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ETV भारत SPECIAL : ये अस्पताल हैं या लाक्षागृह..हर अग्निकांड के बाद जांच कमेटी का गठन और मुआवजे का मरहम. क्या ऐसे ही रोकेंगे हादसे?

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Published : Aug 1, 2022, 7:26 PM IST

मध्यप्रदेश के सरकारी व निजी अस्पतालों में लगातार हो रहे भीषण अग्निकांड से सवाल उठ रहा है कि ये स्थान जीवन प्रदान करने वाले हैं या साक्षात लाक्षागृह हैं. राजधानी भोपाल के हमीदिया अस्पाताल में आठ माह पहले हुए भीषण अग्निकांड और इससे पहले हुए हादसों से सबक नहीं लिया गया. इसी का नतीजा है कि सोमवार को जबलपुर के एक निजी अस्पताल हुए अग्निकांड में 10 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई. कई झुलसे हुए हैं. ऐसे में सवाल यह है कि हर हादसे के बाद जांच कमेटी का गठन, मुआवजे का मरहम देकर सरकार व प्रशासन कुंभकर्णी नींद में क्यों चला जाता है. आइए हम बताते हैं बीते तीन साल में अंदर प्रदेश के अस्पतालों में कैसे लगी आग, कितनी मौतें हुईं और जांच का हश्र क्या रहा. (These are hospitals or Lakshagrihas) (Every time Compensation and inquiry committee) (Arson deaths in MP hospitals)

MP Hospital Fire News
जबलपुर अस्पताल में आग

भोपाल। भोपाल के हमीदिया अस्पताल में हुए भीषण अग्निकांड में 10 नवजात शिशु झुलसकर मौत का शिकार हो गए थे. इस हादसे के बाद राज्य सरकार ने पूरे प्रदेश के अस्पतालों में फायर फायर ऑडिट के सख्त आदेश दिए थे. लेकिन ये भी हमेशा की भांति कांगजी आदेश साबित हुआ. हमीदिया के भीषण अग्निनकांड को अभी 9 माह भी नहीं बीते कि जबलपुर के एक निजी अस्पताल में भीषण अग्निकांड हो गया. इस हादसे में भी 8 लोग मौत का शिकार हो गए. 17 से ज्यादा मरीज गंभीर हैं. बीते तीन साल के अंदर मध्यप्रदेश के 12 से ज्यादा अस्पतालों में आगजनी के हादसे हो चुके हैं. इन हादसों में कई लोग मौत का शिकार हो चुके हैं. इनमें सरकारी के अलावा निजी अस्पताल भी हैं. इसके बाद भी ऐसे हादसे रोकने के लिए राज्य सरकार कोई ठोस उपाय तो करना दूर, फायर विभाग के दिशा-निर्देशों का पालन कराने में अक्षम साबित हो रही है.

हमीदिया अस्पताल में 12 नवजात झुलसकर मरे : 9 नवंबर 2021 को हमीदिया कैंपस के कमला नेहरू हॉस्पिटल में लगी आग ने कई घरों के चिराग बुझा दिए थे. इस आग की लपटों ने कई घरों में अंधेरा कर दिया. 12 नवजात मौत का शिकार हुए. नवजात इतने झुलस गए थे कि उनकी शिनाख्त भी ढंग से नहीं हो सकी थी. उस समय पीड़ित परिजनों की व्यथा को भी दरकिनार कर दिया गया था. परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन बच्चों के गुम होने के आरोप भी लगाए थे. इस दौरान दुखद बात यह रही कि अस्पताल प्रबंधन इन मौतों को सामान्य घोषित करने में लगा रहा. यहां गौर करने वाली बात यह है कि इस भीषण हादसे से पहले 7 अक्टूबर 2021 को हमीदिया अस्पताल की निर्माणाधीन बिल्डिंग में आग लगी थी. आग का धुआं दूर से ही दिखाई दे रहा था. फायर ब्रिगेड की टीम ने एक घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पा लिया था. इसके बाद भी हमीदिया अस्पताल प्रशासन ने ऐहितयायत नहीं बरती.

