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समन पर वंदना दादेल के पत्र के जवाब के साथ ईडी की चेतावनी से मचा हड़कंप, क्या अपने स्तर से प्रधान सचिव लिख सकती हैं चिट्ठी ?

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jan 18, 2024, 5:22 PM IST

Jharkhand's bureaucracy stirred by ED's letter. कैबिनेट सचिव के पत्र पर ईडी के जवाब से झारखंड की ब्यूरोक्रेसी में हड़कंप मच गया है. क्या अपने स्तर से प्रधान सचिव चिट्ठी लिख सकती हैं?

Jharkhand's bureaucracy stirred by ED's letter
Jharkhand's bureaucracy stirred by ED's letter

रांची: समन के मसले पर हेमंत कैबिनेट की प्रधान सचिव वंदना दादेल द्वारा ईडी को लिखे गये पत्र के एक सप्ताह बाद एजेंसी के जवाब ने झारखंड की ब्यूरोक्रेसी में हड़कंप मचा दिया है. क्योंकि एजेंसी ने जवाबी पत्र में ना सिर्फ पीएमएलए के प्रावधानों का हवाला दिया है बल्कि वंदना दादेल से कई सवाल भी पूछे हैं और चेतावनी भी दी है. इसका सबसे ज्यादा असर ब्यूरोक्रेसी में देखा जा रहा है.

क्योंकि प्रधान सचिव वंदना दादेल ने अपने पत्र में कहा था कि आखिर राज्य सरकार के अधिकारियों को किन मामलों में समन जारी किया जा रहा है. साथ ही उन्होंने ईडी से पूछा था कि सरकारी परिसरों में कैसे छापेमारी हो रही है. किसी भी समन में मनी लॉन्ड्रिंग का जिक्र नहीं है. इसी का हवाला देते हुए पिछले दिनों साहिबगंज के डीसी रामनिवास यादव पूछताछ के लिए ईडी दफ्तर नहीं पहुंचे थे.

जवाब में प्रवर्तन निदेशालय ने स्पष्ट कर दिया है कि पीएमएल की धारा 50(2) के तहत वैभव कुमार, मो. नौशाद आलम, राजा मित्रा, रामनिवास यादव और अवधेश कुमार को समन जारी हुआ है. ईडी ने उल्टा सवाल किया है कि आप किस अधिकार से इस जांच प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर रही हैं. यह भी बताएं कि कानून के किस प्रावधान के तहत आपको पीएमएलए के तहत चल रही जांच का विवरण प्राप्त करने के साथ-साथ कार्यवाही में आपके हस्तक्षेप को उचित ठहराने के लिए अधिकृत किया गया है. यदि पीएमएलए की धारा 50 (2) के तहत बुलाए गए किसी व्यक्ति के लिए जांच को प्रभावित करने का कोई प्रयास किया जाता है, तो अधिकृत अधिकारी सभी संबंधित लोगों के खिलाफ उचित कार्यवाही दर्ज करने में संकोच नहीं करेगा. उस अथॉरिटी का नाम बताएं जिसने आपको चल रही जांच के बारे में संवेदनशील जानकारी प्राप्त करने और जांच अधिकारी को संबोधित करने के लिए अधिकृत किया है

राज्य सरकार और केंद्रीय एजेंसी के बीच हुए इस पत्राचार की ब्यूरोक्रेसी में खूब चर्चा हो रही है. अब सवाल है कि क्या कैबिनेट की प्रधान सचिव अपने स्तर से केंद्रीय एजेंसी को पत्र लिखकर समन का कारण पूछ सकती हैं. इस मसले पर ईटीवी भारत की टीम ने राज्य के पूर्व मुख्य सचिव अशोक कुमार सिंह से बात की. उन्होंने कहा कि कोई भी इंडिपेंडेड फैसला लेने का अधिकार हेड ऑफ द डिपार्टमेंट को होता है, बशर्ते ऐसा करने का अधिकार एक्ट से मिला हो. अमूमन विभागीय सचिव सरकार के सचिव होते हैं. वंदना दादेल सरकार की प्रधान सचिव हैं. वह सरकार के सलाहकार के रुप में काम करती हैं. वह अपने स्तर से कोई फैसला नहीं ले सकतीं. मुझे नहीं लगता कि किसी भी विभाग का सचिव सामान्य परिस्थिति में अपने स्तर से कोई फैसला लेता है. इसके लिए उसे मंत्री के अनुमोदन की जरुरत होती है. मिनिस्टर और कैबिनेट में शक्तियां होती हैं.

