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MP की सियासत में ओवैसी की दस्तक, किसे होगा फायदा?

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Published : Dec 29, 2020, 8:47 PM IST

asaduddin owaisi aimim in mp
MP की सियासत में ओवैसी की दस्तक

मध्य प्रदेश के सियासी गलियारों में इन दिनों असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री की चर्चाएं हो रही हैं. आगामी दिनों में एमपी में नगर निकाय चुनाव होने वाले हैं. इस बार असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी (AIMIM) भी अपने उम्मीदवार उतार सकती है. जानें ओवैसी की एंट्री से प्रदेश में किस पार्टी को होगा नुकसान और किसे फायदा.

भोपाल। मध्य प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव की तारीख भले ही अब तक घोषित नहीं हुई है. लेकिन इस चुनाव को लेकर सियासी गलियारों में सरगर्मियां तेज हैं. अब प्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव में AIMIM की दस्तक भी सुनाई दे रही है. प्रदेश में AIMIM प्रमुख ओवैसी की पार्टी नगरीय निकाय चुनाव में संभावनाएं तलाश रही हैं. AIMIM मध्य प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. नईम अंसारी ने आगामी एमपी नगरीय निकाय चुनाव में AIMIM के चुनाव लड़ने की संभावना जताई है.

मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में AIMIM का सर्वे

सियासी गलियारों में चर्चाएं हो रही हैं कि मध्य प्रदेश के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में ओवैसी के निर्देश पर AIMIM पार्टी सर्वे करा रही है. नगरीय निकाय चुनाव में जीत की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं. इसके बाद प्रदेश के सियासी पंडित प्रदेश की भविष्य की राजनीतिक के समीकरण पर माथापच्ची करने में जुटे हुए हैं. कई लोगों का कहना है कि ओवैसी के चुनाव लड़ने से सीधे बीजेपी को फायदा होगा, तो कई लोगों का मानना है कि प्रदेश में अल्पसंख्यक कम होने के कारण ओवैसी के लिए संभावनाएं उन राज्यों से कम हैं, जहां अल्पसंख्यकों की संख्या ज्यादा है.

प्रदेश के कई जिलों में होगा AIMIM का सर्वे

AIMIM के मध्य प्रदेश इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. नईम अंसारी ने कहा है कि मध्य प्रदेश में होने जा रहे नगरीय निकाय चुनाव में पार्टी संभावनाएं तलाश रही है. प्रदेश के मुस्लिम बाहुल्य इलाके में जल्द ही प्रारंभिक तौर पर सर्वे कराया जाएगा. AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने ये जिम्मेदारी ग्रेटर हैदराबाद के पार्षद सैयद मिनहाजुद्दीन को सौंपी है. सैयद मिनहाजुद्दीन की देखरेख में प्रदेश के इंदौर, भोपाल, उज्जैन, खंडवा, सागर,बुरहानपुर, खरगोन, रतलाम, जबलपुर, बालाघाट और मंदसौर जैसे इलाकों में सर्वे कराए जाएंगे. इन सर्वे के आधार पर पार्टी प्रमुख ओवैसी चुनाव लड़ने और न लड़ने का फैसला करेंगे.

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ओवैसी से बड़ा अब बीजेपी का दलाल कोई नहीं

नगरीय निकाय चुनाव में ओवैसी की पार्टी की दस्तक को लेकर पूर्व मंत्री और विधायक सज्जन सिंह वर्मा ने बयान दिया है. उन्होंने कहा कि ओबीसी से बड़ा बीजेपी का दलाल इस देश में कोई नहीं है. मैं मुस्लिम भाइयों से अनुरोध करता हूं कि पहचान जाओ, यह तुम्हारी पीठ में खंजर घोंपने वाला है.ओवैसी नरेंद्र मोदी और बीजेपी का सबसे बड़ा पिट्ठू और दलाल है.

विधायक सज्जन सिंह वर्मा

हमने हैदराबाद में घुसकर क्या हश्र किया

वहीं शिवराज सरकार के मंत्री विश्वास सारंग कहते हैं कि देश में रहने वाले हर व्यक्ति को चुनाव लड़ने और लड़वाने का अधिकार है. लेकिन बीजेपी अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक, धर्म-जाति के आधार पर मतदाताओं को भिन्नता के रूप में नहीं देखती है. हमारे लिए मतदाता है, हमारे लिए जनता जनार्दन है. बीजेपी जनता की सेवा और क्षेत्र के विकास के लिए काम करती है. कोई भी लड़े, कहीं से भी आकर लड़े. यह सुनिश्चित है कि नगर में भी बीजेपी की सरकार बनेगी. जिनका आप नाम ले रहे हैं, आपने देखा होगा कि हैदराबाद में हमने उनके घर में घुसकर उन लोगों का क्या हश्र किया है. इसलिए कोई भी कहीं से आए तो जनता ने मन बना लिया है कि देश में कमल की सरकार है, प्रदेश में कमल की सरकार है, तो विकास के लिए नगर में भी कमल की सरकार होगी.

मंत्री विश्वास सारंग

ओवैसी नहीं कर पाएंगे बड़ा कमाल

वरिष्ठ पत्रकार देवदत्त दुबे कहते हैं कि ओवैसी कमाल कर नहीं पाते हैं, उनसे करवाया जाता है. बीजेपी लगातार उनकी मदद करती है. यह आरोप विपक्षी दल भी लगाते हैं. वह जहां-जहां गए हैं, उन्होंने बीजेपी विरोधी वोटों का बंटवारा किया है. क्योंकि मध्य प्रदेश में अल्पसंख्यक कम है, इसलिए ओवैसी वैसा कमाल नहीं दिखा पाएंगे, जैसा उन राज्यों में दिखा पाए हैं, जहां अल्पसंख्यक ज्यादा है.

