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आजादी के 47 साल बाद मिला किन्नरों को वोटिंग अधिकार, पहला किन्नर विधायक-महापौर देश को MP ने दिया, जानें अबतक की हिस्ट्री

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 7, 2023, 9:39 PM IST

Updated : Nov 7, 2023, 11:00 PM IST

MP Election History: एमपी में विधानसभा चुनाव हो, और किन्नरों की चर्चा न हो, तो बात अधूरी रह जाएगी. प्रदेश में अक्सर चुनावी साल में किन्नर उम्मीदवार चर्चा में रहते हैं. लगभग 1 प्रतिशत से कम हिस्सेदारी रखने वाले किन्नर वर्ग से ही एक विधायक बनाकर सदन में पहुंचाया. ऐसा पहली बार हुआ था, जिस राज्य ने किन्नर को विधायक चुना. साथ ही मध्यप्रदेश ही ऐसा राज्य जहां से दो बार महापौर को जनता ने चुना और नगर निगम का शीर्ष नेतृत्व दिया. ऐसे में ईटीवी भारत मध्यप्रदेश विधानसभा के मद्देनजर खास रिपोर्ट लेकर आया है. पढ़ें, हैदराबाद से ईटीवी भारत के लिए कार्तिक सागर समाधिया की रिपोर्ट...

Transgender Electoral History of Madhya Pradesh
मध्यप्रदेश की राजनीति में किन्नरों का इतिहास

हैदराबाद। एमपी चुनाव में सियासी दावेदारी ठोक रहे सभी दलों ने अपने- अपने खिलाड़ी चुनावी मैदान में उतार दिए हैं. प्रदेश में करीबन 2533 उम्मीदवार चुनावी मैदान में है. इनमें सबसे ज्यादा संख्या पुरुषों की है. चुनाव में पुरुष उम्मीदवार 2,280 हैं. इसके अलावा महिला मतदाता 252 है. इसके अलावा एक थर्ड जेंडर यानि किन्नर वर्ग को उम्मीदवार बनाया है. साथ ही नोमिनेशन के 500 ऐसे फॉर्म थे, जिन्हें चुनाव आयोग ने रिजेक्ट कर दिया.

(इसी सिलसिले में आज हम लाएं, एमपी की राजनीति में कितने किन्नर चुनावी मैदान में उतरे हैं? साथ ही पता लगाएंगे, इस वर्ग के लोगों को चुनाव लड़ने का अधिकार कब मिला, और 2018 और 2023 में कितने किन्नर उम्मीदवार मैदान में उतरे? आइए विस्तार से समझते हैं...)

कब मिला इस वर्ग को अधिकार: हमेशा देश की राजनीति में हाशिए पर किन्नर वर्ग को आजाद भारत में काफी सालों बाद मतदान का अधिकार दिया गया. जिसके बाद से चुनाव के जरिए लोकतंत्र में इस वर्ग के लोगों की वजूद की बात होने लगी. साल 1994 था, जब किन्नर वर्ग को लोकतंत्र का हिस्सेदार बनाया गया. इसके तहत इन्हें मतदान का अधिकार मिला. जिसके बाद से इस वर्ग की लोकतंत्र में हिस्सेदारी सुनिश्चित की गई.

कितने किन्नर वोटर की हिस्सेदारी: ये आंकड़े साल 2018 के समय है. यहां प्रदेश में कुल 5.4 करोड़ वोटर्स हैं. इसमें किन्नर वर्ग की हिस्सेदारी कुल 14,010 है.

एमपी ने ही सबसे पहले दी राजनीतिक पहचान: 1994 में किन्नर वर्ग को चुनावी अधिकार मिलने के बाद इस वर्ग के लोगों की हिस्सेदारी तो सुनिश्चित हुई, लेकिन इन्हें लोकतांत्रिक सदन में पहुंचने में वक्त लगा. पहली बार मध्यप्रदेश ऐसा राज्य बना जिसने किन्नर को विधायक बनाया. 1998 में देश की पहली विधायक शबनम मौसी बनीं, तो इधर मध्यप्रदेश की ही कमला जान एमपी से देश की पहली महापौर बनीं. प्रदेश में इस वर्ग के एक परसेंट वोटर्स हैं.

2018 में 6 किन्नर उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे: एमपी में पहली बार जब किन्नर विधायक चुना गया तो, इसकी चर्चा पूरे देश में हुई. लेकिन साल 2018 का चुनाव भी चर्चा का विषय बना रहा. करीबन 6 किन्नर उम्मीदवारों ने चुनावी मैदान अपनी ताल ठोकी. इनमें कोतमा से पूर्व विधायक शबनम मौसी, मुरैना की अंबाह सीट से नेहा किन्नर, दमोह जिले से रिहाना सब्बो बुआ, शहडोल से सल्लू मौसी, होशंगाबाद से पांची देशमुख और इंदौर-2 से बाला वैश्वरा चुनावी मैदान में उतरीं थी. इनमें दो उम्मीदवार को छोड़ दें, तो सभी चार उम्मीदवार पहली बार चुनाव मैदान में उतरे थे.

पहचान के संकट से जूझ रहा किन्नर वर्ग: हम कितनी ही लोकतंत्र में भागीदारी सुनिश्चित करने की बात कर लें, लेकिन हमेशा से इस वर्ग को हाशिए पर देखा गया है. महिलाओं की तरह ही इस वर्ग को अपनी पहचान और सम्मान का संकट है. इस वर्ग का राजनीति में हाथ आजमाना और भी बडी बात है.

