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झारखंड में गंभीर बीमारी से ग्रसित गरीबों का इलाज मुश्किल, मुट्ठी भर विशेषज्ञ डॉक्टरों के भरोसे चल रहा है हेल्थ सिस्टम

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Dec 22, 2023, 6:24 PM IST

Shortage of specialist doctors in Jharkhand. झारखंड में गंभीर बीमारी से ग्रसित गरीबों का इलाज हो पाना मुश्किल है. क्योंकि यहां पर मुट्ठी भर विशेषज्ञ डॉक्टरों के भरोसे हेल्थ सिस्टम चल रहा है.

Shortage of specialist doctors in Jharkhand
Shortage of specialist doctors in Jharkhand

रांची: झारखंड एक गरीब राज्य है. इस बात को सीएम हेमंत सोरेन अक्सर दोहराते हैं. पिछले दिनों द्वितीय अनुपूरक बजट पर भाषण के दौरान वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने भी कहा था कि राज्य की 60 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी झेल रही है. उसे रोटी, कपड़ा और मकान की जरुरत है. बेशक, इन तीन चीजों के बिना जीना मुश्किल है. लेकिन क्या स्वास्थ्य जरुरी नहीं है.

क्या सिर्फ बुनियादी जरुरतों के साथ कोई इंसान अपना जीवनकाल पूरा कर सकता है. सभी जानते हैं कि आए दिन नई नई बीमारियां सामने आ रहीं हैं. मलेरिया और कालाजार जैसी बीमारियां गरीबों की जिंदगी छीन ले रही हैं. अब भला किसी गरीब को कोई गंभीर बीमारी हो जाए तो उसे कौन बचाएगा.

विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी: झारखंड के हेल्थ सिस्टम के डाटा पर नजर डालेंगे तो आपके होश उड़ जाएंगे. इस राज्य में विशेषज्ञ चिकित्सकों के 1,021 पद सृजित हैं. लेकिन इसकी तुलना में सिर्फ 185 डॉक्टर सेवारत हैं. ऐसे में भला गंभीर बीमारी से ग्रसित गरीब का इलाज कैसे हो पाएगा. स्वास्थ्य विभाग की दलील है कि विशेषज्ञ चिकित्सकों के रिक्त पदों को भरने के लिए जेपीएससी को भेजी गई है. आयोग की ओर से 193 स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की अनुशंसा मिली है.

नियुक्ति कब तक होगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है. इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड यानी आईपीएचएस के मुताबिक 10 हजार की आबादी पर 01 डॉक्टर का होना जरुरी है. इस कमी का असर सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों की ओपीडी में देखा जा सकता है. मरीजों की लंबी-लंबी कतारें लगीं रहती हैं. डॉक्टर्स पर इतना लोड है कि ठीक से मरीजों की तकलीफ भी नहीं सुन पाते.

चिकित्सा पदाधिकारी और दंत चिकित्सक की भरमार: इस मोर्चे पर झारखंड की स्थिति ठीक ठाक है. दंत चिकित्सकों के 22 सृजित पदों की तुलना में 167 डेंटिस्ट कार्यरत हैं. बाकी बचे 55 डेंटिस्ट की नियुक्ति जेपीएससी को करनी है. राज्य में चिकित्सा पदाधिकारियों के 2,213 पद सृजित है. इसके मुकाबल 1,957 चिकित्सा पदाधिकारी सेवा दे रहे हैं. शेष 256 पदों पर जल्द बहाली का भरोसा दिया जा रहा है.

खास बात है कि राज्य में पांच सरकारी और दो निजी मेडिकल कॉलेज हैं. सरकारी कॉलेजों में एमबीबीएस के लिए कुल 680 सीटें हैं जबकि निजी कॉलेजों में 250 सीटें. दोनों को मिलाकर कुल 930 सीटों में से 613 सीटों पर राज्य के अभ्यर्थियों का चयन होता है. इसके बावजूद यह राज्य डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है. बदले में रिक्त पदों को भरने के सिर्फ आश्वासन मिलते हैं, जिसपर अब कोई विश्वास नहीं करता. क्योंकि राज्य बने 23 साल हो चुके हैं. तब से आश्वासन ही मिल रहा है. सवाल है कि इस लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए जिम्मेवार कौन है.

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