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राजा मिहिर भोज की 'जाति पर जंग', हाईकोर्ट ने दिया दखल, कहा जाति विशेष वाली पट्टिका को फिलहाल ढंका जाए, 3 सप्ताह में मांगी रिपोर्ट

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Published : Sep 25, 2021, 8:39 PM IST

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राजा मिहिर भोज की 'जाति पर जंग'

पिछले लगभग 15 दिन से जाति विवाद की वजह बनी राजा मिहिर भोज की प्रतिमा के मामले में हाई कोर्ट को दखल देना पड़ा है. राजा मिहिर भोज की जाति को लेकर दो वर्गों के बीच विवाद हो गया था. क्षत्रिय समाज महिर भोज की जाति क्षत्रिय मानता है वहीं गुर्जर समाज उन्हें प्रतिहार वंश का शासक बताते हुए उनकी जाति गुर्जर बताता है.

ग्वालियर। पिछले लगभग 15 दिन से जाति विवाद की वजह बनी राजा मिहिर भोज की प्रतिमा के मामले में हाई कोर्ट को दखल देना पड़ा है. राजा मिहिर भोज की जाति को लेकर दो वर्गों के बीच विवाद हो गया था. क्षत्रिय समाज महिर भोज की जाति क्षत्रिय मानता है वहीं गुर्जर समाज उन्हें प्रतिहार वंश का शासक बताते हुए उनकी जाति गुर्जर बताता है. इस मामले में हाई कोर्ट ने साफ किया है कि जाति को प्रदर्शित करने वाली नाम पट्टिका को फिलहाल ढ़ंक दिया जाए. इस मामले में हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच में एक सामाजिक कार्यकर्ता ने याचिका दाखिल की थी.

कलेक्टर ने बनाई कमेटी

दरअसल ग्वालियर के चिरवाई नाके पर राजा मिहिर भोज के प्रतिमा का अनावरण किया गया था. जिसके बाद उनकी जाति को लेकर विवाद शुरू हो गया और क्षत्रिय और गुर्जर समाज के बीच संघर्ष की स्थिति बन गई थी. इस विवाद का असर ग्वालियर के अलावा आसपास के मुरैना और भिंड़ जिलों में भी पड़ने से स्थिति बिगड़ने लगी थी. इस मामले में ग्वालियर कलेक्टर को हाईकोर्ट ने एक कमेटी बनाए जाने के लिए निर्देश किया है. कलेक्टर द्वारा बनाई गई कमेटी में संभागीय आयुक्त आशीष सक्सेना को अध्यक्ष और आईजी ग्वालियर रेंज को उपाध्यक्ष बनाया गया है. इसके अलावा गुर्जर समाज से आरबीएस घुरैया और क्षत्रिय समाज के डी पी सिंह को सदस्य के रूप में नामित किया गया है. इससे पहले 15 सितंबर को कलेक्टर द्वारा बनाई गई कमेटी में जीवाजी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एसके द्विवेदी और केआरजी कॉलेज के प्रोफेसर संजय स्वर्णकार के अलावा लश्कर एसडीएम अनिल बनवारिया और सीएसपी आत्माराम शर्मा को शामिल किया गया था. हाई कोर्ट ने कमेटी को 3 हफ्ते के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा है.

इस तरह शुरू हुआ जाति पर विवाद
सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के नीचे लगे शिलालेख पर लिखे गुर्जर शब्द पर ही ये विवाद शुरू हुआ है, गुर्जर समाज का मानना है कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर शासक थे, जबकि राजपूत समाज का कहना है कि वो प्रतिहार वंश के शासक थे. सम्राट मिहिर भोज के नाम से पहले गुर्जर शब्द लगाने को लेकर ठाकुर समाज के लोगों ने जगह-जगह महापंचायत की थी, जबकि गुरुवार को ही राजपूत करणी सेना ने सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर एतेहासिक तथ्यों को सामने लाने के लिए गौतमबुद्ध नगर के डीएम सुहास एलवाई से मिलकर इतिहासकारों की कमेटी गाठित करने की मांग की थी.