देश का एकलौता किन्नर विधायक एमपी ने दिया: जब किन्नर वर्ग के लोगों को मतदान का अधिकार मिला, तो किसी ने सोचा नहीं था कि मध्यप्रदेश ऐसा राज्य होगा, जो पहला किन्नर विधायक देश को देगा. 1994 में अधिकार मिलने के बाद इस वर्ग के कई लोग चुनावी मैदान में उतरे. लेकिन शबनम मौसी ही ऐसी थीं, जिन्हें जनता ने चुनाव जिताकर विधानसभा भेजा. उन्होंने 1998 में एमपी के शहडोल-अनूपपुर जिले की सोहागपुर सीट से चुनाव लड़ा. वे यहां से निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरीं. यानि अधिकार मिलने के चार साल बाद ही लोकतंत्र में इस वर्ग के प्रतिनिधित्व को देश ने देखा.

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शबनम मौसी ने कांग्रेस के गढ़ में लगाया था सेंध: जिस सीट से पहली बार शबनम मौसी चुनाव जीतीं, वो सीट न सिर्फ चर्चित सीट थी, बल्कि, यह कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी. शहडोल जिले की सोहागपुर सीट से दिग्गज नेता केपी सिंह की मृत्यु हो गई थी. इसी सिलसिले में उपचुनाव हुए. फरवरी महीने इस चुनाव ने इतिहास बना दिया. ये कांग्रेस का गढ़ था, क्योंकि इमरजेंसी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी चुनाव हार गईं थी, लेकिन शहडोल की सोहागपुर सीट से कांग्रेस के केपी सिंह ने विजय हासिल की थी.

इस उपचुनाव में बीजेपी, कांग्रेस समेत 9 लोग चुनाव लड़े. इनमें बतौर निर्दलीय प्रत्याशी शबनम मौसी ने नामांकन दाखिल किया. इस चुनाव में उन्हें पतंग का चुनाव चिन्ह मिला. इसके बाद उनकी पतंग ने इतनी ऊंचाई नापी की, सबकी डोर काटकर उन्होंने इतिहास रच दिया. इस चुनाव में उन्होंने 40.8% वोट हासिल किए. उन्हें 39,937 वोट मिले थे. इसके बाद साल 2005 के चुनाव में शबनम मौसी को हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद वे अनूपपुर चली गईं. आज भी पूर्व विधायक के रूप में पेंशन के जरिए गुजर-बसर कर रही हैं. उनपर एक फिल्म भी बनी है, जिसमें उनकी भूमिका आशुतोष राणा ने निभाई है.

2018 के चुनाव में पांची देशमुख को हिंदू महासभा ने दिया टिकट: इनके अलावा इसी वर्ग का एक और नाम काफी चर्चा में रहा. साल 2018 में हिन्दू महासभा ने सभी को चौंकाते हुए, पांची को टिकट दिया. साल 2003 में होशंगाबाद सीट से उन्होंने चुनाव लड़ा. इसमें वे अपनी जमानत बचाने में काफी कामयाब रहीं. यहां से प्रदेश की राजनीति का चर्चित नाम डॉ. सीतासरन शर्मा चुनावी मैदान थे. इस बार भी वे इसी सीट से चुनावी मैदान में हैं.

पहला किन्नर मेयर एमपी ने दिया: एमपी की राजनीति में किन्नरों की राजनीतिक भूमिका पर नजर डाली जाए, तो प्रतिशत में हाशिए पर इस वर्ग के लोगों का जीतकर सदनों में जाना और संवैधानिक पद पर अपनी छाप छोड़ना, मामूली बात नहीं है. प्रदेश ने शबनम मौसी के बाद एक बार फिर चौंकाया था. जब यहां से पहली मेयर का चुनाव एक किन्नर उम्मीदवार ने जीता. ये कटनी नगर परिषद थी. जहां से 1999 में मेयर के चुनाव हुए थे. इस चुनाव में कमला जान ने जीत हासिल कर महापौर का पद हासिल किया था. इसके बाद साल 2009 में सागर नगर निगम ने इसी इतिहास को दोहराया और कमला मौसी को चुनाव जीताकर महापौर बनाया.

साल 2023 में एकलौती किन्नर उम्मीदवार: एमपी में 2023 विधानसभा चुनाव की तैयारियां पूरी हो चुकी है. निर्वाचन आयोग भी सतर्क है. ऐसे में नामांकन दाखिल करने का सिलसिला भी थम चुका है. लेकिन इस बार चर्चा शहडोल जिले की जैतपुर विधानसभा की हो रही है. यहां से काजल किन्नर को चुनावी मैदान में उतारा गया है. काजल ने अपना नामांकन वास्तविक भारत पार्टी की ओर से दाखिल किया है.

इस बार सिर्फ काजल ही एक ऐसी उम्मीदवार हैं, जिन्होंने साल 2023 के चुनाव में अपना भाग्य आजमाने का फैसला किया है. काजल कई मांगो को लेकर चुनावी मैदान में हैं. इसमें बिजली, पानी, स्कूल जैसे बुनियादी मुद्दे शामिल हैं.

Last Updated : Nov 7, 2023, 11:00 PM IST
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