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Infighting In MP BJP-Congress: एमपी चुनाव में बहार से पहले बगावत, कहां चोट करेगा...कहां वोट दिलाएगा ये गुस्सा

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 25, 2023, 9:39 PM IST

मध्य प्रदेश में साल 2023 के विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण के बाद बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों में जोरदार घमासान देखने मिल रहा है. कार्यकर्ता कार्यालय से लेकर सड़क तक प्रदर्शन कर रहे हैं. कई नेताओं ने अपने समर्थकों के साथ इस्तीफा देकर दूसरी पार्टी ज्वाइन कर ली है. चुनावी समर में ऐसी तस्वीर देखने के बाद अब यह कहा जा रहा है कि ये बगावती नेता अब किस पार्टी को जीत और किसे हार की दहलीज पर पहुंचाएंगे. पढ़िए ईटीवी भारत से शेफाली पांडेय की यह रिपोर्ट...

MP Election 2023
बहार से पहले बगावत

भोपाल। तो क्या इस बार एमपी में कांग्रेस और बीजेपी की हार जीत बागी और नाराज तय करेंगे...बीजेपी में इससे पहले कब ऐसा हुआ है कि पार्टी के प्रदेश प्रभारी के सामने कार्यकर्ताओं की गुस्साई भीड़ नारे लगा रही हो. कांग्रेस को इस चुनाव से पहले कितनी बार ऐसा मौके आया कि टिकट बदलने की नौबत आ गई हो. सात सीटों पर उम्मीदवार बदलने के बावजूद भी कितनी ऐसी सीटे हैं. जहां कांग्रेस पर उम्मीदवार बदलने का दबाव है. बीजेपी में इसके पहले कब पार्टी कार्यकर्ता का गुस्सा काबू के बाहर हुआ. प्रदेश प्रभारी भूपेन्द्र यादव और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने अनुशासित पार्टी की टूटती मर्यादा किन सीटों पर चुनाव में बीजेपी का संकट बनेगी. डिटेल रिपोर्ट. बीजेपी में बगावत की आग कहां कहां...

बुंदेलखंड में बागियों ने बढ़ाई बीजेपी की टेंशन: टीकमगढ़ में बीजेपी के पूर्व विधायक केके श्रीवास्तव का टिकट कटा तो अब केके श्रीवास्तव आम आदमी पार्टी से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. 2018 में भी के के श्रीवास्तव का टिकट काट दिया गया था. अब जबकि लगातार दूसरी बार उनका टिकट कटा तो उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया. बंडा में पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार वीरेन्द्र सिंह लंबरदार का भी विरोध हो रहा है. यहां रंजोर सिंह के समर्थन में पार्टी कार्यकर्ताओं ने गांव-गांव रैली निकाल दी. इसके अलावा छतरपुर राजनगर महाराजपुर में भी कमोबेश यही तस्वीर है. चांदला में विधायक का टिकट कटने से समर्थक नाराज हैं. उधर बिजावर में बीजेपी की विधायक रेखा यादव को लेकर चर्चा है कि वे समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़के बीजेपी को झटका दे सकती हैं.

चंबल में बागियों को संभालने में बीजेपी का दम फूला: चंबल इलाके में भी बीजेपी के उम्मीदवारों की सूची आ जाने के बाद दावेदार बागी तेवर दिखा रहे हैं. लहार से पूर्व विधायक रसाल सिंह ने टिकट नहीं मिलने का बाद पार्टी ही छोड़ दी. रसाल सिंह ने बीएसपी ज्वाइन कर ली है और बसपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में उतर गए हैं. भिंड जिले की अटेर सीट पर मुन्ना सिंह भदौरिया ने टिकट नहीं मिलने पर बीजेपी छोड़के समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया और सपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतर गए. भिंड से विधायक संजीव सिंह के भी टिकट कटने पर बगावती तेवर दिखाई दिए हैं. माना जा रहा है कि वे बसपा से चुनाव लड़ सकते हैं.

ग्वालियर में में बागियों की दो टूक टिकट बदले: ग्वालियर पूर्व में बीजेपी ने पूर्व मंत्री माया सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है. जिनका भारी विरोध हो रहा है. यहां मुन्नालाल गोयल भी टिकट के लिए दावेदारी कर रहे थे. मुन्नालाल के समर्थकों ने विरोध में सिंधिया का महल तक घेर दिया था. ग्वालियर दक्षिण विधानसभा में लंबे समय से चुनाव के लिए टिकट मांग रहे पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा को फिर लूप लाईन में डाल दिया गया है. जाहिर है इनके समर्थकों का गुस्सा भी चुनाव में असर दिखाएगा.

