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आयुष्मान कार्ड फर्जीवाड़े में लिप्त डाॅक्टर-मैनेजर को मिली जमानत, होटल में करते थे इलाज

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Published : Jan 18, 2023, 10:53 PM IST

Mp news today
एमपी हाई कोर्ट की खबर

होटल में भर्ती कर आयुष्मान बीमा योजना के कार्डधारियों का इलाज के नाम पर फर्जीवाड़े के आरोपी डॉक्टर व मैनेजर को जमानत मिल गई है. दोनों 5 माह से जेल में बंद थे.

जबलपुर। एमपी हाई कोर्ट के जस्टिस विशाल धगट्ट ने दोनों आरोपियों को सशर्त जमानत दी. जबलपुर के राइट टाउन स्थित सेंट्रल इंडिया किडनी अस्पताल के प्रबंधन ने समीप स्थित वेगा होटल में आयुष्मान कार्डधारियों को उपचार के लिए भर्ती कर रखा था. इसकी सूचना मिलने पर स्वास्थ विभाग तथा पुलिस टीम ने पिछले साल 26 अगस्त को होटल पर दबिश दी थी.

एक पलंग पर दो मरीज: बैगा होटल में आयुष्मान कार्डधारियों को उपचार के लिए भर्ती कर रखा था. सूचना पर स्वास्थ विभाग तथा पुलिस टीम ने 26 अगस्त को दबिश दी थी. छापे के दौरान वैगा होटल में एक पलंग में दो-दो मरीज भर्ती पाए गए थे. पुलिस ने अस्पताल संचालिका दुलिता पाठक तथा उनके पति डॉ. अश्विनी पाठक के अलावा मैनेजर कमलेश मेहता के खिलाफ जालसाजी और धोखाधड़ी की विभिन्न धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया था. इसके बाद दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था. हाईकोर्ट में जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान डॉक्टर व मैनेजर के वकीलों ने कहा कि उनके मुवक्किल 150 दिनों से न्यायिक हिरासत में हैं। पुलिस ने प्रकरण में चालान पेश कर दिया है। याचिका की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने दोनों आरोपियों को जमानत दे दी।

अगली सुनवाई 25 जनवरी को निर्धारित: सरकार की तरफ से हाईकोर्ट में पेश किए गए हलफनामे में कहा गया है कि, पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के पद पर महाधिवक्ता को निुयक्त किया जा सकता है. याचिकाकर्ता ने इस संबंध में पक्ष प्रस्तुत करने के लिए समय प्रदान करने का आग्रह किया. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा ने आग्रह को स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई 25 जनवरी को निर्धारित की है.

रिट पिटीशन की सुनवाई में फास्ट ट्रैक: अधारताल निवासी ज्ञानप्रकाश की तरफ से दायर याचिका में आरोप लगाते हुए कहा गया था कि, राज्य सरकार द्वारा नियमों की अनदेखी करके डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन के पद पर नियुक्ति नहीं की जा रही जो अवैधानिक है. पूर्व में राज्य सरकार द्वारा एक आईएएस की नियुक्ति इंचार्ज डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन के पद पर किए जाने को भी याचिकाकर्ता ने कटघरे में रखा था. याचिका में हाईकोर्ट ऑफ मध्य प्रदेश केस फ्लो मैनेजमेंट रूल्स 2006 का हवाला देते हुए कहा गया था कि रिट पिटीशनों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक और नॉर्मल ट्रैक बनाए गए हैं.

अपराधों के लिए नॉर्मल ट्रैक: इसी तरह क्रिमिनल मामलों में फांसी की सजा, रेप और दहेज हत्या जैसे मामलों के लिए एक्सप्रेस ट्रैक, जिन मामलों में आरोपी को जमानत नहीं मिली. उसके लिए फास्ट ट्रैक ऐसे संवेदनशील मामले जिनमें कई लोग प्रभावित हो रहे हों उनके लिए रैपिड ट्रैक विशेष कानून के तहत आने वाले मुकदमों के लिए ब्रिस्क ट्रैक और शेष सभी सामान्य अपराधों के लिए नॉर्मल ट्रैक बनाए गए हैं. याचिकाकर्ता का कहना था कि वर्ष 2006 में बने कानून में तय किए गए ट्रैक्स का पालन नहीं हो रहा. हाईकोर्ट ने मामले को संज्ञान में लेते हुए मामले की सुनवाई के निर्देश दिए थे.

पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त: पिछली सुनवाई के दौरान सीबीआई तथा प्रवर्तन निर्देषालय की तरफ से पेश किए गए हलफनामा में बताया था कि धारा 46 के तहत विशेश पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की नियुक्तिया की गई है. सरकार की तरफ से बताया गया था कि धारा 24 के तहत हाईकोर्ट की सहमत्ति से महाधिवक्ता को पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त किया गया है. संशोधन के बाद लॉ ऑफिसरों को पब्लिक प्रॉसिक्यूटर का दायित्व दिया गया है.

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याचिकाकर्ता ने स्वयं रखा अपना पक्ष: युगलपीठ ने सरकार से पूछा था कि, किस नियम के तहत महाधिवक्ता को पूर्णकालिन पब्लिक प्रॉस्क्यिूटर नियुक्ति किया है. सरकार की तरफ से विधि विभाग तथा अन्य राज्यों के मैनुअल का हवाला देते हुए हमलानामा पेश किया गया है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने अपना पक्ष स्वयं रखा.

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