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अस्पताल में मिलने वाले खाने की गुणवत्ता से समझौता क्यों?

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Published : Mar 10, 2021, 10:26 PM IST

Updated : Mar 10, 2021, 11:05 PM IST

Bhind District Hospital
भिंड जिला अस्पताल

स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर तो भिंड जिले के सभी शासकीय अस्पतालों के हाल बेहाल हैं. लेकिन जिला अस्पताल में मरीजों को उस स्तर की सुविधाएं नहीं मिल रही है, जिसका दावा किया जाता है. खासतौर पर अस्पताल में भर्ती हुए मरीजों को मिलने वाले भोजन की स्थिति जानने के लिए ईटीवी भारत ने अस्पताल का रुख किया.

भिंड। अक्सर लोग बीमार पड़ते हैं, जिसके बाद गंभीर परिस्थिति के चलते उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है. ऐसे में शासकीय अस्पतालों में निःशुल्क इलाज मुहैया कराया जाता है, साथ ही इलाज के लिए भर्ती होने पर विशेष चिकित्सा सुविधाएं भी मुहैया कराई जाती है. लेकिन जब मरीजों को अस्पताल में रुकना पड़े, तो उनके स्वास्थ्य रिकवरी के लिए अच्छे पोषण आहार की व्यवस्था, स्वास्थ्य विभाग की ओर से की जाती है. ऐसे में यह जरूरी होता है कि मरीज को मिलने वाला भोजन साफ सुतरे तरीके से पकाया गया हो और पौष्टिक हो. इसके लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से डाइट मेन्यू में भी पहले से ही तय होता है कि भिंड जिला अस्पताल में मिलने वाले मरीजों के भोजन की क्या है स्थिति. जानिए रिपोर्ट के माध्यम से..

मरीज के खाने की गुणवत्ता से समझौता क्यों

हाल बेहाल हैं व्यवस्थाएं

कहने को भिंड जिला अस्पताल लगातार तीन साल से प्रदेश का नंबर 1 अस्पताल रह चुका है. तीन सालों में भी जिला अस्पताल टॉप 3 में अपनी जगह बनाए हुए है. लेकिन यह रैंकिंग अस्पताल के कायाकल्प के लिए है. स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर तो भिंड जिले के सभी शासकीय अस्पतालों के हाल बेहाल हैं. लेकिन जिला अस्पताल में मरीजों को उस स्तर की सुविधाएं नहीं मिल रही है, जिसका दावा किया जाता है. खासतौर पर अस्पताल में भर्ती हुए मरीजों को मिलने वाले भोजन की स्थिति जानने के लिए ईटीवी भारत ने अस्पताल का रुख किया, तो चौंकाने वाली तस्वीरें सामने आई है.

खुद मरीजों को जाकर लेना पड़ता है भोजन

जिला अस्पताल में भर्ती मरीजों के इलाज और देख रेख की जिम्मेदारी अस्पताल प्रबंधन की होती है, जिसमें नतीजों को मिलने वाला भोजन भी शामिल है, जब हम जिला अस्पताल पहुंचे तो हमने पाया कि अस्पताल प्रबंधन द्वारा भोजन की व्यस्थापन तो की गयी है लेकिन यह मरीजों तक ले जाने की बजाय गैलरी में भोजन ट्रॉली खड़ी कर दी गयी और मरीज के परिजन को ट्रॉली तक भोजन लेने जाना पड़ा और जो मरीज अकेले थे उन्हें तो खुद उठाकर अपना भोजन लेना पड़ा.

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दिखाने मात्र के मैन्यू

नतीजों के शीघ्र स्वस्थ होने के लिए सही मात्रा में पौष्टिक आहार मिलना जरूरी होता है. जिसके लिए शासन की ओर से एक डाइट चार्ट भी तैयार किया गया है जिसमें दिन वार अलग-अलग तरह का भोजन मरीजों को प्रदाय किए जाने का प्रावधान है. जिसमें सुबह नाश्ते में एक ग्लास दूध 250 मि.ली, दलिया, चना, उपमा जैसे हल्के आहार दिए जाने होते हैं. दोपहर के भोजन में सलाद-एक कटोरी , रोटी 3-4 नग, एक मौसमी, हरि सब्जी (लौकी, तोरई, सैम, भिंडी, टमाटर, पालक), दाल-1 कटोरी ( 30ग्राम ), चावल- 1कटोरी (150 ग्राम), शाम को चाय के साथ 4 बिस्कुट, रात के खाने में दोपहर की तरह ही एक हरी सब्जी दाल और रोटियां देने का प्रावधान है. लेकिन भिंड में यह डाइट चार्ट या कहे मेन्यू महज दिखावे के लिए टांग दिया गया है.