'कन्नौज' थी सम्राट मिहिर भोज की राजधानी
सम्राट मिहिर भोज (836-885 ई) या प्रथम भोज, गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के राजा थे, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से में लगभग 49 वर्षों तक शासन किया, उस वक्त उनकी राजधानी कन्नौज (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) थी. इनके राज्य का विस्तार नर्मदा के उत्तर से लेकर हिमालय की तराई तक था, जबकि पूर्व में वर्तमान पश्चिम बंगाल की सीमा तक माना जाता है. इनके पूर्ववर्ती राजा इनके पिता रामभद्र थे, इनके काल के सिक्कों पर आदिवाराह की उपाधि मिलती है, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि ये विष्णु के उपासक थे, इनके बाद इनके पुत्र प्रथम महेंद्रपाल राजा बने. ग्वालियर किले के समीप तेली का मंदिर में स्थित मूर्तियां मिहिर भोज द्वारा बनवाया गया था, ऐसा माना जाता है.

ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का पहली बार उल्लेख
ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो प्रतिहार वंश की स्थापना आठवीं शताब्दी में नाग भट्ट ने की थी और गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में इन्हें गुर्जर-प्रतिहार कहा जाता है. इतिहासकार केसी श्रीवास्तव की पुस्तक 'प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति' में लिखा है कि 'इस वंश की प्राचीनता 5वीं शती तक जाती है'. पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख पहली बार हुआ है. हर्षचरित में भी गुर्जरों का उल्लेख है. चीनी यात्री व्हेनसांग ने भी गुर्जर देश का उल्लेख किया है. उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में करीब 300 सालों तक इस वंश का शासन रहा और सम्राट हर्षवर्धन के बाद प्रतिहार शासकों ने ही उत्तर भारत को राजनीतिक एकता प्रदान की थी. मिहिर भोज के ग्वालियर अभिलेख के मुताबिक, नाग भट्ट ने अरबों को सिंध से आगे बढ़ने से रोक दिया था, लेकिन राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग से उसे पराजय का सामना करना पड़ा था.


सम्राट मिहिर भोज की जाति पर सियासत
सम्राट मिहिर भोज को गुर्जर या राजपूत बताए जाने को लेकर जानकारों का कहना है कि इसका इतिहास से मतलब कम, राजनीति से ज्यादा है, मिहिर भोज राजपूत थे या गुर्जर थे, इसमें ऐतिहासिकता कम राजनीति ज्यादा हो रही है. इतिहास तो यही कहता है कि आज के जो गूजर या गुज्जर-गुर्जर हैं, उनका संबंध कहीं न कहीं गुर्जर प्रतिहार वंश से ही रहा है. दूसरी बात, यह गुर्जर-प्रतिहार वंश भी राजपूत वंश ही था. ऐसे में विवाद की बात होनी ही नहीं चाहिए, लेकिन अब लोग कर रहे हैं तो क्या ही कहा जाए.

कहा पुरातत्व अधिकारी ने
वहीं इस संबंध में भिंड जिला पुरातत्व अधिकारी वीरेंद्र पांडेय ने बताया कि सम्राट मिहिर भोज एक गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी और विस्तार करने वाले शासक थे. उन्होंने 836 ई में अपने पिता का साम्राज्य राजा के तौर पर ग्रहण किया था. उस दौरान राजघराने के हालत और प्रतिष्ठा उनके पिता रामभद्र के शासनकाल के दौरान काफी नाजुक हो गयी थी. सिंहासन संभालने के बाद सबसे पहले उन्होंने बुंदेलखंड में अपने परिवार की प्रतिष्ठा को फिर से मजबूत करने का काम किया. आगे चलकर 843 ई में उन्होंने गुर्जरत्रा-भूमि (मारवाड़) में भी अपनी प्रतिष्ठा को कायम किया था जो उनके पिता के साम्राज्य के दौरान कमजोर हुई थी.

क्षत्रिय एक गुण होता है जाति नहीं
पुरातत्व अधिकारी ने आगे बताया कि मिहिर भोज एक गुर्जर प्रतिहार राजा थे, क्योंकि जितने राजाओं ने शासन किया है वे सभी क्षत्रिय थे, और क्षत्रिय एक गुण होता है जाति नहीं. हालाँकि वे राजपूत क्षत्रिय थे. क्योंंकि गुर्जर क्षेत्र का नाम था. वीरेंद्र पांडेय कहते हैं की इतिहास में लोगों ने क्षेत्र के हिसाब से जातियां बनायी थी.

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