महाकौशल में ऐसी महाभारत नहीं देखी: अनुशासित कही जाने वाली बीजेपी में महाकौशल में जो महाभारत हुई. वो इतिहास में दर्ज हो गई है. यहां विवाद जबलपुर उत्तर मध्य सीट को लेकर शुरु हुआ. जहां से पार्टी ने अभिलाष पाण्डे को अपना उम्मीदवार बनाया है. यहं से धीरज पटेरिया शरद जैन कमलेश अग्रवाल समेत फौज बीजेपी की दावेदारी कर रही थी. जिनके सब्र का बांध इस नाम पर टूट गया. तस्वीर जो बनी वो पूरी बीजेपी के लिए अब तक की शर्मनाक तस्वीर है. पार्टी के प्रदेश प्रभारी के सामने पार्टी कार्यकर्ताओं ने अनुशासन की धज्जियां उड़ा दीं. केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव के सामने पार्टी कार्यकर्ताओं ने विरोध में नारे लगाए.

कांग्रेस में टिकट बंटते ही उतरी कलई: ग्वालियर में कांग्रेस के एक अनार सौ बीमार वाले हालात. ग्वालियर विधानसभा सीट पर कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार सुनील शर्मा का विरोध इस दर्जे का है कि बगावत में एक दर्जन नेताओं की कतार खड़ी है. पिछले 6 महीने से इस सीट पर अपनी जमीन बना रहे इन बागियों ने पार्टी को चेता दिया है कि टिकट नहीं बदला तो सीट जीत पाना मुश्किल हो जाएगा.

पार्टी से पहले परिवार में घमासान..दो उत्तर: भोपाल की उत्तर विधानसभा सीट पर पार्टी से पहले परिवार में घमासान मच गया है. पार्टी ने आरिफ अकील के बेटे आतिफ अकील को अपना उम्मीदवार बनाया है. जिसका पार्टी में भी और पार्टी में भी विरोध हो रहा है. कांग्रेस नेता नासिर इस्लाम ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है. उधर आरिफ अकील के भाई आमिर अकील भी अपने ही भतीजे के खिलाफ निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए हैं.

दिग्विजय की च्वाइस क्यों राइट सवाल: भोपाल की गोविंदपुरा सीट से रवीन्द्र साहू को उम्मीदवार बनाया है. ये दिग्विजय सिंह समर्थक बताए जाते हैं. जबकि दीप्ति सिंह भी इस सीट से दावेदारी पेश कर रही थीं. अब साहू का विरोध हो रहा है. उधर एमपी में कांग्रेस की तीन दशक से मजबूत सीट उत्तर भोपाल में पार्टी से ज्यादा परिवार में बगावत के हालात हैं.

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तो क्या नहीं बदले जाएंगे पिछोर शिवपुरी: पिछोर सीट से पार्टी ने पहले शैलेन्द्र सिंह क उम्मीदवार बनाया, फिर अरविंद लोधी को मैदान में उतारा. लेकिन अब चर्चा ये भी है कि यहां से 30 साल से विधायक केपी सिंह को वापस मैदान में पार्टी उतार सकती है. हालांकि ये संभावनाएं बेहद कम है. चार उम्मीदवारों की सूची में पिछोर शिवपुरी सीट नहीं होने के साथ ये स्पष्ट लग रहा है कि ये सीटें पार्टी नहीं बदलेगी.

निशा बांगरे को जवाब मिलेगा क्या: सवाल आमला सीट का भी है. जहां से निशा बांगरे को चुनाव लड़ने का आश्वासन मिला था, लेकिन अब ये खटाई में पड़ता दिखाई दे रहा है. निशा बांगरे का चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो चुका है. उनका इस्तीफा भी मंजूर हो चुका है. निशा पूछ भी रही हैं कि कमलनाथ उनका वादा कब पूरा करेंगे.

तो क्या 2023 की विधानसभा में कार्यकर्ताओं का चुनाव: फिलहाल बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक जो बगावती तेवर दिखाई दे रहे हैं. उसके बाद सवाल ये उठ रहा है कि क्या ये चुनाव नाराज कार्यकर्ता ही तय करेगा. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भटनागर कहते हैं "दोनों पार्टियों में स्थितियां अलग-अलग है, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि कार्यकर्ता ही फैक्टर है. बीजेपी में तो कार्यकर्ता ही पार्टी की सबसे बड़ी पूंजी. कांग्रेस में भी नाराजगी महंगी पड़ेगी. कांग्रेस में विरोध की वजह दिग्विजय कमलनाथ की च्वाइस पर बंटे टिकट हैं. जिनकी वजह से कपड़ा फाड़ राजनीति के साथ इस कदर विरोध की नौबत आई. बीजेपी में भोपाल से दिल्ली तक की ताकत झौक देने के बाद भी कार्यकर्ता बगावत पर उतर आया, क्योंकि 2020 से भरे बैठे पार्टी कार्यकर्ता के सब्र का बांध टूटा है. हालांकि कार्यकर्ताओं की संभाल में कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी आगे हैं.

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