हादसे के बाद सारे आदेश हवाहवाई साबित हुए : कमला नेहरू अस्पताल में आग लगने और बच्चों के मरने के बाद सरकार ने तीन अफसरों को पद से हटा दिया, जबकि एक को निलंबित किया था. सीएम शिवराज ने कहा था कि इस मामले में दोषियों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाएगा. उच्च स्तरीय बैठक में सीएम ने निर्देश दिए. बैठक में निर्णय लिया गया कि अब मेडिकल एजुकेशन विभाग का अपना अलग सिविल विंग होगा, जो मेडिकल कॉलेज और उससे संबंधित अस्पताल का मेंटीनेंस करेगा. बैठक में तय किया गया कि अभी तक यह काम सीपीए द्वारा किया जा रहा था. घटना के बाद तत्काल प्रभाव से मेंटीनेंस का काम सीपीए से वापस लेकर पीडब्ल्यूडी को सौंपा गया. मंत्री विश्वास सारंग कहा था कि फिलहाल पीडब्ल्यूडी को यह काम अस्थाई तौर पर दिया गया है. सिविल विंग के गठन के साथ यह पूरा काम उसे सौंप दिया जाएगा. लेकिन ये आदेश भी कागजी साबित हुआ. जैसे ही कुछ दिन बीते पूरा मामला ठंडा पड़ गया.

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हमीदिया में भीषण आग

अस्पतालों में सालों से नहीं हुआ ऑडिट : हमीदिया अस्पताल के कमला नेहरू अस्पताल में लगी आग के बाद यहां लगे फायर सेफ्टी सिस्टम को लेकर लगातार सवाल उठते रहे. 15 साल से अधिक समय से यहां पर फायर ऑडिट नहीं हो पाया. अस्पताल में आग बुझाने के उपकरण तो रखे हैं, लेकिन यह किसी शोपीस से कम नहीं हैं. क्योंकि यह उपकरण काम नहीं करते हैं. संभाग आयुक्त ने हादसे के बाद कहा कि जांच के लिए कमेटी गठित हो गई है, लेकिन फायर ऑडिट नहीं होने की जिम्मेदारी कौन लेगा? इससे भी बुरा हाल प्रदेश के अस्पतालों में हैं.

ऑडिट के बारे में कलेक्टरों से पूछा तक नहीं : हमीदिया में भीषण अग्निकांड के बाद राज्य शासन ने प्रदेश भर के सभी सरकारी और निजी अस्पतालों के फायर सेफ्टी ऑडिट के निर्देश दिए थे. बैठक में मुख्यमंत्री ने ऑडिट की जिम्मेदारी जिला स्तर पर कलेक्टर को सौंपी थी. आदेश दिया गया था कि कलेक्टर अगले 10 दिनों में जिले के सभी सरकारी, निजी और मेडिकल कॉलेजों का फायर ऑडिट कराकर इसकी रिपोर्ट शासन को सौंपेंगे. लेकिन आज तक इस आदेश पर रत्तीभर काम नहीं हुआ. न जिलों के कलेक्टर्स ने कोई कदम उठाया और न ही जिम्मेदारों ने इसकी कोई प्रोगेस रिपोर्ट ली.

अशोकनगर जिला अस्पताल में आग, 14 नवजात थे भर्ती : अशोकनगर के जिला अस्पताल के एसएनसीयू (SNCU) में 16 मई 2021 को शार्ट सर्किट के कारण आग लगी. इससे अस्पताल में हाहाकार मच गया. आग लगने के कारण अस्पताल से तेज धमाके की आवाजें सुनाई दीं और तेज धुआं उठने लगा. अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में भर्ती 14 नवजातों को स्टाफ नर्स ने आग लगने के तुरंत बाद वहां से शिफ्ट कर लिया, जिससे किसी भी नवजात को नुकसान नहीं पहुंचा है. वहीं, अस्पताल के कर्मियों और इलेक्ट्रीशियनों ने कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया गया है. यहां इसके बाद भी सुरक्षा के कोई उपाय नहीं किए गए.

इंदौर के मेदांता हॉस्पिटल के ICU में मरीजों का धुएं से घुटा दम : इंदौर के मेदांता हॉस्पिटल के आईसीयू में जनवरी 2022 में आग लग गई. जिस समय आग लगी उस वक्त आईसीयू में करीब 20 मरीज, डॉक्टर्स और नर्सें मौजूद थीं. जिसके बाद वहां अफरातफरी मच गई. सूचना पर पुलिस फोर्स मौके पर पहुंच गई. अस्पताल में मौजूद उपकरणों से आग पर काबू पा लिया गया. धुआं भरने से आईसीयू में भर्ती मरीजों का दम घुटने और सांस लेने में तकलीफ के बाद सभी मरीजों को दूसरे आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया. आग लगने की वजह शॉर्ट सर्किट होना बताया गया. गनीमत यह रही कि आगजनी में कोई गंभीर घटना नहीं हुई. चौथी मंजिल के आईसीयू में शॉर्ट सर्किट से आग लगी थी. आईसीयू में भर्ती तकरीबन 13 से 14 मरीजों को दूसरी जगह पर शिफ्ट किया गया.

