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देवास की विद्याबाई का जज्बा, 68 की उम्र में बन गईं 'कंप्यूटर मास्टर'

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Published : Dec 2, 2019, 9:26 PM IST

Updated : Dec 2, 2019, 9:39 PM IST

हम आपको देवास की विद्याबाई नरवरिया के जज्बे से रूबरू करा रहे हैं, जिन्होंने 68 साल की उम्र में कंप्यूटर चलाना सीखा.

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देवास की विद्याबाई का जज्बा

देवास। सीखने की कोई उम्र नहीं होता, इंसान किसी भी उम्र में कुछ भी सीख सकता है, जरूरत होती है तो सिर्फ जुनून की. सीखने की ललक और कुछ नया करने का जज्बा ही आपको दूसरों से अलग बनाता है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है देवास जिले के बागली की रहने वाली विद्याबाई ने. 68 साल की उम्र में कंप्यूटर सीखने वाली विद्याबाई ने ईटीवी भारत के साथ अपनी कहानी साझा की है. विद्याबाई कहती हैं कि हमें चुनौतियों का सामना करना चाहिए.

देवास की विद्याबाई का जज्बा

विद्याबाई नरवरिया जब कम्प्यूटर सीखने छोटे- छोटे बच्चों के साथ क्लास रूम में जाती थीं, तो उनकी हंसी उड़ाई गई. बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और चुनौतियों को हंसकर स्वीकार किया, लिहाजा उन्होंने 68 साल की उम्र में कंप्यूटर सीखकर ए ग्रेड का डिप्लोमा भी हासिल किया. विद्याबाई नरवरिया कंप्यूटर सीखने के बाद अपने बेटे के काम में हाथ भी बंटाती हैं और नक्शे बनाने से लेकर दूसरे काम मिनटों में निपटा देती हैं. उन्होंने उन लोगों को भी कंप्यूटर सीखने की सलाह दी है, जो आज भी भी कंप्यूटर से दूर भागते हैं. जिस उम्र में लोग दूसरों का सहारे मांगते हैं, उस उम्र में विद्याबाई नरवरिया पूरी एनर्जी के साथ काम करती हैं. हर पल कुछ न कुछ नया सीखने की ललक उन्हें दूसरों से अलग बनाती है. बेटे के असामयिक निधन के बाद इंटरनेट की मदद से वो छोटी- मोटी समस्याएं घर बैठे सॉल्व कर लेती हैं.

Intro:बागली (देवास)

विश्व कंप्यूटर दिवस पर स्पेशल स्टोरी


विश्व कम्प्यूटर साक्षरता दिवस पर 78 वर्षीय विद्याबाई के कम्प्यूटर सीखने की जुनून की रोचक कहानी।

बागली 78 वर्षीय विद्याबाई नरवरिया के उस जुनून की है जिसने 68 वर्ष की उम्र में कम्प्यूटर चलाने सीखा,और क्लास में अपने पोतों की उम्र के हँसी उड़ाने वाले बच्चों को पछाड़ते हुए प्रथम स्थान प्राप्त किया।

विद्याबाई नरवरिया बताती है की पति रामप्रसाद नरवरियाजी का आसमयिक निधन व कुछ समय बाद जवान बेटे खेलेन्द्र की दुर्घटना में मौत के बाद विद्याबाई छोटे बच्चों को कोचिंग पढ़ाकर अपना समय व्यतीत करने लगी वर्ष 2008-09 में घर के पास कम्प्यूटर क्लास प्रारम्भ होने पर विद्याबाई की उत्सुकता कम्प्यूटर सीखने की हुई,पर इस उम्र में कम्प्यूटर चलना व अंग्रेजी में तंग हाथ पर पुत्र प्रवीण ने संकोच किया वही कम्प्यूटर क्लास संचालक टालता रहा पर कम्प्यूटर सीखने की लगन ने विद्याबाई कम्प्यूटर क्लास तक लेकर गई

जहाँ बच्चो के साथ क्लास नोसिखिये बच्चो की तरह गलतियों पर बच्चो की हंसी व मजाक का विषय भी बनी पर विद्याबाई ने हिम्मत नही हारी ओर नियमित क्लास में पूर्ण लग्न से प्रशिक्षण प्राप्त करती रही। वह जुनून ही था हिन्दी कम्प्यूटर टाइपिंग के लिये गत्ते पर कम्प्यूटर के कीबोर्ड बनाकर उंगलियों से प्रेक्टिस करना, कोरल एम एस वर्ड पेजमेकर सहित अन्य साफ्टवेयर चलना सीखा।

