिल होंगे. एनजीटी ने कमेटी को निर्देश दिया कि वो इन प्लांट्स और इंडस्ट्रीज की ओर से फ्लाई ऐश के प्रबंधन और उससे जुड़े मामलों की मानिटरिंग और समन्वय का काम करेंगे.

एनजीटी ने कमेटी को एक महीने के अंदर पहली बैठक कर एक्शन प्लान तैयार करने का निर्देश दिया. कमेटी एक साल तक हर महीने बैठक कर स्थिति की समीक्षा करेगी. इस बैठक में लिए गए प्रस्ताव और फैसले की जानकारी केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड किए जाएंगे.

एनजीटी ने जस्टिस एसवीएस राठौर की अध्यक्षता में एक ओवरसाइट कमेटी का गठन किया था, जिसने पावर प्लांट, कोयला खदानों और दूसरे इंडस्ट्रीज का मुआयना कर एक रिपोर्ट एनजीटी को सौंपी थी. ओवरसाइट कमेटी ने जिन पावर प्लांट पर रिपोर्ट सौंपी थी. उनमें एनटीपीसी शक्ति नगर सोनभद्र, एनटीपीसी रिहंद सुपर थर्मल पावर प्लांट, अनपरा थर्मल पावर प्लांट, अनपरा सी लैंको थर्मल पावर स्टेशन, रेनुसागर थर्मल पावर प्लांट, ओबरा थर्मल पावर स्टेशन शामिल हैं.

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कमेटी ने जिन कोयला खदानों पर रिपोर्ट सौंपी थी. उनमें नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड कोलमाइंस के एनसीएल दुधिचुवा प्रोजेक्ट, सोनभद्र, एनसीएल बीना, एनसीएल कृष्णा शीला प्रोजेक्ट, एनसीएल काकरी प्रोजेक्ट, सोनभद्र, एनसीएल खादिया प्रोजेक्ट. इसके अलावा कमेटी ने हिंडाल्को इंडस्ट्रीज, रेणुकोट, ग्रसिम इंडस्ट्रीज लिमिटेड, रेणुकोट, बिरला कार्बन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड पर भी रिपोर्ट सौंपी थी.

पहले की सुनवाई के दौरान एनजीटी ने इस मामले की जांच के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस राजेश कुमार की अध्यक्षता में एक ओवरसाइट कमेटी का गठन किया था. ओवरसाइट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि फ्लाई ऐश का बांध कई जगह से ओवरफ्लो हो रहे हैं, जिसकी वजह से रिहंद जलाशय का पानी प्रदूषित हो रहा है. फ्लाई ऐश सड़कों पर भी बिखरा पड़ा है, जिसकी वजह से आसपास के लोगों का आना जाना भी मुश्किल हो गया है. ओवरसाइट कमेटी ने एनटीपीसी पर दस करोड़ रुपये की अंतरिम जुर्माना लगाने की अनुशंसा की थी.

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बता दें कि जुलाई 2020 में एनजीटी ने मध्य प्रदेश के रिहंद जलाशय में फ्लाई ऐश की डंपिंग करने पर एनटीपीसी विद्यांचल सुपर थर्मल पावर स्टेशन पर दस करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. याचिका वकील अश्विनी कुमार दुबे ने दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि एनटीपीसी प्लांट में फ्लाई ऐश बांध ओवरफ्लो हो रहा है, जिसकी वजह से रिहंद जलाशय का पानी प्रदूषित हो रहा है. रिहंद जलाशय मध्यप्रदेश के सिंगरौली और यूपी के सोनभद्र जिले में पेयजल का एकमात्र स्रोत है.

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