मरीजों को मिलने वाले भोजन में हमने पाया की मरीजों के लिए सलाद के नाम पर एक मुट्ठी कटी हुई मूली दी जाती है. सीजनल हरी सब्जी की जगह सिर्फ आलू की रसीली सब्जी, दाल, चावल और सूखी रोटी उपलब्ध करायी गयी. इतना ही नहीं मरीजों को पूरा भोजन व्यवस्थित देने की बजाय भोजन लेकर आए कर्मचारी भी यह पूछते मिले की ‘सब्जी लोगे या दाल’ वहीं एक अस्पताल में भर्ती एक बच्चों के परिजन से भी जब हमने पूछा के सुबह के नाश्ते में क्या दिया गया, तो उन्होंने एक डब्बा दिखाया, जिसमें पानी की तरह दिखता दूध और दलिया एक साथ दिया गया था. जिससे उसकी घटिया गुणवत्ता साफ देखी जा सकती थी.

बर्तन नही, तो भोजन नहीं

बात यही नहीं रुकती अपनी पड़ताल के दौरान हमने पाया कि अस्पताल प्रबंधन की ओर से मरीजों को भोजन करने के लिए किसी तरह के बर्तन उपलब्ध नहीं कराए गए थे. जो भी लोग भोजन लेने पहुंचे वह अपने बर्तन लेकर पहुंचते दिखे. कई लोग दाल या सब्जी के लिए कटोरे लेकर तो आए लेकिन रोटियां हाथ में लेकर गए, जबकि अस्पताल प्रबंधन इनके लिए कम से कम डिस्पोजेबल थालिया तो उपलब्ध करा सकता था, आप अपने कवरेज के दौरान हमारे सामने ऐसी तस्वीर भी आयी जिसने वाकई प्रबंधन की सभी व्यवस्थाओं की पोल खोल दी है.

हाथों में रोटियां?

वार्ड में जब हम दाखिल हुए तो आखिरी बेड पर मौजूद एक मरीज भोजन कर रहा था. हमने देखा की रोटियां हाथों में थी और दाल खाने के लिए वह नहाने वाले डिब्बे का उपयोग कर रहा था, जब हमने उससे पूछा तो उसने बताया कि यहां भोजन करने के लिए अपने बर्तन ले जाना जरूरी है यदि बर्तन न हो तो खाना नहीं दिया जाता है. वह फूप तहसील से इलाज कराने आया था. इसी वजह से उसके पास बर्तन नहीं थे. इसलिए बाजार से डब्बा मंगाकर उसमें दाल ली है. बर्तन ना होने पर खाना ना मिलने की बात हमें और भी मरीजों ने बताई.

हाईजीन का नहीं रखा जा रहा ध्यान

स्वस्थ शरीर के लिए स्वस्थ और स्वच्छ भोजन भी आवश्यक है खासकर अस्पताल में भर्ती मरीज़ों को बेहतर रिकवरी के लिए भोजन में हाईजीन का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है खाना साफ़ सुथरे तरीक़े से बनाया जाए और मरीज़ों को परोसा जाए लेकिन ज़िला अस्पताल में दोनों ही बातों पर सवाल खड़े कर दिए, मरीज़ों को मिलने वाले भोजन को बनाने का तरीक़ा देखने जब हम जिला अस्पताल की रसोई में पहुँचे तो हमने पाया कि रसोई कर्मचारी फ़र्श पर बैठकर तो चने खा रहे थे पूरे फ़र्श पर गंदगी का आलम पकड़ा हुआ था वहीं जब हमने खाना परोसने वाले कर्मचारियों को देखा तो सब एक कर्मचारी ने अपने एक हाथ में ब्लॉग पहन रखा था लेकिन भोजन वितरण वह दूसरे हाथों से कर रहा था खाना परोसने में भी हाइजीन का बिलकुल ध्यान नहीं रखा गया मरीज़ों से बात करने पर हमें यह तो पता चला कि खाने का स्वाद तो अच्छा है लेकिन जिस तरह से हाइजीन के साथ मज़ाक बनाया जा रहा है वह बेहद आपत्तिजनक है.

