जबलपुर। मध्यप्रदेश में एक तरफ जहां कोरोना की तीसरी लहर बेकाबू होती जा रही है तो वहीं दूसरी (jabalpur hospital condition) तरफ स्वास्थ्य महकमे की सुविधाओं पर एक बार फिर सवालिया निशान लगने लगे हैं. तीसरी लहर से निपटने के लिए सरकार पूरे इंतजाम होने का दावा तो कर रही है, लेकिन हकीकत इससे कुछ अलग नजर आती है. दवाओं, टेस्टिंग और जरूरी गाइड लाइन का पालन करने की हिदायत तो दी जा रही है, लेकिन डॉक्टरों की कमी (doctors have shortage in many department) को स्वास्थ्य विभाग ने अभी भी पूरा नहीं किया है. जबलपुर जिले में स्वीकृत डॉक्टरों के पदों के मुकाबले यहां महज एक तिहाई ड़ॉक्टर ही काम कर रहे हैं जबकि बाकी पद खाली पड़े हैं. जिसका मरीजों को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.
-जबलपुर जिले में 260 डॉक्टरों के पदों स्वीकृत है लेकिन महज 99 पद भरे हैं.
- 161 डॉक्टर के पद आज भी खाली हैं. जिले में 36 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 6 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, चार सिविल अस्पताल, 10 संजीवनी अस्पताल, 7 सिविल डिस्पेंसरी और संभाग का सबसे बड़ा जिला अस्पताल विक्टोरिया मौजूद है.
- कई स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक केंद्र तो ऐसे हैं जहां एक भी डॉक्टर तैनात नहीं है. जिससे कई बार ऐसे हालात बन जाते हैं कि गांव में इलाज ना मिल पाने की वजह से शहर तक जाते-जाते मरीज दम तोड़ देता है.
जिले में इतने डॉक्टर कर रहे हैं काम
आंकड़ों के मुताबिक जबलपुर जिले में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों में 19 स्वीकृत पद में से महज 2 डॉक्टर काम कर रहे हैं. सर्जन के 18 पद है लेकिन काम सिर्फ 2 डॉक्टर कर रहे हैं.गायनेकोलॉजिस्ट के 19 पद स्वीकृत हैं, लेकिन 4 डॉक्टर ही काम कर रहे हैं. पीडियाट्रिक्स विभाग में 18 डॉक्टरों के पद हैं, लेकिन काम सिर्फ 3 ही कर रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि जबलपुर जिले में एक भी ऑप्थेलमोलॉजिस्ट (नेत्र रोग विशेषज्ञ), ent (नाक,कान गला विभाग), डेंटिस्ट, ट्यूबरक्लोसिस और स्किन स्पेशलिस्ट नहीं है. इस बारे में जिम्मेदारी हर बार वही रटा रटाया से जवाब देते हैं कि खाली पदों को भरने की प्रयास किए जा रहे हैं.
सरकार, प्रशासन ने नहीं लिया कोई सबक
प्रदेश में कोरोना की दो लहर आकर जा चुकी हैं और तीसरी लहर से मुकाबला करने की प्रदेश कोशिश कर रहा है, लेकिन जिले के जिम्मेदारों ने लगता है इससे कोई सबक नहीं सीखा है. जिले के सरकारी अस्पतालों की यह हालात आज की नहीं बल्कि पिछले कई सालों से ऐसी ही है. लेकिन सवाल यह है कि भयानक महामारी के दो दौर गुजर जाने के बाद भी सरकार ने इन बिगड़े हालातों से कोई सबक नहीं सीखा. यही वजह है कि सरकार ने अभी तक इन पदों को भरने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है. ऐसे में निजी अस्पताल लोगों की मजबूरी का जमकर फायदा उठा रहे हैं और सबकुछ जानते हुए निजी अस्पतालों में अपने मरीज को ले जाना लोगों की भी मजबूरी बना हुआ है.