इस मामले में वंदना दादेल को अपने स्तर से कुछ कहने का कोई औचित्य नहीं दिखता. क्योंकि आमतौर पर हर पत्र निर्देशानुसार ही जारी होता है. किसी न किसी ने उन्हें संचिका पर आदेश दिया होगा. ईडी ने वंदना दादेल से जो भी पूछा है वह एक सामान्य प्रक्रिया है. पूर्व मुख्य सचिव ने कहा कि वंदना दादेल ने ईडी से समन को लेकर जो भी पूछा है, उसे राज्य सरकार का क्वेरी समझना चाहिए. उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इस तरफ का विषय कैबिनेट में गया होगा. उन्हें नहीं लगता कि किसी के जुबानी आदेश पर वंदना दादेल ने पत्र लिखा होगा. चिट्ठी भेजने से पहले ड्राफ्ट का भी अप्रुवल हुआ होगा. कोई अधिकारी अपने स्तर पर इस तरह का पत्र आम तौर पर नहीं भेजता है.

ईडी के पत्र में किन बातों का है जिक्र:

  1. प्रधान सचिव, कैबिनेट को लिखे पत्र में ईडी की ओर से बताया गया है कि वैभव कुमार, मोहम्मद नौशाद आलम, राजा मित्रा, राम निवास यादव और अवधेश कुमार को पीएमएलए की धारा 50 (2) के तहत समन जारी हुआ है.
  2. समन पीएमएलए की धारा 50 (2) के तहत आपको व्यक्तिगत रूप से जारी नहीं किए गए हैं, बल्कि अनुपालन के लिए उपरोक्त संदर्भित व्यक्तियों को जारी किए गए हैं. आप समन के अनुपालन में हस्तक्षेप क्यों कर रही हैं. धारा 50(3) के साथ धारा 50(2) के प्रावधान किसी अन्य व्यक्ति को, जिसे समन जारी नहीं किया गया है, उस व्यक्ति द्वारा समन के अनुपालन में शामिल होने की अनुमति नहीं देता है जिसे धारा 50 (2) के तहत समन जारी किया गया है. यहां यह उल्लेख करना उचित है कि जांच अधिकारी को कानूनी तौर पर पीएमएलए के तहत चल रही जांच के बारे में आपके कार्यालय के साथ कोई भी जानकारी साझा करने की अनुमति नहीं है क्योंकि आप पीएमएलए के प्रावधानों के तहत चल रही जांच में हस्तक्षेप करने या चल रही जांच का विवरण प्राप्त करने के लिए अधिकृत नहीं हैं. इस संदर्भ में आपसे अनुरोध है कि आप बताएं कि कानून के किस प्रावधान के तहत आपको पीएमएलए के प्रावधानों के तहत चल रही जांच का विवरण प्राप्त करने के साथ-साथ पीएमएलए के तहत चल रही जांच कार्यवाही में आपके हस्तक्षेप को उचित ठहराने के लिए अधिकृत किया गया है.
  3. ध्यान रखें कि आप पीएमएलए के प्रावधानों के तहत की जा रही जांच के संबंध में कोई परिपत्र/प्रशासनिक आदेश/आंतरिक निर्देश जारी करने के लिए कानूनी रूप से अधिकृत नहीं हैं. ऐसा कोई भी आदेश या प्रशासनिक निर्देश जांच अधिकारी पर लागू या बाध्यकारी नहीं है, जो भारत की संसद द्वारा अधिनियमित अधिनियम पीएमएलए के प्रावधानों के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध की जांच करने की शक्ति प्राप्त करता है. यह स्पष्ट किया जाता है कि अकेले केंद्र सरकार को पीएमएलए की धारा 52, धारा 73 के तहत पीएमएलए के प्रावधानों को लागू करने के लिए निर्देश जारी करने या नियम बनाने की शक्ति सौंपी गई है और धारा 73 में आगे प्रावधान है कि केंद्र सरकार की नियम बनाने की शक्ति अनुमोदन के अधीन है जो पीएमएलए की धारा 74 के तहत संसद से ही संभव है. राज्य सरकार के पास इसके तहत जांच करने के लिए कोई निर्देश जारी करने या कोई नियम बनाने का कोई अधिकार नहीं है. इसके अलावा, पीएमएलए की धारा 52 और धारा 73 को ध्यान से पढ़ने से पता चलता है कि भले ही केंद्र सरकार इन धाराओं के तहत निर्देश जारी करने या नियम बनाने के लिए अधिकृत है लेकिन केंद्र सरकार के पास भी बहुत सीमित अधिकार है और कोई आदेश, निर्देश या निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है ताकि किसी भी प्राधिकारी को "विशेष मामले को एक विशेष तरीके से तय करने के लिए" (पीएमएलए की धारा 52 (ए)) की आवश्यकता हो. पीएमएलए की धारा 73 के प्रावधानों से यह भी स्पष्ट है कि विचाराधीन मुद्दे पर पीएमएलए की धारा 50 (2) और धारा 50 (3) के दायरे को प्रतिबंधित करने के लिए कोई नियम नहीं बनाया जा सकता है.
