इंदौर। मान्यता है कि मिट्टी की उर्वरक तासीर जिस तरह बीज को अंकुरित कर देती है, उसी तरह शारीरिक संपर्क में आने से शरीर को बल प्रदान करती है. इसी मान्यता की मिसाल है इंदौर के ताराचंद वर्मा बालिका अखाड़ा. यहां मैहर के आल्हा-ऊदल अखाड़ा की मिट्टी कुश्ती के लिए लाई गई है, जिस पर मालवा की बेटियां अब कुश्ती में दांव आजमाएंगी.
आल्हा-ऊदल के अखाड़े की मिट्टी का मिश्रण: मालवा-अंचल में अंतर्राष्ट्रीय महिला पहलवान तैयार करने के लिए मैहर के आल्हा-ऊदल के अखाड़े की पवित्र मिट्टी लाई गई है, जिस के मिश्रण से इंदौर में ताराचंद वर्मा बालिका रेसलिंग सेंटर का कुश्ती क्षेत्र तैयार किया गया है. यहां के पहलवान रामशंकर वर्मा समेत कई पहलवान द्वारा हाल ही में अखाड़े की मिट्टी में आल्हा-ऊदल के अखाड़े की मिट्टी का मिश्रण कराया गया है. इसके अलावा कुश्ती के दौरान बालिकाओं और महिला पहलवानों को चोट से बचाने के लिए मिट्टी में हल्दी नींबू तेल आदि का भी मिश्रण कर मिट्टी को मुलायम बनाया गया है. दरअसल यहां के पहलवानों की मान्यता है कि आल्हा-ऊदल के अखाड़े की मिट्टी में अन्य औषधि तत्वों के अलावा छाछ, हल्दी और सरसों तेल का मिश्रण है, इससे मिट्टी मुलायम रहती है और शारीरिक शोषण के लिहाज से पहलवानों के लिए अनुकूल साबित होती है.
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आल्हा-ऊदल शक्तिशाली योद्धा थे: बता दें कि उत्तर भारत समेत बुंदेलखंड और मालवांचल में प्राचीन दौर से ही अखाड़ों और मल्लयुद्ध की परंपरा रही है. 12वीं शताब्दी में महोबा के चंदेल वंश के शासक पार्वती देव के वंशज माने जाने वाले आल्हा-ऊदल उस दौर के सबसे शक्तिशाली योद्धा के साथ मल्लयुद्ध करने वाले पहलवान भी कहे जाते थे, जो मैहर स्थित अपने अखाड़े में मल्लयुद्ध के हाथ आजमाते थे. आल्हा-ऊदल को लेकर यह कहावत चरितार्थ है कि दोनों में 100-100 हाथियों का बल था जो उनके अखाड़े और मिट्टी पर होने वाली अखाड़ा कुश्ती की बदोलत माना जाता था. हालांकि अब आल्हा-ऊदल इतिहास बन चुके हैं, लेकिन मध्यप्रदेश के मैहर में आज भी उनका अखाड़ा और मल्लयुद्ध क्षेत्र मौजूद है.