कम्प्यूटर चलाने की रुचि देखकर पुत्र प्रवीण ने घर पर भी एक कम्प्यूटर खरीद लिया। एक वर्ष के प्रशिक्षण के बाद जब राजीव गांधी साक्षात मिशन द्वारा परीक्षा आयोजित की उसमे विद्याबाई ने भी परीक्षा देने की मंशा जाहिर करते परीक्षा दी। जिस उम्र में कमर दर्द घुटने दर्द नींद नही आने का तनाव रहता है उस उम्र में परीक्षा का तनाव भी रोचक था पर उम्र के उन मिथकों को तोड़कर परीक्षा में बेहतर परिणाम पाते विद्याबाई ने बी प्लस ग्रेड के साथ क्लास में प्रथम स्थान प्राप्त किया

शायद यह खुशी माउंट एवरेस्ट की चोटी फते करने जैसी होगी। पर शायद इम्तहान तो बाकी था पुत्र प्रवीण असाध्य गम्भीर बीमारी से पीड़ित होने पर पुत्र के सरकारी कार्यो पत्रों नक्शो को बख़ूबी कम्प्यूटर से तैयार करना व इंटरनेट पर पुत्र की बीमारी के ईलाज व मेडिसिन की जानकारी सर्च करते अपने ज्ञान का सही व भरपूर उपयोग किया।

पुत्र का वर्ष 2017 में असामयिक निधन के बाद आज भी विद्याबाई कम्प्यूटर बेहतर कार्य कर लेती है इंटरनेट पर लेखकों की किताब पड़ने के अतिरिक्त आस पास के बच्चों की छोटी बड़ी परेशानियों का समाधान वह कर लेती है।

बाईट - विद्याबाई नरवरियाBody:बागली (देवास)

विश्व कंप्यूटर दिवस पर स्पेशल स्टोरी


विश्व कम्प्यूटर साक्षरता दिवस पर 78 वर्षीय विद्याबाई के कम्प्यूटर सीखने की जुनून की रोचक कहानी।

बागली 78 वर्षीय विद्याबाई नरवरिया के उस जुनून की है जिसने 68 वर्ष की उम्र में कम्प्यूटर चलाने सीखा,और क्लास में अपने पोतों की उम्र के हँसी उड़ाने वाले बच्चों को पछाड़ते हुए प्रथम स्थान प्राप्त किया।

विद्याबाई नरवरिया बताती है की पति रामप्रसाद नरवरियाजी का आसमयिक निधन व कुछ समय बाद जवान बेटे खेलेन्द्र की दुर्घटना में मौत के बाद विद्याबाई छोटे बच्चों को कोचिंग पढ़ाकर अपना समय व्यतीत करने लगी वर्ष 2008-09 में घर के पास कम्प्यूटर क्लास प्रारम्भ होने पर विद्याबाई की उत्सुकता कम्प्यूटर सीखने की हुई,पर इस उम्र में कम्प्यूटर चलना व अंग्रेजी में तंग हाथ पर पुत्र प्रवीण ने संकोच किया वही कम्प्यूटर क्लास संचालक टालता रहा पर कम्प्यूटर सीखने की लगन ने विद्याबाई कम्प्यूटर क्लास तक लेकर गई

जहाँ बच्चो के साथ क्लास नोसिखिये बच्चो की तरह गलतियों पर बच्चो की हंसी व मजाक का विषय भी बनी पर विद्याबाई ने हिम्मत नही हारी ओर नियमित क्लास में पूर्ण लग्न से प्रशिक्षण प्राप्त करती रही। वह जुनून ही था हिन्दी कम्प्यूटर टाइपिंग के लिये गत्ते पर कम्प्यूटर के कीबोर्ड बनाकर उंगलियों से प्रेक्टिस करना, कोरल एम एस वर्ड पेजमेकर सहित अन्य साफ्टवेयर चलना सीखा।

कम्प्यूटर चलाने की रुचि देखकर पुत्र प्रवीण ने घर पर भी एक कम्प्यूटर खरीद लिया। एक वर्ष के प्रशिक्षण के बाद जब राजीव गांधी साक्षात मिशन द्वारा परीक्षा आयोजित की उसमे विद्याबाई ने भी परीक्षा देने की मंशा जाहिर करते परीक्षा दी। जिस उम्र में कमर दर्द घुटने दर्द नींद नही आने का तनाव रहता है उस उम्र में परीक्षा का तनाव भी रोचक था पर उम्र के उन मिथकों को तोड़कर परीक्षा में बेहतर परिणाम पाते विद्याबाई ने बी प्लस ग्रेड के साथ क्लास में प्रथम स्थान प्राप्त किया