ओवैसी नहीं कर पाएंगे बड़ा कमाल

उन्होंने कहा कि यहां अल्पसंख्यक कांग्रेस के साथ हैं, क्योंकि उसको पता है कि बीजेपी से अगर प्रदेश में मुकाबला करेगी, तो कांग्रेस ही करेगी. यहां न सपा, न बसपा को ज्यादा जगह मिली तो ओवैसी कोई कमाल नहीं कर पाएंगे. कमाल सिर्फ इतना होगा कि वह उतनी वोटों को काटने का प्रयास करेंगे, जो वार्ड के चुनाव में कई बार 50-100 वोटों से जीत-हार होती है. ओवैसी को उतना महत्व नहीं मिलेगा, चाहे कोई कितना भी सपोर्ट कर ले, जो उन राज्यों में मिलता है, जहां अल्पसंख्यकों की संख्या ज्यादा है.

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मध्य प्रदेश की सियासत में एंट्री

ओवैसी ने बीते कुछ सालों में हैदराबाद के बाहर पार्टी का जनाधार बढ़ाने की कोशिश की है. उनकी पार्टी ने बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव में 20 उम्मीदवार मैदान में उतारे और पांच स्थानों पर जीत दर्ज की. इसी तरह उत्तर प्रदेश में वर्ष 2017 के चुनाव में 38 उम्मीदवारों को विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में उतारा, मगर एक भी नहीं जीता. वहीं, ग्रेटर हैदरबाद नगर निगम के चुनाव में उनके 44 उम्मीदवार जीते. ओवैसी अब उत्तर भारत की तरफ भी अपनी पार्टी का विस्तार करने में लगे हैं, उसी क्रम में वह मध्य प्रदेश की सियासत में एंट्री करना चाह रहे हैं.

बीजेपी के लिए फायदेमंद माने जाते हैं ओवैसी

जानकारों के मुताबिक अब तक देखा गया है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM जहां भी चुनाव लड़ती है, तो मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण करती है. ऐसे में बीजेपी विरोधी वोट माने जाने वाले अल्पसंख्यक वोट AIMIM को हासिल होते हैं. ऐसे में कांग्रेस को सीधे तौर पर नुकसान होता है. चाहे बिहार विधानसभा चुनाव की बात की जाए या फिर हाल ही में हैदराबाद नगर निगम चुनाव(GHMC) को देखा जाए. देखने में आया है कि ओवैसी की मौजूदगी के कारण बीजेपी को फायदा हुआ है. और कांग्रेस को नुकसान हुआ है.

जानकारों के मुताबिक अल्पसंख्यक वोट ज्यादातर कांग्रेस को हासिल होते हैं. लेकिन कट्टर मुस्लिम छवि वाली पार्टी AIMIM जब चुनाव मैदान में होती है, तो वो मुस्लिम वोट काटने में सफल होती है. आमतौर पर मुस्लिम बीजेपी की वोटर नहीं माने जाते हैं. उन्हें कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता है. ऐसी स्थिति में कांग्रेस के खाते में जाने वाली वोटें AIMIM के खाते में चली जाती हैं, जिसका फायदा बीजेपी को होता है.

MP में मुस्लिम जनसंख्या और मतदाता की स्थिति

मध्य प्रदेश में मुस्लिम जनसंख्या पर गौर किया जाए तो 2011 की जनगणना के मुताबिक 6.97 फीसदी मुस्लिम आबादी है. वहीं 2018 विधानसभा चुनाव के दौरान 38 लाख मुस्लिम वोटर दर्ज किए गए थे. कांग्रेस के मुस्लिम नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि मध्य प्रदेश में ओवैसी की चर्चा होने के दो कारण हैं.

  • एक तो मुस्लिम नेता कांग्रेस पर दबाव बनाना चाहते हैं. कि अगर मुस्लिम नेताओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला तो भविष्य में मुस्लिम नेता AIMIM की तरफ रुख कर सकते हैं.

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  • दूसरी वजह ये बताई जा रही है कि पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस करीब 10 से 12 मुस्लिम उम्मीदवार उतारती थी. लेकिन पिछले कुछ चुनाव से महज तीन और चार मुस्लिम उम्मीदवारों को कांग्रेस टिकट देती है. ऐसी स्थिति में राजनीति में सक्रिय मुस्लिम नेता अन्य संभावनाएं तलाशने लगे हैं.

मुस्लिम वोटों के आधार पर सपा-बसपा भी नहीं जमा पाई पैर

ऐसा नहीं है कि पहली बार मुस्लिम मतदाता को आधार बनाकर मध्य प्रदेश में कोई राजनीतिक दल संभावनाएं तलाश रहा हो. इसके पहले उत्तर प्रदेश में मजबूत स्थिति में रही समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी ये कोशिश कर चुकी है. दोनों ही पार्टियां मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण को आधार बनाकर मध्य प्रदेश में पैर जमाने की कोशिश कर चुकी हैं. लेकिन यह दोनों पार्टियां कोई बड़ा कमाल नहीं दिखा पाई हैं. इन पार्टियों ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ने का काम जरूर किया है. लेकिन नगरीय निकाय स्तर पर अगर AIMIM संभावनाएं तलाशती है, तो प्रदेश के कई शहरों के वार्ड के राजनीतिक समीकरण बिगाड़ सकती है.

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