खरगोन जिला अस्पताल में बाल-बाल बची मरीजों की जान : खरगोन जिला अस्पताल में 13 जून 2021 को आग लगने से अफरा-तफरी मच गई. तत्काल प्रयास करते हुए अग्निशमन यंत्र से आग पर काबू पाया गया. कोविड वार्ड के आईसीयू कंट्रोल पैनल में आग लगने की घटना हुई है. आग की वजह से अस्पताल में चारों तरफ धुआं फैल गया, जिससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा. सूचना मिलते ही कर्मचारियों ने आईसीयू वार्ड में भर्ती चार मरीजों को दूसरे वार्ड में शिफ्ट करके आग पर काबू पाया. मौके पर पहुंचे एसडीएम सत्येंद्र सिंह ने घटना की जांच की बात कही है. बाद में इस जांच का कोई पता नहीं चला.

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शिवपुरी में आग

शिवपुरी जिला अस्पताल के कोविड वार्ड में आग : सितंबर 2020 में शिवपुरी जिला अस्पताल के कोविड वार्ड में आग लग गई. आग की लपटों को देखते ही अस्पताल में भगदड़ मच गई. इस दौरान ऑक्सीजन के अभाव में एक मरीज ने दम तोड़ दिया. आग वेंटिलेटर ब्लास्ट होने से लगी. अस्पताल में भर्ती मरीज और दूसरे स्टॉफ में अफरा-तफरी मच गई. वे इधर-उधर भागने लगे. मरीजों को भी दूसरी जगह शिप्ट किया गया. इसी शिफ्टिंग के दौरान मोहम्मद इस्लाम को आक्सीजन न मिलने से उसकी मौत हो गई. वहीं इस मामले पर सीएमएचओ कुछ भी कहने से बचते नजर आए. उधर, 4 अप्रैस को उज्जैन के पाटीदार अस्पताल में आग की चपेट में आने से 3 मरीज झुलस गए थे.

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अहमदाबाद के अस्पताल में आग

अहमदाबाद में 13 नवजात सहित 75 को बचाया : 25 जून 2022 को गुजरात के अहमदाबाद शहर में पांच मंजिला एक वाणिज्यिक परिसर की चौथी मंजिल पर स्थित बच्चों के अस्पताल में शनिवार को आग लग गई. हालांकि, समय रहते 13 नवजात बच्चों सहित 75 लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया. इमारत में हादसे के समय अस्पताल में 13 नवजात बच्चे और उनके माता-पिता सहित करीब 75 लोग इमारत में थे, जिन्हें सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया. अकाउंट फर्म के सर्वर कक्ष में आग लगी थी. आग बुझाने में 20 गाड़ियों को लगाया गया था.

Fire in Jabalpur Hospital: जबलपुर के न्यू लाइफ अस्पताल में लगी भीषण आग, 8 मरीजों की मौत, कई गंभीर रूप से झुलसे

14 मरीजों के लिए आईसीयू बना यमराज : 23 अप्रैल को महाराष्ट्र के पालघर जिले के विरार में एक कोविड अस्पताल में अचानक आग लग गई. इसमें अब तक 14 मरीजों की मौत हो गई है. आग शॉट सर्किट से लगी थी. घटना के बाद राहत और बचाव कार्य किया गया. उधर, 18 अप्रैल 2021 को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक अस्पताल के ICU वार्ड में आग लगी, जिससे 5 मरीजों की मौत हो गई है. अस्पताल में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज भर्ती थे.

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अहमदाबाद के अस्पताल में आग

महाराष्ट्र के भंडारा में 10 नवजात की मौत : 9 जनवरी 2021 को महाराष्ट्र के भंडारा में जिला अस्पताल में आग लगी. इस हादसे में 10 नवजात शिशुओं की मौत हो गई. वार्ड में कुल 17 बच्चे भर्ती थे. इनमें से सात बच्चों को बचा लिया गया है. सभी बच्चे सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में भर्ती थे. आशंका जताई जा रही है कि आग शॉर्ट सर्किट के कारण लगी है. धुआं निकलते देख नर्स और अस्पताल के लोग दौड़कर वार्ड पहुंचे लेकिन तब तक 10 नवजात शिशुओं की जान जा चुकी थी. सात को बचा लिया गया.

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