  4. पीएमएलए की धारा 50(2) के प्रावधानों के तहत, अधिकृत अधिकारियों के पास किसी भी व्यक्ति को समन जारी करने की शक्ति है, जिसकी उपस्थिति वह आवश्यक समझती है, चाहे पीएमएलए के तहत किसी भी जांच या कार्यवाही के दौरान सबूत देना हो या कोई रिकॉर्ड पेश करना हो. पीएमएलए की धारा 50(3) के प्रावधानों में यह भी प्रावधान है कि इस प्रकार बुलाए गए सभी व्यक्ति उपस्थित होने के लिए बाध्य होंगे और किसी भी विषय पर सच्चाई बताने के लिए बाध्य होंगे जिसके संबंध में उनकी जांच की जाएगी या बयान लिया जाएगा साथ ही जरुरत के मुताबिक दस्तावेज भी पेश करने होंगे. धारा 50 (2) और धारा 50 (3) के तहत अधिकृत अधिकारी की शक्तियां राज्य सरकार द्वारा जारी किसी परिपत्र/प्रशासनिक आदेश/आंतरिक निर्देशों के अधीन नहीं हैं. यदि इस प्रकार बुलाए गए व्यक्ति को राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा एक विशेष तरीके से धारा 50 (3) के साथ पठित धारा 50 (2) के प्रावधानों का पालन करने के लिए कहा गया है, तो यह धारा 50 के प्रावधानों के संचालन में अवैध हस्तक्षेप के समान होगा. यह स्पष्ट रूप से पीएमएलए के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध में चल रही जांच को प्रभावित करने का एक प्रयास माना जाएगा.
  5. आपके द्वारा पीएमएलए के तहत आईओ के साथ-साथ राम निवास यादव, आईएएस को पीएमएलए की धारा 50 (2) के तहत तलब किए जाने पर अनुचित निर्देश स्पष्ट रूप से दो परोक्ष उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए हैं, एक तो यह है कि पीएमएलए के तहत चल रही संवेदनशील जांच के बारे में गोपनीय जानकारी और दूसरा धारा 50 (2) के तहत बुलाए गए व्यक्तियों को धारा 50 (3) के प्रावधानों की अवज्ञा करने के लिए प्रोत्साहित या मजबूर करने के समान है. ऐसा कर राज्य सरकार विशेष तरीके से जांच को प्रभावित करेगी. यहां स्पष्ट करना है कि पीएमएलए की धारा 50 (2) के तहत बुलाए गए व्यक्ति के आचरण को प्रभावित करके या किसी विशेष तरीके से मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध की जांच को प्रभावित करके किसी भी व्यक्ति द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध का समर्थन या बढ़ावा देने का कोई भी प्रयास यह उस व्यक्ति द्वारा ऐसे अपराध को उकसाने के समान है जो इस तरह का गैरकानूनी प्रयास कर रहा है. अपराध के लिए उकसाना कानून के तहत दंडनीय अपराध है, जिस पर कृपया ध्यान दिया जाए. यदि पीएमएलए की धारा 50 (2) के तहत बुलाए गए किसी व्यक्ति को बयान देने या किसी विशेष तरीके से दस्तावेज दाखिल करने के लिए मजबूर या प्रभावित करके जांच को प्रभावित करने का कोई प्रयास किया जाता है, तो अधिकृत अधिकारी सभी संबंधित लोगों के खिलाफ उचित कार्यवाही दर्ज करने में संकोच नहीं करेगा. इसमें वैध जांच में बाधा डालने, लोक सेवकों को उनके कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोकने और समन की अवज्ञा के अपराध के लिए उकसाने या उकसाने की साजिश रचने के संबंध में उचित आपराधिक कार्यवाही दर्ज करना भी शामिल हो सकता है. यह आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध है.
  6. इसलिए, आशा और अपेक्षा की जाती है कि आप इस मसले पर कानूनी सलाह लें. किसी भी गैरकानूनी कार्रवाई से बच सकें. ऐसा नहीं होने पर पीएमएलए के तहत अधिकृत अधिकारी के लिए आपराधिक कार्यवाही सहित उचित कार्यवाही शुरू करने का अधिकार होगा.
  7. उस ऑथोरिटी का नाम बताएं जिसने आपको चल रही जांच के बारे में संवेदनशील जानकारी प्राप्त करने के लिए पीएमएलए के तहत जांच अधिकारी को संबोधित करने के लिए अधिकृत किया है और साथ ही सूचित करें कि धारा 50 (2) के तहत बुलाया गया व्यक्ति जानकारी प्रस्तुत करेगा और राज्य सरकार के अन्य अधिकारियों के निर्देश पर बयान देगा. आपके पत्र से यह स्पष्ट है कि आप धारा 52 के तहत केंद्र सरकार की शक्ति के उल्लंघन की कोशिश कर रही हैं, पीएमएलए के प्रावधानों को लागू करने और नियम बनाने के लिए पीएमएलए की धारा 73 और 74 है. चूंकि संसद ने राज्य सरकार को पीएमएलए की धारा 52 और धारा 73 के तहत शक्तियों को लागू करने के लिए अधिकृत नहीं किया है.

