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जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को लिखा पत्र, जानिए क्या है उनकी मांग

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Published : Jun 29, 2023, 10:48 PM IST

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राज्यसभा सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को एक चिट्ठी लिखी है. चिठ्ठी इस मायने में महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें रेल मंत्री से एक खास मांग की गयी है.

रांचीः झारखंड सरकार में समन्वय समिति के अध्यक्ष और झामुमो सुप्रीमो ने झारखंड के इतिहास भूगोल और भाषा का जिक्र करते हुए रेलवे स्टेशनों पर हिंदी, अंग्रेजी के साथ साथ बांग्ला भाषा में स्टेशन का नाम लिखने की मांग की है. उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि पूर्व में बांग्ला में भी नाम लिखा होता था लेकिन विगत कई वर्षों से बांग्ला भाषा में लिखे नामों मिटाया गया है.

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और है शिबू सोरेन के पत्र मेंः झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन ने रेल मंत्री को लिखे पत्र में बताया है कि 1912 तक झारखंड बंगाल प्रेसिडेंसी का हिस्सा रहा था. उसके बाद यह बिहार का हिस्सा बना 1908 से जब भारतीय रेल अस्तित्व में आया और संपूर्ण भारत में रेल लाइन बिजनेस शुरू हुआ तब स्टेशनों और हॉल्ट की स्थापना शुरू हुई. दक्षिण बिहार के वर्तमान भू-भाग झारखंड के सभी रेलवे स्टेशनों और हॉल्ट के नाम पट्टी अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला एवं कई जगहों पर ओड़िया में भी स्थान का नाम भी अंकित होता था. संविधान में लोक भाषाओं की महत्ता को स्वीकार करते हुए और आठवीं अनुसूची में संथाल भाषा में भी नामकरण किया जाने लगा. झारखंड के संथाल परगना, मानभूम, सिंहभूम, धालभूम और पंच परगना क्षेत्र में बांग्ला भाषी लोगों की बड़ी आबादी है. राज्य के बड़े भाग में बोलचाल की भाषा बंगाली है.

पहले इन रेलवे स्टेशनों पर बांग्ला भाषा में भी लिखा होता था नामः शिबू सोरेन ने अपने पत्र में कहा है कि झारखंड के पाकुड़, बरहरवा, जामताड़ा, मिहिजाम, मधुपुर, जसीडीह, मैथन, कुमारधुबी, चिरकुंडा, कालूबथान, धनबाद, गोमो पारसनाथ, हजारीबाग रोड, मुरी, रांची, हटिया, चाकुलिया गालूडीह, राखा माइंस, टाटानगर, चांडिल, कंद्रा चक्रधरपुर, चाईबासा, बरकाकाना, रांची रोड जैसे पुराने रेलवे स्टेशनों के नाम पट्टिका में बांग्ला भाषा में भी स्टेशन का नाम लिखा होता था.

शिबू सोरेन ने कहा कि यह अत्यंत अव्यावहारिक और दुर्भाग्यजनक है कि एक बड़ी आबादी द्वारा बोली जाने वाली भाषा के नाम पट्टी को रेलवे स्टेशनों से हटाया गया है. जबकि इन इलाकों में बांग्ला भाषी लोगों की काफी संख्या है. वे स्थायी निवासी तथा झारखंड के मूलवासी हैं. ऐसे में मूलवासियों की जन भावनाओं का जिक्र करते हुए शिबू सोरेन ने रेल मंत्री से मांग की है कि अविलंब राज्य सरकार से सलाह लेकर बांग्ला भाषा निवासी स्थानों को चिन्हित कर जनजातीय भाषाओं के साथ-साथ बांग्ला भाषा का भी प्रयोग रेलवे स्टेशन के नाम पट्टिका पर की जाए.

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