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साल वृक्ष के वनों को बचाए रखने की मुंडमाला तकनीक, जानिए क्यों इन कीड़ों के सिरों की माला खरीदता है वन विभाग

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 6, 2023, 10:35 AM IST

Jabalpur Borer Insects Mundmala Technique: साल बोरर नाम के कीड़े का मध्य प्रदेश के वन विभाग में भारी खौफ है. इस कीड़े की मुंडमाला बनाने और उसे वन विभाग को बेचने पर आदिवासियों को बाकायदा प्रति कीड़े के हिसाब से धनराशि दी जाती है. असल में साल बोरर नाम का ये कीड़ा साल के जंगल को पूरी तरह बर्बाद कर सकता है. जबलपुर के राज्य वन अनुसंधान में इस कीड़े पर रिसर्च भी चल रही है. पढ़े ईटीवी भारत के जबलपुर से संवाददाता विश्वजीत सिंह की खास रिपोर्ट...

forest department buys borer insects head
साल के वनों को बचाने की पहल

साल वृक्ष के वनों को बचाए रखने की मुंडमाला तकनीक

जबलपुर। मध्य प्रदेश के जबलपुर के राज्य वन अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित मुंडमाला तकनीक से बचा रहे हैं साल के जंगल. बोरर नाम के कीट को नियंत्रित करने के लिए उसके कीड़ों की सिरों की माला बनाई जाती है. इस माला को वन विभाग खरीदना है और इन कीड़ों को नियंत्रित करने का यह तरीका प्रभावी साबित हुआ है. इसकी वजह से न केवल मध्य प्रदेश बल्कि छत्तीसगढ़ और दूसरे प्रदेशों के साल वृक्ष के वनों को बचाया जा सका है.

forest department buys borer insects head
जबलपुर में बोबर कीड़े पर रिसर्च

साल की लकड़ी का महत्व: जबलपुर में इमारती लकड़ियों में साल की लकड़ी का विशेष महत्व है. साल की लकड़ी बेहद मजबूत और भारी होती है. इसके साथ ही साल के पेड़ एकदम सीधे 30-40 फीट ऊंचे हो जाते हैं. इसलिए इसका उपयोग बड़ी नाव बनाने में, घरों में इमारती लकड़ी के रूप में और कलाकारी करने में किया जाता है. साल के पेड़ कई सालों में तैयार हो पाते हैं. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में साल के कई बड़े जंगल हैं.

साल बोरर के कीड़े की माला: लेकिन साल के जंगलों को लेकर वन विभाग साल बोरर नाम के एक कीड़े से हमेशा डरा हुआ रहता है. साल बोरर एक लगभग 2 इंच लंबा कीड़ा होता है. यह कीड़ा साल पेड़ के तने में पाया जाता है और यह ताने में छेद करके लार्वा और कीड़े की अवस्था में आता है. जब कभी साल के पेड़ के नीचे बुरादा दिखने लगता है तो वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारी सतर्क हो जाते हैं और वन विभाग साल जंगलों के आसपास रहने वाले लोगों को एक ट्रेनिंग देता है. जिसमें साल बोरर के कीट को पकड़ते हैं. इसके लिए साल के पेड़ों की छाल को निकाल कर उसकी रेजिन को कूटकर रखा जाता है. जिसकी सुगंध को सुघकर साल बोरर का कीड़ा उड़ा चला आता है. यही ग्रामीण इस कीड़े को पड़कर उसके सिर को तोड़कर एक माला बनाते हैं और सिरों की गिनती के अनुसार वन विभाग आदिवासियों को पैसे देता है.

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साल के वनों को बचाने की पहल

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जबलपुर राज्य वन अनुसंधान केंद्र: जबलपुर राज्य वन अनुसंधान केंद्र के सीनियर रिसर्च एसोसिएट डॉक्टर उदय होमकर का कहना है कि ''साल बोरर का कीडा हमेशा जिंदा रहता है लेकिन इसका प्रकोप हमेशा महामारी का रूप नहीं लेता. लेकिन जब कभी इसकी संख्या ज्यादा बढ़ने लगती है तब इसे महामारी मानते हुए इसे नियंत्रित करने की तकनीक अपनाई जाती हैं.''

वन विभाग के लिए लाभ का सौदा: बीते लगभग 20 सालों से राज्य वन अनुसंधान की इस तकनीक का इस्तेमाल करके साल बोरर के कीट को नियंत्रित किया जा रहा है. हर वर्ष वन विभाग साल के जंगलों में इस तकनीक का इस्तेमाल करता है और कीड़े का नियंत्रण कर लेता है. जिससे साल के जंगल फल फूल रहे हैं. इससे न केवल जैव विविधता बची हुई है बल्कि राज्य सरकार को इसकी इमारती लकड़ी बेचकर अच्छा खासा राजस्व भी प्राप्त होता है.

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