उपरोक्त कारणों से, आपके द्वारा मांगी गई जानकारी कानूनी रूप से आपको प्रस्तुत नहीं की जा सकती है. आप बताएं कि किस कानूनी प्रावधान के तहत ऐसा करने का अधिकार मिला है. ईडी ने जल्द से जल्द इस मामले में कैबिनेट की प्रधान सचिव को पक्ष रखने का कहा है.

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क्योंकि प्रधान सचिव वंदना दादेल ने अपने पत्र में कहा था कि आखिर राज्य सरकार के अधिकारियों को किन मामलों में समन जारी किया जा रहा है. साथ ही उन्होंने ईडी से पूछा था कि सरकारी परिसरों में कैसे छापेमारी हो रही है. किसी भी समन में मनी लॉन्ड्रिंग का जिक्र नहीं है. इसी का हवाला देते हुए पिछले दिनों साहिबगंज के डीसी रामनिवास यादव पूछताछ के लिए ईडी दफ्तर नहीं पहुंचे थे.

जवाब में प्रवर्तन निदेशालय ने स्पष्ट कर दिया है कि पीएमएल की धारा 50(2) के तहत वैभव कुमार, मो. नौशाद आलम, राजा मित्रा, रामनिवास यादव और अवधेश कुमार को समन जारी हुआ है. ईडी ने उल्टा सवाल किया है कि आप किस अधिकार से इस जांच प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर रही हैं. यह भी बताएं कि कानून के किस प्रावधान के तहत आपको पीएमएलए के तहत चल रही जांच का विवरण प्राप्त करने के साथ-साथ कार्यवाही में आपके हस्तक्षेप को उचित ठहराने के लिए अधिकृत किया गया है. यदि पीएमएलए की धारा 50 (2) के तहत बुलाए गए किसी व्यक्ति के लिए जांच को प्रभावित करने का कोई प्रयास किया जाता है, तो अधिकृत अधिकारी सभी संबंधित लोगों के खिलाफ उचित कार्यवाही दर्ज करने में संकोच नहीं करेगा. उस अथॉरिटी का नाम बताएं जिसने आपको चल रही जांच के बारे में संवेदनशील जानकारी प्राप्त करने और जांच अधिकारी को संबोधित करने के लिए अधिकृत किया है

