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Mother's Day special: डकैतों ने कर दी थी पति की हत्या, मां ने संघर्ष करते हुए बच्चों को पढ़ा लिखाकर बनाया जज

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Published : May 8, 2022, 9:07 PM IST

bhind mother struggled and made children judge
भिंड मां ने संघर्ष किया और बच्चों को बनाया जज

भिंड की एक ऐसी मां जिसने अपने बच्चों को बदला लेने के लिए डकैत बनने के चंबल के कानून से अलग अपने बच्चों को अलग राह दिखाई. रात भर जागकर उन्हें पढ़ाया. इस मदर्स डे पर ईटीवी भारत आपको ऐसी मां से रूबरू कराने जा रहा है. जिन्होंने अपने जीवन में संघर्ष और तपस्या से अपने दोनों बेटों को न्यायाधीश बनाया ताकि वे किसी के साथ अन्याय न होने दें. (bhind mother struggled and made children judge)

भिंड। कहा जाता है चंबल के पानी की तासीर गर्म है यहां बात बात पर बंदूक की गोलियां चल जाती हैं. लंबे समय तक यहां डकैतों का राज भी रहा, लेकिन इसी चंबल में डाकुओं से पीड़ित एक ऐसी मां भी रहती है, जिसने अपने बच्चों को खून का बदला खून की चंबल की रीति में नहीं ढलने दिया. मां पढ़ा लिखा कर अपने बेटों को शिक्षित किया. इस मदर्स डे पर ईटीवी भारत आपको ऐसी मां से रूबरू कराने जा रहा है. जिन्होंने अपने जीवन में संघर्ष और तपस्या से अपने दोनों बेटों को न्यायधीश बनाया. (bhind mother struggled and made children judge)

Mother's Day special
मदर्स डे स्पेशल

दोनों बेटों को बनाया न्यायधीश: जिस चंबल में खून का बदला लोग खून से ले लेते हैं, वहीं एक मां की तपस्या ने अपने बच्चों को उस काबिल बनाया है कि वे खूनीखेल खेलने वालों को सलाखों के पीछे पहुंचा सके उन्हें सजा दे सकें. ये मां हैं कृष्ण कुमारी भदौरिया, जिनके दो बेटे हैं. बड़े बेटे कृष्णपाल सिंह भदौरिया और छोटे बेटे कौशलेंद्र सिंह भदौरिया दोनों न्यायाधीश बन चुके हैं. जज कृष्ण पाल सिंह भदौरिया छत्तीसगढ़ के जशपुर में पदस्थ हैं, जबकि कौशलेंद्र सिंह भदौरिया मध्य प्रदेश के डबरा में एडीजे हैं.

bhind mother struggled and made children judge
भिंड मां ने संघर्ष किया और बच्चों को बनाया जज

डाकुओं ने कर दी थी पति की हत्या: कृष्ण कुमारी भदौरिया पहले भिंड के कनावर गांव में परिवार के साथ रहती थी. पति बृजभूषण सिंह न्यायालय में क्लर्क थे. 25 नवंबर 1989 में डकैतों ने उनकी हत्या कर दी थी. उससे पहले भी गांव में जमीनी विवाद में उनके देवर की हत्या हो गयी थी. वहीं पति की हत्या के बाद दूसरे देवर की भी हत्या कर दी गयी थी. इस तरह के हालात देखते हुए कृष्ण कुमारी भदौरिया ने गांव से भिंड शिफ्ट होने का फैसला लिया.

बदले की परंपरा से बच्चों को रखा दूर: बड़ा बेटा कृष्ण पाल सिंह जब 16 साल का था और छोटा बेटा कौशलेंद्र सिंह जब 13 साल का था, तब उसके पिता की हत्या हुई थी. दोनों बेटों के पालन पोषण की जिम्मेदारी भी अब मां पर ही थी. ग्रामीण परिवेश में बदले की परंपरा में कहीं बच्चे भी ना ढल जाएं यह सोच कर उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर एक अच्छा इंसान बनाने का फैसला लिया, और भिंड के राजपूत बोर्डिंग में रहकर पढ़ाने का संकल्प किया.

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रात रात भर जागकर बेटों को पढ़ाया: अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए कृष्ण कुमारी भदौरिया का संघर्ष भी किसी तपस्या से कम नहीं था. बच्चों की पढ़ाई में खलल न पड़े इसके लिए वे रात रात भर जागकर अपने बेटों को पढ़ाती थी. पढ़ाई के साथ-साथ घर के काम और बेटों के पालन पोषण की पूरी जिम्मेदारी भी वह अकेली संभाल रहीं थीं.

मेहनत रंग लाई, दोनों बेटे बने न्यायधीश: लंबे संघर्ष के बाद उनके बड़े बेटे कृष्णपाल सिंह भदौरिया को पिता की जगह अनुकंपा नियुक्ति मिल गई, साथ ही वे कॉलेज की पढ़ाई भी करते रहे. वहीं छोटे बेटे कौशलेंद्र सिंह ने भी पहले बीएससी और फिर एलएलबी की. 2008 में उनका चयन सिविल जज के लिए हो गया. वे अब मध्य प्रदेश के डबरा में एडीजे के पद पर पदस्थ हैं. वहीं कृष्ण कुमारी भदौरिया के बड़े बेटे कृष्ण पाल सिंह ने नौकरी के साथ लॉ की पढ़ाई जारी रखी, और करीब 9 साल तक नौकरी करने के बाद 2009 में उनका भी चयन सिविल जज के लिए हो गया. आज वे भी छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में एडीजे के पद पर पदस्थ हैं.

प्रेरणादायी है मां का जीवन: उनके दोनों ही बेटे अपनी मां के त्याग संघर्ष और तपस्या की इज्जत करते हैं. आज भी अपनी मां से उतना ही प्यार करते हैं. एडीजे कौशलेंद्र सिंह भदौरिया ने कहा,

उनकी मां का पूरा जीवन ही उनके लिए प्रेरणादायी है. वह आज जो कुछ है अपनी मां के प्यार और संघर्ष की वजह से बने हैं.

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