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Teacher's Day Special: इंदौर की संस्कृत में PHD करने वाली पहली मुस्लिम महिला, सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल, ऐसी है शिक्षिका तबस्सुम की कहानी

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 5, 2023, 5:53 PM IST

Updated : Sep 5, 2023, 9:26 PM IST

Teacher's Day Special
डॉ तबस्सुम सैयद पहली महिला संस्कृत पीएचडी हैं

आज टीचर्स डे हैं. ऐसे में हम देश की पहली ऐसी मुस्लिम महिला के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने संस्कृत में पीएचडी की है. साथ ही वे स्कूल में संस्कृत की टीचर भी हैं. आइए जानते हैं, उनके संस्कृत से जुड़े लगाव और पेशेवर तौर पर इस भाषा को जीने का साधन बनाना क्यों चुना...

इंदौर। आज शिक्षक दिवस पर हम आपको टीचर्स की प्रेरक कहानी और उनके जज्बे-हौसलों के बारे में बता रहे हैं. ऐसी ही एक महिला टीचर हैं, डॉ तबस्सुम सैयद. इंदौर की रहने वाली तबस्सुम प्रदेश की ऐसी अकेली मुस्लिम संस्कृत टीचर हैं, जिन्होंने न सिर्फ इस विषय में एमफील और पीएचडी की है, बल्कि बतौर टीचर संस्कृत पढ़ाने का जिम्मा भी उठाया. तबस्सुम एक पेशवर संस्कृत टीचर हैं. वे पिछले लगभग 15 सालों से स्कूल में बच्चों को संस्कृत की शिक्षा दे रही हैं.

जब हमने संस्कृत टीचर डॉ. तबस्सुम से बात की तो उन्होंने संस्कृत भाषा को लेकर अपनी चाहत और पूरी जर्नी के बारे में बात की. उन्होंने कहा, "बीकॉम करने के बाद एमकॉम में एडमिशन लेने के लिए 2001 में आर्ट एंड कॉमर्स कॉलेज गई थी. M.Com विषय लेने के सवाल पर टीचर ने बोल दिया था कि मुस्लिम लड़कियां संस्कृत नहीं पढ़ सकती. यह बात डॉ. तबस्सुम को इतनी बुरी लगी, कि उन्होंने आगे की पढ़ाई संस्कृत में ही करने का फैसला ले लिया."

साथ ही तबस्सुम ने बताया-"शुरू में उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ा था, लेकिन इसके बाद राहें आसान होती चली गईं."

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शहर के इस स्कूल से जुड़ी हैं तबस्सुम: अब हम तबस्सुम के उस स्कूल के बारे में बताते हैं, जहां वे बतौर संस्कृत टीचर अपनी सेवाएं दे रही हैं. तबस्सुम इस्लामिया करीमिया सोसाइटी से जुड़ी हैं. यह संस्था शहर के अन्य जगहों पर बच्चों के लिए स्कूल चलाती है. स्कूल में सभी समाज के लोग पढ़ने आते हैं. बाकियों के मुकाबले इस स्कूल में मुस्मिल समाज के बच्चों की तदाद ज्यादा है. स्कूल दो शिफ्ट में लगता है. सुबह की शिफ्ट में लड़के पढ़ते हैं, तो अन्य शाम की शिफ्ट में लड़कों को पढ़ाया जाता है.

शासन के नियम से चलने वाले इस स्कूल में 6 से 10वीं के बच्चों को संस्कृत या उर्दू में से कोई एक भाषा लेना होती है. हालांकि, इस स्कूल में संस्कृत पढ़ने वाले बच्चों की संख्या कम है.

ज्यादातर बच्चे उर्दू भाषा को सीखते और पढ़ते हैं. लेकिन तबस्सुम टीचर से पढ़ने के लिए कई बार बच्चे उर्दू का मोह छोड़कर संस्कृत को अपना थर्ड सब्जेक्ट चुनकर पढ़ने में रूचि लेते हैं. सेंटर उमर स्कूल में जहां तबस्सुम पढ़ाती हैं, वहां लड़के और लड़की मिलाकर कुल 35 बच्चे संस्कृत के स्टूडेंट्स हैं.