राज्य सरकार और केंद्रीय एजेंसी के बीच हुए इस पत्राचार की ब्यूरोक्रेसी में खूब चर्चा हो रही है. अब सवाल है कि क्या कैबिनेट की प्रधान सचिव अपने स्तर से केंद्रीय एजेंसी को पत्र लिखकर समन का कारण पूछ सकती हैं. इस मसले पर ईटीवी भारत की टीम ने राज्य के पूर्व मुख्य सचिव अशोक कुमार सिंह से बात की. उन्होंने कहा कि कोई भी इंडिपेंडेड फैसला लेने का अधिकार हेड ऑफ द डिपार्टमेंट को होता है, बशर्ते ऐसा करने का अधिकार एक्ट से मिला हो. अमूमन विभागीय सचिव सरकार के सचिव होते हैं. वंदना दादेल सरकार की प्रधान सचिव हैं. वह सरकार के सलाहकार के रुप में काम करती हैं. वह अपने स्तर से कोई फैसला नहीं ले सकतीं. मुझे नहीं लगता कि किसी भी विभाग का सचिव सामान्य परिस्थिति में अपने स्तर से कोई फैसला लेता है. इसके लिए उसे मंत्री के अनुमोदन की जरुरत होती है. मिनिस्टर और कैबिनेट में शक्तियां होती हैं.

इस मामले में वंदना दादेल को अपने स्तर से कुछ कहने का कोई औचित्य नहीं दिखता. क्योंकि आमतौर पर हर पत्र निर्देशानुसार ही जारी होता है. किसी न किसी ने उन्हें संचिका पर आदेश दिया होगा. ईडी ने वंदना दादेल से जो भी पूछा है वह एक सामान्य प्रक्रिया है. पूर्व मुख्य सचिव ने कहा कि वंदना दादेल ने ईडी से समन को लेकर जो भी पूछा है, उसे राज्य सरकार का क्वेरी समझना चाहिए. उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इस तरफ का विषय कैबिनेट में गया होगा. उन्हें नहीं लगता कि किसी के जुबानी आदेश पर वंदना दादेल ने पत्र लिखा होगा. चिट्ठी भेजने से पहले ड्राफ्ट का भी अप्रुवल हुआ होगा. कोई अधिकारी अपने स्तर पर इस तरह का पत्र आम तौर पर नहीं भेजता है.

ईडी के पत्र में किन बातों का है जिक्र:

