ETV Bharat / state

Bhopal Gas Tragedy 38 Years: चंद लम्हों में लग गया था लाशों का ढेर, आज भी हरे हैं उस स्याह रात के जख्म

author img

By

Published : Nov 30, 2022, 7:54 PM IST

Updated : Dec 2, 2022, 10:03 AM IST

भोपाल गैस त्रासदी को हुए 38 बरस हो रहे हैं. 2 और 3 दिसंबर, 1984 की दरमियानी रात को चंद घंटों में हजारों लोगों ने अपनी जान गवां दी थी. आज भी उस काली रात का दंश झेल रहे हैं गैस कांड के पीड़ित. पढ़िए उस काली रात से आज तक की दास्तां... [Bhopal Gas Tragedy 38 years]

Etv Bharat
Etv Bharat

भोपाल। आज़ाद भारत के इतिहास की सबसे दर्दनाक ओद्योगिक त्रासदी है, भोपाल गैस कांड. ये पीढ़ियों से चला आ रहा ऐसा जख्म है जो 38 साल बाद भी जेहन में ताजा है. 38 बरस पहले 2 और 3 दिसंबर, 1984 की दरमियानी रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से निकली जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट ने हजारों लोगों की जान ले ली थी.

ये हुआ था त्रासदी की उस रात: साल 1984 में 2 और 3 दिसंबर की दरमियानी रात डाउ केमिकल्स का हिस्सा रहे यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के प्लांट नंबर सी से गैस रिसने लगी, यहां प्लांट को ठंडा करने के लिए मिथाइल आइसोसायनेट नाम की गैस को पानी के साथ मिलाया जाता था. उस रात इसके कॉन्बिनेशन में गड़बड़ी हो गई और पानी लीक होकर टैंक में पहुंच गया. इसका असर यह हुआ कि प्लांट के 610 नंबर टैंक में तापमान के साथ प्रेशर बढ़ गया और उससे गैस लीक हो गई. देखते ही देखते हालात बेकाबू हो गए. जहरीली गैस हवा के साथ मिलकर आस-पास के इलाकों में फैल गई और फिर जो हुआ वह भोपाल शहर का काला इतिहास बन गया. [Bhopal gas tragedy 1984]

पास की झुग्गियां बनी थीं शिकार: गैस सबसे पहले फैक्ट्री के पास बनी झुग्गियों में पहुंची. यहां गरीब परिवार रहते थे. गैस इतनी जहरीली थी कि कई लोग महज तीन मिनट में ही मर गए. जब बड़ी संख्‍या में लोग गैस से प्रभावित होकर आंखों में और सांस में तकलीफ की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंचे, तो डॉक्टरों को भी पता नहीं था कि इसका इलाज कैसे किया जाए. मरीजों की संख्या भी इतनी ज्याादा थी, कि लोगों को भर्ती करने की जगह नहीं रही.

10 घंटे चला था गैस का तांडव: गैस रिसाव की खबर जब तक नेताओं अफसरों तक पहुंची, तब तक तबाही मच चुकी थी. गैस रिसाव को रोकने का काम शुरू हुआ. करीब 10 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद गैस रिसाव से शहर को रोका जा सका. लेकिन तब तक यह जहरीली गैस भोपाल में काफी तबाही मचा चुकी थी.

कैंसर का दंश झेल रहे हैं गैस पीड़ित: भोपाल गैस त्रासदी के दौरान प्रभावित हुए गैस पीड़ितों में कई ऐसे हैं जो कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहे हैं. इनके इलाज के लिए गैस राहत विभाग ने एम्स से समझौता करते हुए इन मरीजों को इलाज दिलाने की तैयारी की है. लेकिन, दूसरी ओर गैस पीड़ित संगठन ने सवाल उठाया है कि जब एम्स में कैंसर के इलाज के लिए बेहतर डॉक्टर नहीं हैं, तो वहां इलाज कैसे होगा और अगर होगा तो उसका खर्च कौन उठायेगा, इसे भी स्पष्ट किया जाए. संगठनों का कहना है कि करीब साल भर पहले ही हाई कोर्ट ने भोपाल एम्स में गैस पीड़ितों के इलाज के लिए कहा था.

