धार। विंध्य की पहाड़ियों पर, जमीन से करीब दो हजार फीट ऊंचाई पर बसी मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक नगरी मांडू में प्रवेश करते ही आप हिंदुस्तान में घटी इश्क की सबसे खूबसूरत लेकिन दर्द भरी दास्तानों में से एक से रूबरू होने लगते हैं. ये दास्तान है राजा बाज बहादुर और रानी रूपमती के इश्क की दास्तान, जिसकी गवाही ये शहर आज भी दे रहा है.
इसलिए कहा जाता है रूपमती का शहर
रानी रूपमती का ये खूबसूरत शहर आपका स्वागत भी इस अदभुत प्रेम कहानी का साक्षी बनकर करता है. आमतौर पर शहर उन बादशाहों और राजाओं के नाम से जाने जाते हैं जिन्होंने उन्हें बसाया होता है, लेकिन मांडू को रूपमती का शहर कहना इसलिए जायज होगा क्योंकि बाज बहादुर ने इस नगरी में जो खूबसूरत महल बनवाए, उनकी प्रेरणा उसे रानी रूपमती से मिली.
एक-दूसरे से करते थे बेइंतेहां मोहब्बत
गीत-संगीत के अपने हुनर के चलते करीब आए बाज बहादुर और रूपमती एक-दूसरे से बेइंतेहां मोहब्बत करते थे, लेकिन रूपमती के गायन, वादन और रूप की चर्चा जब शहंशाह अकबर तक पहुंची तो उसने बाज बहादुर से रानी रूपमती को दिल्ली दरबार में भेजने की बात कही. जिस बात से बाज बहादुर ने इनकार कर दिया. बाज बहादुर का इनकार अकबर को नागवार गुजरा और उसने सेना भेजकर बाज बहादुर को गिरफ्तार करवा लिया.
एक-दूसरे के वियोग में दी जान
बाज बहादुर को गिरफ्तार करने के बाद जब अकबर के सैनिक रूपमती को ले जाने के लिए पहुंचे तो उसने हीरा निगल कर आत्महत्या कर ली. बाज बहादुर के वियोग में जब रूपमती ने आत्महत्या कर ली, तब अकबर को अपने किये पर पछतावा हुआ. जिसके बाद अकबर ने बाजबहादुर को कैद से आजाद कर दिया, लेकिन रुपमती के वियोग में राजा ने रुपमती की मजार पर सिर पटक-पटक कर अपनी जान दे दी.
'आशिक-ए-सादिक', 'शहीद-ए-वफा'
इस घटना के बाद बादशाह अकबर ने दोनों की समाथि बनावाई, जहां बाज बहादुर के मकबरे पर लिखवाया 'आशिक-ए-सादिक' और रूपमती की समाधि पर 'शहीद-ए-वफा' लिखवाया गया. रानी रूपमती और बाज बहादुर एक-दूसरे के लिए बने थे, वे साथ जिंदा नहीं रह सके तो उन्होंने साथ-साथ जान दे दी, लेकिन उस वक्त का सबसे ताकतवर शहंशाह भी उनके प्यार को हरा नहीं सका.