  1. प्रधान सचिव, कैबिनेट को लिखे पत्र में ईडी की ओर से बताया गया है कि वैभव कुमार, मोहम्मद नौशाद आलम, राजा मित्रा, राम निवास यादव और अवधेश कुमार को पीएमएलए की धारा 50 (2) के तहत समन जारी हुआ है.
  2. समन पीएमएलए की धारा 50 (2) के तहत आपको व्यक्तिगत रूप से जारी नहीं किए गए हैं, बल्कि अनुपालन के लिए उपरोक्त संदर्भित व्यक्तियों को जारी किए गए हैं. आप समन के अनुपालन में हस्तक्षेप क्यों कर रही हैं. धारा 50(3) के साथ धारा 50(2) के प्रावधान किसी अन्य व्यक्ति को, जिसे समन जारी नहीं किया गया है, उस व्यक्ति द्वारा समन के अनुपालन में शामिल होने की अनुमति नहीं देता है जिसे धारा 50 (2) के तहत समन जारी किया गया है. यहां यह उल्लेख करना उचित है कि जांच अधिकारी को कानूनी तौर पर पीएमएलए के तहत चल रही जांच के बारे में आपके कार्यालय के साथ कोई भी जानकारी साझा करने की अनुमति नहीं है क्योंकि आप पीएमएलए के प्रावधानों के तहत चल रही जांच में हस्तक्षेप करने या चल रही जांच का विवरण प्राप्त करने के लिए अधिकृत नहीं हैं. इस संदर्भ में आपसे अनुरोध है कि आप बताएं कि कानून के किस प्रावधान के तहत आपको पीएमएलए के प्रावधानों के तहत चल रही जांच का विवरण प्राप्त करने के साथ-साथ पीएमएलए के तहत चल रही जांच कार्यवाही में आपके हस्तक्षेप को उचित ठहराने के लिए अधिकृत किया गया है.
  3. ध्यान रखें कि आप पीएमएलए के प्रावधानों के तहत की जा रही जांच के संबंध में कोई परिपत्र/प्रशासनिक आदेश/आंतरिक निर्देश जारी करने के लिए कानूनी रूप से अधिकृत नहीं हैं. ऐसा कोई भी आदेश या प्रशासनिक निर्देश जांच अधिकारी पर लागू या बाध्यकारी नहीं है, जो भारत की संसद द्वारा अधिनियमित अधिनियम पीएमएलए के प्रावधानों के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध की जांच करने की शक्ति प्राप्त करता है. यह स्पष्ट किया जाता है कि अकेले केंद्र सरकार को पीएमएलए की धारा 52, धारा 73 के तहत पीएमएलए के प्रावधानों को लागू करने के लिए निर्देश जारी करने या नियम बनाने की शक्ति सौंपी गई है और धारा 73 में आगे प्रावधान है कि केंद्र सरकार की नियम बनाने की शक्ति अनुमोदन के अधीन है जो पीएमएलए की धारा 74 के तहत संसद से ही संभव है. राज्य सरकार के पास इसके तहत जांच करने के लिए कोई निर्देश जारी करने या कोई नियम बनाने का कोई अधिकार नहीं है. इसके अलावा, पीएमएलए की धारा 52 और धारा 73 को ध्यान से पढ़ने से पता चलता है कि भले ही केंद्र सरकार इन धाराओं के तहत निर्देश जारी करने या नियम बनाने के लिए अधिकृत है लेकिन केंद्र सरकार के पास भी बहुत सीमित अधिकार है और कोई आदेश, निर्देश या निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है ताकि किसी भी प्राधिकारी को "विशेष मामले को एक विशेष तरीके से तय करने के लिए" (पीएमएलए की धारा 52 (ए)) की आवश्यकता हो. पीएमएलए की धारा 73 के प्रावधानों से यह भी स्पष्ट है कि विचाराधीन मुद्दे पर पीएमएलए की धारा 50 (2) और धारा 50 (3) के दायरे को प्रतिबंधित करने के लिए कोई नियम नहीं बनाया जा सकता है.
  4. पीएमएलए की धारा 50(2) के प्रावधानों के तहत, अधिकृत अधिकारियों के पास किसी भी व्यक्ति को समन जारी करने की शक्ति है, जिसकी उपस्थिति वह आवश्यक समझती है, चाहे पीएमएलए के तहत किसी भी जांच या कार्यवाही के दौरान सबूत देना हो या कोई रिकॉर्ड पेश करना हो. पीएमएलए की धारा 50(3) के प्रावधानों में यह भी प्रावधान है कि इस प्रकार बुलाए गए सभी व्यक्ति उपस्थित होने के लिए बाध्य होंगे और किसी भी विषय पर सच्चाई बताने के लिए बाध्य होंगे जिसके संबंध में उनकी जांच की जाएगी या बयान लिया जाएगा साथ ही जरुरत के मुताबिक दस्तावेज भी पेश करने होंगे. धारा 50 (2) और धारा 50 (3) के तहत अधिकृत अधिकारी की शक्तियां राज्य सरकार