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Making Of Madhya Pradesh ये है मध्यप्रदेश के गठन की इनसाइड स्टोरी, कैसे-कैसे चैलेंज आए सामने, भोपाल क्यों और कैसे बनी राजधानी

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Published : Oct 28, 2022, 7:55 PM IST

Updated : Nov 1, 2022, 12:32 PM IST

चारदीवारी और छत से जैसे घर खड़ा होता है. तसव्वुर कीजिए कि यहां तो मामला एक पूरे प्रदेश के गठन का था. क्या केवल राजनीतिक महात्वाकांक्षा के बूते मध्यप्रदेश का निर्माण संभव हो पाता. बेशक मध्यप्रदेश का गठन राजनीतिक इच्छा शक्ति का ही नतीजा था. लेकिन क्या एक सूबे की तामीर चंद सियासतदानों से मुमकिन हो पाती. गुमनाम ही रह गए कौन से हाथ थे, जो अपना घर- गांव ही नहीं, अपना शहर छोड़कर नए बन रहे मध्यप्रदेश की नींव रखने यहां आए और फिर यहीं के होकर रह गए. कैसे और क्यों भोपाल को ही राजधानी के लिए चुना गया. राजधानी के लिए प्रमुख शहरों की रस्साकसी में कैसे जबलपुर ने मात खाई और राजधानी की मुहर भोपाल के हिस्से आई. कर्मचारियों के सामने रखी गई वो कौन सी शर्त कि भोपाल में बस जाने के सिवाय उनके पास कोई चारा बाकी ना था. आइए जानते हैं कि कैसे हुआ मध्यप्रदेश का गठन, भोपाल क्यों बनी राजधानी, इस दौरान क्या -क्या चैलेंज सामने आए. (Madhya Pradesh Foundation Day) (Inside story formation MP) (How Bhopal became capital) (Making Of Madhya Pradesh)

Madhya Pradesh Foundation Day
ये है मध्यप्रदेश के गठन की इनसाइड स्टोरी

भोपाल। हैरानी होगी आपको ये जानकर कि मध्यप्रदेश को बसाने महाराष्ट्र के कई हिस्सों से कर्मचारी बुलाए गए थे. उस समय मध्यप्रदेश का निर्माण सीपी एंड बरार यानि सेंट्र्ल प्रोविंज़ एण्ड बरार के अलावा मध्य भारत विंध्य प्रदेश और भोपाल राज्य को मिलाकर ही हुआ था. ये वो समय था कि जब विंध्य प्रदेश का अपना सचिवालय था. मध्य भारत का अपना सचिवालय. उस समय अलग अलग राज्यों के कर्मचारियों को मध्यप्रदेश आने और बस जाने का विकल्प दिया गया. लेकिन छोटे कर्मचारियों के लिए बाध्यता कर दी गई थी. यानि शर्त कि उन्हें राजधानी बनाए जा रहे भोपाल आना ही होगा. (Making Of Madhya Pradesh)

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अलग-अलग राज्यों से करीब दो लाख कर्मचारी : मध्यप्रदेश बसाने के लिए अलग अलग ज़िलों से कर्मचारी बड़ी तादाद में भोपाल पहुंचे. राजधानी बने नए भोपाल में सबसे पहली बस्ती नार्थ और साउथ टीटी नगर के मकान थे. जहां कर्मचारियों को बसाया गया था. अलग अलग राज्यों और ज़िलों से यहां पहुंचे कर्मचारियों ने भोपाल बसने का फैसला किया और एक राज्य के निर्माण की ओर बढ़ रहे मध्यप्रदेश की नींव का पत्थर रख दिया. रिटायर्ड कर्मचारी नेता गणेश दत्त जोशी कहते हैं कि मध्यप्रदेश का निर्माण यकीनन राजनीतिक महत्वाकांक्षा से ही हुआ. लेकिन कर्मचारियों का इस प्रदेश के निर्माण में योगदान भुलाया नहीं जा सकता. अपना निजी घर -द्वार परिवार शहर गांव छोड़कर भोपाल आ बसे कर्मचारियों की बसाहट ने ही तो बताया कि एमपी रहने लायक प्रदेश है. पहले पूरा भोपाल केवल पुराने भोपाल में सिमटा था. लेकिन टीटी नगर के निर्माण के साथ नए भोपाल की नींव भी पड़ी. उस समय नए भोपाल में रोशनपुरा इलाके में केवल एक बाज़ार हुआ करता था. दूध से लेकर सारी ज़रूरत का सामान यहीं मिलता था.

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राजधानी भोपाल को ही क्यों चुना : राजधानी को लेकर कई महीनों तक खींचतान हुई. पहले ग्वालियर फिर इंदौर के नाम पर भी चर्चा हुई. बाद में जबलपुर और भोपाल के बीच झूलती रही बात कि किसे राजधानी बनाया जाए. लेकिन राजधानी के नाम पर मुहर आखिरकार भोपाल पर ही लगी. गणेश दत्त जोशी बताते हैं कि भोपाल के राजधानी बनाए जाने की वजह में भोपाल नवाब की दरियादिली का भी ज़िक्र आता है. नवाब साहब ने सरकार को अपनी ईमारतें दे दी थीं. मिंटो हॉल को विधानसभा बना दिया गया. सारी बड़ी इमारतें भोपाल में नवाब साहब ने हीं दी थी सरकार को. इसी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ये फैसला किया कि राजधानी भोपाल को बनाते हैं और जबलपुर की भरपाई हाईकोर्ट देकर पूरी करेंगे.

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जबलपुर इसलिए नहीं बन सका राजधानी : असल में भोपाल के मुकाबले राजधानी के हिसाब से जबलपुर में उतनी जगह नहीं थी. हालांकि भोपाल राजधानी बनने के बाद ही जिला घोषित हो पाया. 1972 में भोपाल को जिला बनाया गया. जिस समय मध्यप्रदेश का गठन हुआ तब प्रदेश में जिलों की संख्या केवल 43 थी. एक नवम्बर 1956 को जब मध्यप्रदेश का गठन हुआ. उसके बाद राजधानी भोपाल तो बाबूओं का शहर ही कहा जाने लगा. उसकी वजह ये थी कि प्रदेश के अलग अलग हिस्सों से आए बाबूओं ने ही तो इस शहर को बसाया था.

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Last Updated : Nov 1, 2022, 12:32 PM IST
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