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Bundeli Panchang sagar: सागर के विद्वानों ने बनाया बुंदेली पंचांग, आधुनिक गणितीय पद्धति से तैयार, मिटेगा तिथि भ्रम

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Published : Dec 2, 2021, 9:57 PM IST

bundeli panchang sagar
सागर के विद्वानों ने बनाया बुंदेली पंचांग

सागर के पंडित और पुजारियों ने लॉकडाउन के समय का सदुपयोग करते हुए और बुंदेली पंचांग (Bundeli Panchang sagar)की रचना कर डाली. बुंदेली पंचांग का निर्माणकर्ताओं का कहना है कि उनका बनाया यह पंचांग आधुनिक गणितीय (Panchang With Accurate Calculation) पद्धति पर आधारित है.

सागर। कोरोना महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन के दौरान सभी धार्मिक- सामाजिक गतिविधियां बंद हो गई थी. ऐसी स्थिति में पूजा पाठ और कर्मकांड से जुड़े पंडित, पुजारी और ज्योतिषाचार्य भी अपने घरों में ही कैद थे. लेकिन कहते हैं न कि जहां चाह वहां राह. लॉकडाउन के दौरान बुंदेलखंड के सागर के पंडित और पुजारियों ने समय का सदुपयोग किया और बुंदेली पंचांग (Bundeli Panchang sagar)की रचना कर डाली. बुंदेली पंचांग का निर्माणकर्ताओं का कहना है कि उनका बनाया यह पंचांग आधुनिक गणितीय (Panchang With Accurate Calculation) पद्धति पर आधारित है. इसमें त्योहारों और मुहूर्त, तिथि की सटीक जानकारी है और इसकी गणनाओं के जरिए किया गया कुंडली फलादेश भी सटीक आता है. उन्होंने बुंदेली पंचांग को लिए पूरे देश के लिए उत्तम माना है.

सागर के विद्वानों ने बनाया बुंदेली पंचांग
त्योहारों का तिथि भ्रम दूर करने से हुई स्थानीय पंचाग की शुरूआतबुंदेली पंचांग तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाले पंडित रामचरण तिवारी बताते हैं कि कोरोना लॉकडाउन के समय पुजारी, पुरोहित ज्योतिषाचार्य सभी घरों में थे, क्योंकि लॉकडाउन में मंदिर-मठ सभी बंद थे. उसी समय सागर जिला प्रशासन ने दशहरे की तिथि को लेकर पंडित पुजारियों से मार्गदर्शन मांगा, क्योंकि देवी विसर्जन और दशहरे की तिथि में भ्रम होने के कारण अप्रिय स्थिति बन रही थी. हालांकि उस समय उन्हें मार्गदर्शन दे दिया गया था, लेकिन इस घटना के बाद हम लोगों ने विभिन्न विद्वान पंडितों से सलाह ली और पंडित राजेंद्र पांडे के मार्गदर्शन में यह तय किया गया कि क्यों ना हम लोग एक स्थानीय पंचांग निकालें जिसका उद्देश्य समाज और सनातन धर्म की सभी भ्रांतियों को समाप्त करने का हो. इसी विचार के बाद स्थानीय विद्वानों और मनीषियों ने अपना अमूल्य समय देकर इस पंचांग का निर्माण किया है.क्यों रखा गया बुंदेली पंचांग नाम पंडित शिव प्रसाद तिवारी बताते हैं कि इस पंचांग का नाम बुंदेली पंचांग इसलिए रखा गया है, क्योंकि यह पंचांग बुंदेलखंड के हृदय स्थल सागर के अक्षांश और देशांतर को लेकर स्थानीय सूर्योदय के अनुसार बनाया गया है. इसकी सारी तिथियां स्थानीय सूर्योदय के आधार पर निर्धारित की गई हैं. पंचांग में एक त्योहार की सिर्फ एक तिथि बुंदेली पंचांग की खासियत बताते हुए पं. शिव प्रसाद तिवारी कहते हैं कि इस पंचांग के जरिए हमने कोशिश की है कि कोई भी त्योहार 2 दिन मतलब दो तिथियों का ना हो. इस संबंध में विद्वानों से विचार-विमर्श कर एक ही तिथि निर्धारित की गई है, जबकि अन्य पंचांग जो जबलपुर और बनारस से निकलते हैं उनमें दोषपूर्ण विवाह मुहूर्त की तिथि भी दी जाती है. ऐसे में किसी में शुक्र का तो किसी में गुरु का दान बताया जाता है. जबकि बुंदेली पंचांग में वहीं विवाह मुहूर्त दिए गए हैं,जो पूरी तरह शुद्ध हैं. इसके अलावा जन्म के समय लगने वाले मूलों को लेकर भी विस्तृत जानकारी दी गई है. इसके बारे में अभी तक लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं हैं कि मूल 12 दिन और 27 दिन के लगते हैं और क्यों लगते हैं ? इसका सूतक किस-किस को लगता है? इस बारे में हमने विस्तृत जानकारी दी है. इसके अलावा त्योहार के मुहूर्त की बात है, तो हमने पौराणिक वैदिक शास्त्र को लेकर तिथि निर्धारित की है जिसमें वायु पुराण, भागवत पुराण और विष्णु पुराण से साक्ष्य जुटाकर एक ही तिथि निर्धारित की है. पं शिव प्रसाद तिवारी बताते हैं कि आने वाले साल में होलिका दहन को लेकर अलग-अलग पंचांग में अलग-अलग तिथि हैं, लेकिन इसमें भी हमने एक तिथि निर्धारित की है.आधुनिक गणितीय पद्धति पर आधारित है बुंदेली पंचांगपं. शिव प्रसाद तिवारी बताते हैं कि जबलपुर और बनारस में जो पंचांग बन रहे हैं भारत सरकार ने उनकी मान्यता शून्य कर दी है,क्योंकि उनका गणित स्थूल हो गया है, लेकिन बुंदेली पंचांग को केतकीय दृश्य पद्धति पर बनाया गया है, पूर्व में जो पंचांग बन रहे हैं, वह ग्रहों लाघव पद्धति पर बन रहे हैं, ये पद्धति आज की स्थिति में स्थूल है, क्योंकि विद्वानों का मत है कि 400- 500 सालों में ब्रह्मांड विस्तार करता है. इस कारण ग्रह- नक्षत्र भी अपना स्थान बदल देते हैं. जैसे ही किसी ग्रह नक्षत्र का स्थान बदलता है, तो उस ग्रह की राशि परिवर्तित हो जाती है और सूर्योदय और सूर्यास्त का भी समय बदल जाता है. इस कारण तिथियों में भेद हो जाता है, लेकिन हमारी आधुनिक गणितीय पद्धति पूरे भारतवर्ष में मान्य है.
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