द्वारा जारी किसी परिपत्र/प्रशासनिक आदेश/आंतरिक निर्देशों के अधीन नहीं हैं. यदि इस प्रकार बुलाए गए व्यक्ति को राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा एक विशेष तरीके से धारा 50 (3) के साथ पठित धारा 50 (2) के प्रावधानों का पालन करने के लिए कहा गया है, तो यह धारा 50 के प्रावधानों के संचालन में अवैध हस्तक्षेप के समान होगा. यह स्पष्ट रूप से पीएमएलए के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध में चल रही जांच को प्रभावित करने का एक प्रयास माना जाएगा.
  5. आपके द्वारा पीएमएलए के तहत आईओ के साथ-साथ राम निवास यादव, आईएएस को पीएमएलए की धारा 50 (2) के तहत तलब किए जाने पर अनुचित निर्देश स्पष्ट रूप से दो परोक्ष उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए हैं, एक तो यह है कि पीएमएलए के तहत चल रही संवेदनशील जांच के बारे में गोपनीय जानकारी और दूसरा धारा 50 (2) के तहत बुलाए गए व्यक्तियों को धारा 50 (3) के प्रावधानों की अवज्ञा करने के लिए प्रोत्साहित या मजबूर करने के समान है. ऐसा कर राज्य सरकार विशेष तरीके से जांच को प्रभावित करेगी. यहां स्पष्ट करना है कि पीएमएलए की धारा 50 (2) के तहत बुलाए गए व्यक्ति के आचरण को प्रभावित करके या किसी विशेष तरीके से मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध की जांच को प्रभावित करके किसी भी व्यक्ति द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध का समर्थन या बढ़ावा देने का कोई भी प्रयास यह उस व्यक्ति द्वारा ऐसे अपराध को उकसाने के समान है जो इस तरह का गैरकानूनी प्रयास कर रहा है. अपराध के लिए उकसाना कानून के तहत दंडनीय अपराध है, जिस पर कृपया ध्यान दिया जाए. यदि पीएमएलए की धारा 50 (2) के तहत बुलाए गए किसी व्यक्ति को बयान देने या किसी विशेष तरीके से दस्तावेज दाखिल करने के लिए मजबूर या प्रभावित करके जांच को प्रभावित करने का कोई प्रयास किया जाता है, तो अधिकृत अधिकारी सभी संबंधित लोगों के खिलाफ उचित कार्यवाही दर्ज करने में संकोच नहीं करेगा. इसमें वैध जांच में बाधा डालने, लोक सेवकों को उनके कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोकने और समन की अवज्ञा के अपराध के लिए उकसाने या उकसाने की साजिश रचने के संबंध में उचित आपराधिक कार्यवाही दर्ज करना भी शामिल हो सकता है. यह आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध है.
  6. इसलिए, आशा और अपेक्षा की जाती है कि आप इस मसले पर कानूनी सलाह लें. किसी भी गैरकानूनी कार्रवाई से बच सकें. ऐसा नहीं होने पर पीएमएलए के तहत अधिकृत अधिकारी के लिए आपराधिक कार्यवाही सहित उचित कार्यवाही शुरू करने का अधिकार होगा.
  7. उस ऑथोरिटी का नाम बताएं जिसने आपको चल रही जांच के बारे में संवेदनशील जानकारी प्राप्त करने के लिए पीएमएलए के तहत जांच अधिकारी को संबोधित करने के लिए अधिकृत किया है और साथ ही सूचित करें कि धारा 50 (2) के तहत बुलाया गया व्यक्ति जानकारी प्रस्तुत करेगा और राज्य सरकार के अन्य अधिकारियों के निर्देश पर बयान देगा. आपके पत्र से यह स्पष्ट है कि आप धारा 52 के तहत केंद्र सरकार की शक्ति के उल्लंघन की कोशिश कर रही हैं, पीएमएलए के प्रावधानों को लागू करने और नियम बनाने के लिए पीएमएलए की धारा 73 और 74 है. चूंकि संसद ने राज्य सरकार को पीएमएलए की धारा 52 और धारा 73 के तहत शक्तियों को लागू करने के लिए अधिकृत नहीं किया है.

उपरोक्त कारणों से, आपके द्वारा मांगी गई जानकारी कानूनी रूप से आपको प्रस्तुत नहीं की जा सकती है. आप बताएं कि किस कानूनी प्रावधान के तहत ऐसा करने का अधिकार मिला है. ईडी ने जल्द से जल्द इस मामले में कैबिनेट की प्रधान सचिव को पक्ष रखने का कहा है.

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