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रबी सीजन में इस तरीके से करेंगे खेती तो किसान हो जाएंगे मालामाल

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Published : Oct 16, 2021, 10:44 AM IST

Updated : Oct 16, 2021, 11:23 AM IST

रबी सीजन की खेती
रबी सीजन की खेती

किसानों ने रबी सीजन की खेती की तैयारी शुरू कर दी है. फसल बोने से पहले इन बातों का विशेष ख्याल रखें, जिससे बंपर पैदावार हो सकती है. रिपोर्ट पढ़ें.

शहडोल। खरीफ सीजन की खेती लगभग अब समाप्ति की कगार पर है. किसानों ने अब रबी सीजन की खेती की तैयारी शुरू कर दी है. ऐसे में किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या आती है फसल चयन की. जो किसान रबी सीजन की खेती करना चाहते हैं, और गेहूं, चना, मसूर, अलसी जैसे फसलों को अपने खेतों में लगाना चाहते हैं. उनके लिए ये बड़े काम की खबर है. इन छोटी-छोटी बातों का ख्याल रखकर किसान बंपर पैदावार ले सकते हैं. रिपोर्ट पढ़ें.

खेत को ऐसे करें तैयार

कृषि वैज्ञानिक डॉ.बृजकिशोर प्रजापति बताते हैं कि रबी सीजन की तैयारी के लिए किसान सबसे पहले भूमि का अच्छी तरह से चयन कर लें. हो सके तो मिट्टी की जांच भी करा लें. जिससे मिट्टी के पोषक तत्वों का पता लग सके. ध्यान रखें खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो, इसके अलावा खरपतवार को खेत से निकाल दें, और खेत में जो पुराने फसल के डंठल हैं, उन्हें जलाएं नहीं, बल्कि रोटावेटर से खेतों की जुताई करें. उसमें पाटा जरूर लगाएं, जिससे खेत के बड़े बड़े ढेले फूट सकें. पाटा लग जाने से भूमि की नमी जो है वो उड़ेगी नहीं, जिससे फसल के अंकुरण में फायदा होगा.

गोबर की सड़ी खाद जरूर डालें
गोबर की सड़ी खाद जरूर डालें

गोबर की सड़ी खाद जरूर डालें

कृषि वैज्ञानिक डॉ.बृजकिशोर प्रजापति कहते हैं कि जुताई से पहले ध्यान रखें कि अपने खेतों पर 10 से 12 टन सड़ी हुई गोबर खाद मिलाएं. इससे क्या होगा की हमारे फसल की उपज और जो जीवाश्म आदि है वो प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होगा.

कृषि वैज्ञानिक डॉ.बृजकिशोर प्रजापति

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गेहूं की ये किस्म है खास

जिले की जलवायु और यहां के मौसम की स्थिति को देखते हुए कृषि वैज्ञानिक किसानों को सलाह देते हुए कहते हैं कि गेहूं की फसल के लिए जो किस्में हैं, उसमें जेडब्ल्यू 32 11, जेडब्ल्यू 32 88, जेडब्ल्यू 35 82 जिसकी बुवाई कम अवधि और कम पानी में भी कर सकते हैं. जैसे जिन क्षेत्रों में पूसा तेजस एच आई 8759 नाम से आता है, इस किस्म का जो है, 100 से 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से हम बुवाई करेंगे. यह सभी जो गेहूं की किस्में है वह 130 से 145 दिन में पक जाती हैं.

कृषि वैज्ञानिक डॉ.बृजकिशोर प्रजापति

चने के लिए ये किस्में हैं खास

कृषि वैज्ञानिक के मुताबिक, चने की फसल के लिए किस्मों की बात करें तो जेजी 12, जेजी 14, ये ऐसी किस्में हैं जिसमें अधिक तापमान सहने की क्षमता होती है. इसे लेट बुवाई के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
अभी नई किस्मों में जेजी 24 आई हुई है, इसका फायदा यह है कि यह लगभग 2 फीट 60 सेंटीमीटर ऊंचाई का होता है, और इसके जो फलियां बनती है इसमें पौधे के ऊपर की ओर बनती हैं. इससे फायदा ये है कि इसकी कटाई हार्वेस्टर के माध्यम से भी कर सकते हैं. इसके अलावा और अच्छी किस्में है, जिसमें जेजी 63, जेजी 36 है. यह सभी किस्में जो हैं 115 से 120, 125 दिनों की किस्में हैं.

मसूर के लिए बीज की किस्में

मसूर की फसल के लिए बीज की किस्मों की बात करें तो मसूर की जो किस्में हैं उसमें आईबीएल 316, आरवीएल 31, आरवीएल 116 हैं. जो किसानों के लिए अच्छे ऑप्शन हो सकते हैं.

होगी बंपर पैदावार
होगी बंपर पैदावार

अलसी के लिए खास किस्म की बीज

अलसी की किस्मों की बात करें तो जेएलएस 66, जेएलएस 67, जेएलएस 73, जेएलएस 95 बीज की ये किस्में भी हमारे जिले के लिए अनुशंसित की गई हैं. किसान इन बीजों का चयन करके अधिक से अधिक उत्पादन ले सकते हैं.

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बुवाई में इन बातों का रखें ख्याल

इन किस्मों की फसल की बुवाई के लिए जरूरी यह है कि जब खेत में नमी हो तभी इसकी बुवाई करें. चने की बुवाई में जरूर ध्यान रखें कि चने की बुवाई थोड़ी गहरी करनी पड़ती है. आठ से 10 सेंटीमीटर तक गहराई में बुवाई करनी चाहिए, बाकी बात की जाए अलसी, गेहूं, मसूर की तो इनके दाने छोटे होते हैं, तो जुताई के समय इनकी गहराई 3 से 4 सेंटीमीटर मतलब 2 इंच की गहराई में ही इसकी बुवाई करें.

कृषि वैज्ञानिक डॉ.बृजकिशोर प्रजापति

कितनी जगह पर कितने बीज लगाएं

फसल की बुवाई के लिए बीज की मात्रा की बात करें तो गेहूं की 120 से लेकर 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करें. मसूर के लिए 55 से 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करें. अलसी के लिए 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करें. वहीं चने के लिए 75 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बुवाई करना चाहिए.

सिंचाई में इन बातों का रखें ख्याल

सिंचाई की बात करें तो गेहूं की फसल जो होती है, उसमें पहली सिंचाई 21 दिनों में जरूर करें उसके बाद दूसरी सिंचाई 75 से 80 दिन में करनी होती है. वहीं दलहन की फसलों में जब ब्रांच निकलने की तैयारी होती है या फिर फूल निकलने की पहले की स्थिति होती है और जब फसल में दाना बनते हैं उस समय निश्चित रूप से सिंचाई करनी चाहिए. स्प्रिंकलर इरिगेशन सिंचाई के लिए बेस्ट होता है.

Last Updated :Oct 16, 2021, 11:23 AM IST
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