अटेंडर हो तो बाहर से मंगाकर खाएं

अस्पताल परिसर में हमें एक और समस्या देखने को मिली. यहां भोजन प्रदाय की व्यवस्था सिर्फ मरीजों के लिए हैं. ऐसे में उनके साथ आयी अटेंडेंट को बाहर से खाना मंगाकर खाना पड़ता है. अस्पताल में भर्ती एक मरीज के परिजन ने बताया कि 'मैं कुछ दिनों से अपने मरीज के साथ यहां रुके हुए हैं' लेकिन उनके लिए किसी तरह की खाने की व्यवस्था नहीं है. उन्हें या तो बाहर से या अपने रिश्तेदारों के घर से खाना मंगाना पड़ता है. वहीं एक बुजुर्ग महिला ने तो बताया कि वह हां खाना बांटने आई ट्रॉली के पास पहुंची तो कर्मचारियों ने मरीजज के लिए तो खाना दिया लेकिन उन्हें खाना देने से साफ इंकार कर दिया. ऐसे में यह भी बड़ा सवाल है के मरीजों के साथ आने वाले अटेंडेंट या बुजुर्ग के पास यदि बाहर से मंगाने की व्यवस्था ना हो तो उसे भूखा ही रहना पड़ेगा.

अस्पताल प्रबंधन की सफाई

रसोई घर से लेकर मरीज आपको हो रही परेशानियों और जिला अस्पताल में भोजन प्रदाय सिस्टम में सामने आयी खामियों को लेकर जब हमने रसोई इंचार्ज डॉक्टर आरएन राजौरिया से बात की तो उन्होंने कहा कि हमारे यहां भोजन को लेकर किसी तरह की लापरवाही नहीं बरती जाती है. उनका कहना था कि शासन द्वारा तय मानक पर भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है. मामला मरीजों के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है. इसलिए सभी बातों का ध्यान रखा जाता है. उन्हें मैन्यू के हिसाब से भोजन दिया जा रहा है. हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि शासन की ओर एक मरीज पर एक दिन के खाने का भय रुपये हैं. ऐसे में महंगाई अब बढ़ती जा रही है लेकिन शासन की ओर से तय दर आज भी उतना ही है. इसलिए वे जितना संभव है, खाने की गुणवत्ता में किसी तरह का समझौता नहीं किया जाता है.

मांगने पर मिलती है थालियां- सिविल सर्जन

वहीं भोजन प्रदाय सिस्टम में सामने आयी अनियमितता को लेकर जब हमने जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉक्टर अनिल गोयल से बात की और उन्हें पूरी स्थिति से अवगत कराया तो उन्होंने व्यवस्था में सुधार की बात कही उन्होंने बताया कि मरीजों को मिलने वाले खाने के लिए हर वार्ड में थालियां रखवाई गई है, जो भी मरीज क्या है, वह वार्ड बॉय से थालिया ले सकते हैं. उन्होंने यह भी कहा की कई बार लोग अस्पताल से थालियां चुरा ले जाते हैं. जिसकी वजह से थाली मांगने पर उपलब्ध करायी जाती है, साथ यह भी बताया कि कई लोग अस्पताल की थालियों में भोजन करना पसंद नही करते इस लिए वे अपने साथ अपने बर्तन लेकर आते हैं. डॉक्टर गोयल ने आश्वासन दिया कि जो भी कमियां सामने लायी जा रहीं है. उन पर काम कर उन्हें दूर करने का प्रयास किया जाएगा.

बेहतर मिले मरीज को खाना

आज भले ही जिला अस्पताल प्रदेश में दूसरे पायदान पर हो, लेकिन मरीजों को मिलने वाली सुविधाएं और व्यवस्थाओं के मामले में फिसड्डी साबित हो रहा है. क्योंकि खुले में भोजन प्रदाय हाइजीन की अनदेखी और कर्मचारियों की लापरवाही कहीं न कहीं मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर ही रही है, साथ ही शासन की मंशा पर भी पानी फेर रही है. इन व्यवस्थाओं में सुधार की बेहद जरुरत है लेकिन इसके लिए शासन को भी ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि जिस कदर आज देश में महंगाई चरम पर है. ऐसे में एक मरीज के लिए पूरे दिन के खाने का खर्च महज रुपये रखा गया है, लेकिन यह सभी जानते हैं कि 50 रुपये से भी कम कीमत में पर बनायी जाने वाले खाने की गुणवत्ता क्या हो सकती है, तो इसलिए शासन को भी मरीजों के भोजन पर होने वाले व्याय को बढ़ाने पर विचार करना चाहिए.

Last Updated :Mar 10, 2021, 11:05 PM IST
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