कई गैस पीड़ितों के पास आयुष्मान कार्ड नहीं है: भोपाल में गैस पीड़ितों के लिए भोपाल मेमोरियल अस्पताल और गैस राहत अस्पताल है, जहां गैस पीड़ितों का इलाज होता है. लेकिन, डॉक्टरों की कमी के चलते अस्पतालों में कई विभाग बंद हो चुके हैं और मरीज प्राइवेट अस्पतालों में इलाज के लिए भटक रहे हैं. इसके बाद प्रदेश सरकार ने इन्हें आयुष्मान योजना से जोड़ दिया, लेकिन उसके बाद भी कई लोग इलाज ना मिलने के कारण परेशान होते हुए नजर आए, जबकि कई गैस पीड़ितों के पास आयुष्मान कार्ड नहीं होने के चलते वे इलाज से वंचित हो रहे हैं.[Bhopal Gas Tragedy 38 years]

Bhopal Gas Tragedy: गैर सरकारी संगठनों ने भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के लिए की अतिरिक्त मुआवजे की मांग

90 फीसदी पीड़ितों को सरकार मानती है आंशिक प्रभावित: भोपाल में साल 1984 में हुई भयावह गैस त्रासदी के चलते आज भी लोग बीमारियों का दंश झेल रहे हैं. आज भी उन लोगों को अस्पताल के चक्कर काटने पड़ते हैं. सरकार 90 फ़ीसदी लोगों को इस गैस की वजह से आंशिक प्रभावित मानती है. जबकि, हकीकत कुछ और ही है. गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन के मुताबिक 70 प्रतिशत लोग एमआईसी गैस के चलते पूरी तरह से प्रभावित हुए हैं. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो आंकड़े पेश किए हैं, उसके मुताबिक ऐसी जानलेवा गैस से केवल 5,000 लोगों की मौत हुई है. जबकि संगठनों का कहना है कि अब तक इस त्रासदी के चलते 15 हज़ार 300 से ज्यादा लोगों की जानें गई है. सरकारी दस्तावेज और अस्पताल के रिकॉर्ड के मुताबिक यह बात साफ हो जाती है कि 90 फ़ीसदी गैस पीड़ित आज भी पुरानी बीमारियों के चलते अस्पताल में इलाज करवा रहे हैं

जीवन भर रहता है एमआईसी गैस का असर: गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली सद्भावना ट्रस्ट की सदस्य रचना ढींगरा ने बताया कि "यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के आंतरिक दस्तावेजों में भी यह बात साफ लिखा है कि अगर एक बार कोई भी व्यक्ति मिथाइल आइसोसाइनेट गैस की चपेट में आ जाए, तो फिर जीवन भर इस गैस का असर शरीर पर दिखाई देता है. चाहे जितना भी इलाज हो जाए. एमआईसी की चपेट में आए व्यक्ति पर इस गैस का प्रभाव जीवन भर रहता है". उन्होंने कहा कि पिछले 11 सालों से राज्य सरकार से गैस पीड़ित संगठन यही आग्रह कर रहे हैं कि कम से कम सुप्रीम कोर्ट में मरने वालों के सही आंकड़े पेश किए जाएं, जिससे डाउ केमिकल और यूनियन कार्बाइड से सही मुआवजा लिया जा सके.

सिर्फ बरसी पर याद आती है ये त्रासदी: इतने सालों में घटना को हर बार बरसी पर याद कर लिया जाता है. कुछ जगहों पर पीड़ितों के समर्थन कुछ एनजीओ धरना प्रदर्शन करेंगे. पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजा दिलाने के तमाम वादे किए जाते हैं.लेकिन दिन गुजरते ही वादों को घटना की तरह दफन कर दिया जाता है.यूनियन कार्बाइड कारखाने का मालिकाना अधिकार अमेरिका की कंपनी के पास होने के कारण हमेशा यह मांग उठती रही है कि गैस पीड़ितों को डॉलर के वर्तमान मूल्य पर मुआवजा दिया जाना चाहिए. इस याचिका में दिए गए निर्देश अभी भी सरकारी फाइलों में ही बंद हैं.

Last Updated : Dec 2, 2022, 10:03 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.