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MP में जल प्रदूषण रोकने नई पहल, अब गोबर और पंचगव्य से तैयार हो रहीं मूर्तियां, देशभर में डिमांड

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 23, 2023, 10:53 PM IST

मूर्तियों के विसर्जन से बड़े पैमाने पर प्रदूषण की खबरें आती है. इस समस्या से निजात पाने के लिए अब गोबर और पंचगव्य से मूर्तियों को तैयार किया जा रहा है. जिससे कोई जल प्रदूषण नहीं होगा.

New initiative to prevent water pollution
जल प्रदूषण रोकने नई पहल

जल प्रदूषण रोकने नई पहल

इंदौर। गणेश विसर्जन और नवरात्रि के बाद मूर्तियां विसर्जन से जल स्रोतों में बड़े पैमाने पर प्रदूषण बढ़ जाता है. वहीं नदियों का इकोसिस्टम भी बिगड़ रहा है. जल प्रदूषण की इसी समस्या के मद्देनजर अब गोबर और पंचगव्य की मूर्तियां तैयार हो रही हैं. इन मूर्तियों से ना तो जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं, बल्कि नदियों को भी प्रदूषण से बचाया जा रहा है. लिहाजा अब गोबर और पंचगव्य से तैयार मूर्तियों के डिमांड देश भर में बढ़ रही है.

प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्ति से ज्यादा टिकाऊ: मध्य प्रदेश में पंचगव्य और गोबर से वैसे तो मूर्तियां 2005 से तैयार हो रही हैं, लेकिन अब गोबर के कारण जल स्रोतों के प्रदूषण नहीं होने और गोबर में पाए जाने वाले अनाज और अन्य तत्वों से जलीय जीवों को भोजन मिलने के कारण मुरैना के मूर्तिकार दिलीप गोयल गौशालाओं से ले जाने वाले गोबर की मूर्तियां बना रहे हैं. यह मूर्तियां न केवल वजन में हल्की होती है, बल्कि अन्य प्लास्टर ऑफ पेरिस और मिट्टी की बनी मूर्तियों से ज्यादा टिकाऊ होती हैं. इसके अलावा इन्हें रखना और सहेजना भी अन्य मूर्तियों की तुलना में ज्यादा सुलभ है. यही वजह है कि इन्हें बनाने वाले मूर्तिकार दिलीप गोयल को मध्य प्रदेश शासन की ओर से विश्वामित्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. मूर्तिकार दिलीप गोयल बताते हैं कि उनके द्वारा मूर्तियों को बनाने के बाद जो आय, उन्हें प्राप्त होती है, उसे आय में से बिक्री का 30 प्रतिशत हिस्सा, वे गौशाला को दान स्वरूप में देते हैं.

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ऐसे बनती है मूर्तियां: पंचगव्य और गोबर से तैयार होने वाली मूर्तियों के लिए पहले गौशालाओं से ताजा और शुद्ध गोबर लाना होता है. इस गोबर को मशीन के द्वारा पीसकर इसे अलग कर लिया जाता है. इसके बाद जो सूखा गोबर बचता है. उसे पाउडर की तरह सुखाकर उसमें औषधीय मिश्रित की जाती है. इसके बाद मूर्तियों को संबंधित आकार और स्वरूप देने के लिए तैयार किए जाने वाले सांचो में डाला जाता है. इसके बाद सूखने पर जो मूर्तियां तैयार होती हैं. उनके ऊपर पंच गव्य का कलर मिलाया जाता है. इसके बाद मूर्तियों को प्राकृतिक रंगों से डेकोरेट किया जाता है.

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