शायद यह खुशी माउंट एवरेस्ट की चोटी फते करने जैसी होगी। पर शायद इम्तहान तो बाकी था पुत्र प्रवीण असाध्य गम्भीर बीमारी से पीड़ित होने पर पुत्र के सरकारी कार्यो पत्रों नक्शो को बख़ूबी कम्प्यूटर से तैयार करना व इंटरनेट पर पुत्र की बीमारी के ईलाज व मेडिसिन की जानकारी सर्च करते अपने ज्ञान का सही व भरपूर उपयोग किया।

पुत्र का वर्ष 2017 में असामयिक निधन के बाद आज भी विद्याबाई कम्प्यूटर बेहतर कार्य कर लेती है इंटरनेट पर लेखकों की किताब पड़ने के अतिरिक्त आस पास के बच्चों की छोटी बड़ी परेशानियों का समाधान वह कर लेती है।

बाईट - विद्याबाई नरवरियाConclusion:बागली (देवास)

विश्व कंप्यूटर दिवस पर स्पेशल स्टोरी


विश्व कम्प्यूटर साक्षरता दिवस पर 78 वर्षीय विद्याबाई के कम्प्यूटर सीखने की जुनून की रोचक कहानी।

बागली 78 वर्षीय विद्याबाई नरवरिया के उस जुनून की है जिसने 68 वर्ष की उम्र में कम्प्यूटर चलाने सीखा,और क्लास में अपने पोतों की उम्र के हँसी उड़ाने वाले बच्चों को पछाड़ते हुए प्रथम स्थान प्राप्त किया।

विद्याबाई नरवरिया बताती है की पति रामप्रसाद नरवरियाजी का आसमयिक निधन व कुछ समय बाद जवान बेटे खेलेन्द्र की दुर्घटना में मौत के बाद विद्याबाई छोटे बच्चों को कोचिंग पढ़ाकर अपना समय व्यतीत करने लगी वर्ष 2008-09 में घर के पास कम्प्यूटर क्लास प्रारम्भ होने पर विद्याबाई की उत्सुकता कम्प्यूटर सीखने की हुई,पर इस उम्र में कम्प्यूटर चलना व अंग्रेजी में तंग हाथ पर पुत्र प्रवीण ने संकोच किया वही कम्प्यूटर क्लास संचालक टालता रहा पर कम्प्यूटर सीखने की लगन ने विद्याबाई कम्प्यूटर क्लास तक लेकर गई

जहाँ बच्चो के साथ क्लास नोसिखिये बच्चो की तरह गलतियों पर बच्चो की हंसी व मजाक का विषय भी बनी पर विद्याबाई ने हिम्मत नही हारी ओर नियमित क्लास में पूर्ण लग्न से प्रशिक्षण प्राप्त करती रही। वह जुनून ही था हिन्दी कम्प्यूटर टाइपिंग के लिये गत्ते पर कम्प्यूटर के कीबोर्ड बनाकर उंगलियों से प्रेक्टिस करना, कोरल एम एस वर्ड पेजमेकर सहित अन्य साफ्टवेयर चलना सीखा।

कम्प्यूटर चलाने की रुचि देखकर पुत्र प्रवीण ने घर पर भी एक कम्प्यूटर खरीद लिया। एक वर्ष के प्रशिक्षण के बाद जब राजीव गांधी साक्षात मिशन द्वारा परीक्षा आयोजित की उसमे विद्याबाई ने भी परीक्षा देने की मंशा जाहिर करते परीक्षा दी। जिस उम्र में कमर दर्द घुटने दर्द नींद नही आने का तनाव रहता है उस उम्र में परीक्षा का तनाव भी रोचक था पर उम्र के उन मिथकों को तोड़कर परीक्षा में बेहतर परिणाम पाते विद्याबाई ने बी प्लस ग्रेड के साथ क्लास में प्रथम स्थान प्राप्त किया

शायद यह खुशी माउंट एवरेस्ट की चोटी फते करने जैसी होगी। पर शायद इम्तहान तो बाकी था पुत्र प्रवीण असाध्य गम्भीर बीमारी से पीड़ित होने पर पुत्र के सरकारी कार्यो पत्रों नक्शो को बख़ूबी कम्प्यूटर से तैयार करना व इंटरनेट पर पुत्र की बीमारी के ईलाज व मेडिसिन की जानकारी सर्च करते अपने ज्ञान का सही व भरपूर उपयोग किया।

पुत्र का वर्ष 2017 में असामयिक निधन के बाद आज भी विद्याबाई कम्प्यूटर बेहतर कार्य कर लेती है इंटरनेट पर लेखकों की किताब पड़ने के अतिरिक्त आस पास के बच्चों की छोटी बड़ी परेशानियों का समाधान वह कर लेती है।

बाईट - विद्याबाई नरवरिया
Last Updated : Dec 2, 2019, 9:39 PM IST
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