कैसे हुआ संस्कृत से जुड़ाव: अपने संस्कृत भाषा के प्रति लगाव पर जब तबस्सुम से बात की तो उन्होंने बताया कि शुरुआत में उन्होंने बीकॉम में ग्रेजुएशन किया था. इसके बाद पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए इंदौर शिफ्ट हो गईं. बात 2003 यानि आज से 20 साल पहले की है. तबस्सुम इंदौर के आर्ट्स एंड कॉमर्स कॉलेज में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए गईं. जहां संस्कृत की टीचर के एक कमेंट ने उनकी पूरी लाइफ मोड़ दी.

यहां एक संस्कृत टीचर ने उनसे कह दिया कि मुस्लिम लड़कियां संस्कृत नहीं पढ़ सकती हैं. बस ये बात उन्हें चुभ सी गई. इसके बाद उन्होंने संस्कृत को ही अपना सब्जेक्ट चुन लिया. फैसला लेते वक्त इस बारे में ज्यादा सोचा नहीं, लेकिन शुरुआत में संस्कृत पढ़ने और उससे भी जरूरी समझने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा.

इसके बाद उन्होंने संस्कृत की तरफ ही अपना फोकस बनाए रखा. वे खंडवा रोड पर बनी यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में जाती थी. जहां वे 5-5 घंटे सेल्फ स्टडी करती थी. घंटो तक संस्कृत को समझने के लिए वे पढ़ती रहती थी. कुछ दिनों में ही संस्कृत उनकी दोस्त की तरह बन गई. यानि अब तबस्सुम को भाषा पहले की तरह आसान सी लगने लगी.

इसके बाद उन्होंने एमफील से लेकर पीएचडी तक इसी विषय में की. साल 2008 में तबस्सुम को पीएचडी अवॉर्ड हुई. उस समय वो पहली मुस्लिम महिला था, जिन्होंने पीएचडी संस्कृत में की थी.

बच्चे उर्दू छोड़ संस्कृत पढ़ने लगते हैं, पिता ने किया सपोर्ट: तबस्सुम का संस्कृत पढ़ाने का तरीका इतना अच्छा है कि उनसे संस्कृत पढ़ने वाले बच्चे उर्दू छोड़ देते हैं. एमए के बाद ही तबस्सुम ने पढ़ाने का सिलसिला भी शुरू कर दिया था. वे स्कूल में हर समुदाय के बच्चों को संस्कृत पढ़ाती हैं. इनमें ग्रामर से लेकर भाषा की वस्तु स्थिति के बारे में पूरी जानकारी दी जाती है.

शब्दों की वर्तनी से लेकर उसके मतलब की भी डीप जानकारी दी जाती है. बच्चों को संस्कृत के कई श्लोक भी याद हैं. इन सभी बातों के लिए तबस्सुम अपने माता-पिता को भी सम्मान देती हैं.

वे कहती हैं कि मेरे पिता पेशे से डॉक्टर हैं. उन्हें जब पता चला कि एमए में संस्कृत सब्जेक्ट चुना है, तो उन्होंने भी तबस्सुम का सपोर्ट किया. पिता ने उन्हें किसी तरह से फोर्स भी नहीं किया. उनके इस फैसले पर आर्य समाज के लोगों ने सम्मानित भी किया था. क्योंकि संस्कृत पढ़ने के लिए सिर्फ एक ही मुस्लिम लड़की थीं.

संस्कृत में ही सुनाती है श्लोक: डॉ तबस्सुम सैयद का मनपसंद श्लोक भारतीय सनातन धर्म का सूत्र वाक्य भी है. वह कहती हैं - सर्वे भवंतु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मां कश्चित दुख भात भवेत्.

इस श्लोक के बारे में उन्होंने कहा- संस्कृत में यह श्लोक जो मानता और जीने की राह दिखाता है, वही भारतीय परंपरा है. एक दूसरे से मिलकर रहने की धर्म सीख देता है.

Last Updated :Sep 5, 2023, 9:26 PM IST
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