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कभी एचईसी में काम करना थी शान की बात, कामगार आज रोजगार को लेकर हैं चिंतित

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Published : Jan 16, 2022, 7:47 PM IST

Updated : Jan 16, 2022, 8:48 PM IST

झारखंड में एचईसी का बुरा दौर चल रहा है. एचईसी का गौरवशाली इतिहास रहा है लेकिन धीरे-धीरे यह धरोहर बदहाली की हाल झेलने को मजबूर हो गयी है. आज इस धरोहर को बचाने की जद्दोजहद चल रही है. ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट से जानिए, एचईसी का कल, आज और कल के बारे में.

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झारखंड में एचईसी

रांची: वर्ष 1962 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू झारखंड की राजधानी रांची में हैवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन का उद्घाटन कर देश को एक बड़ा धरोहर दिया. हैवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन लिमिटेड दुनिया के बेहतरीन कैपिटल इक्विपमेंट्स सप्लायर कंपनियों के नाम में शामिल है. न्यूक्लियर प्लांट के क्षेत्र में ना जाने कितने उपकरणों का निर्माण कर चुका है. लेकिन धीरे-धीरे यह धरोहर बदहाली की हाल झेलने को मजबूर हो गयी है. आज एचईसी को बेचने की बात आए दिन सुनने को मिलती है. जिससे एचईसी में काम करने वाले मजदूर अपनी नौकरी को लेकर चिंतित हैं जबकि आज से कुछ वर्ष पहले तक एचईसी में काम करना लोगों के लिए गर्व की बात होती थी.

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एचईसी का बुरा दौर चल रहा है. बेबसी और बदहाली के बीच कर्मचारियों और अधिकारियों ने हमेशा एचईसी का साथ दिया. वेतन ना मिलने में एचईसी में हड़ताल भी हुई. मजदूरों ने एचईसी में काम ठप कराया. अपनी मांगों को लेकर आंदोलन किया लेकिन कभी भी खुद को एचईसी से अलग नहीं किया. एचईसी के एचएमटीपी (HMTP) प्लांट में वेल्डर का काम कर रहे सरोज कुमार बताते हैं बचपन में जब उनके पूर्वज एचईसी में काम करते थे तो उन्हें बचपन से ही इच्छा होती थी कि वह भी बड़े होकर एचईसी में काम करेंगे. लेकिन वर्ष 2012 में वेल्डर के रूप में नौकरी की शुरुआत करते ही उन्हें एहसास होने लगा कि शायद वह अपनी पूरी उम्र एचईसी में नौकरी नहीं कर पाएंगे क्योंकि एचईसी की हालत दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है. क्योंकि महीनों तक कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा है. फैक्ट्री की बड़ी-बड़ी मशीनों में जंग लग रहे हैं.

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एचईसी कर्मचारी उदय शंकर बताते हैं कि वर्षों से इंसेंटिव मजदूरों को नहीं मिली है. कई मजदूर तो अब उम्मीद छोड़ चुके हैं और अपने दूसरे रोजगार में जुट गए हैं ताकि उन्हें भुखमरी के कगार पर ना जाना पड़े. एचईसी में वर्षों से काम कर रहे वरिष्ठ कर्मचारी बालमुकुंद शर्मा बताते हैं एक वक्त था जब एचईसी के क्षेत्र में काम करना और रहना गर्व की बात होती थी. एचईसी में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए हजारों एकड़ में फ्लैट और मकान बनाए गए थे. सभी क्षेत्रों में मिडिल स्कूल और हाईस्कूल हुआ करते थे ताकि क्षेत्र में रहने वाले कर्मचारियों के बच्चे को पढ़ने के लिए ज्यादा दूर ना जाना पड़े. एचईसी की तरफ से बड़े-बड़े खेल के मैदान, बिजली, पानी की व्यवस्था हुआ करती थी. यहां तक कि एचईसी के अपने सुरक्षाकर्मी हुआ करते थे. उन्होंने बताया कि एचईसी अपने कर्मचारियों को स्वास्थ्य व्यवस्था मुहैया कराने के लिए अपना अस्पताल तक रखा हुआ है ताकि किसी भी मजदूर को स्वास्थ्य संबंधी किसी भी समस्या के लिए बाहर का अस्पताल ना जाना पड़े. लेकिन आज की तस्वीर उलट हो गई है अब तो एचईसी क्षेत्र में रहने वाले लोग धीरे-धीरे अपनी सभी सुविधाओं को खो रहे हैं.

एचईसी में काम करने वाले कई वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि एचईसी ने भारत के कई युद्ध और देश की तरक्की के लिए उठाए गए कदमों में हमेशा साथ दिया है. वर्ष 1971 के युद्ध में इंडियन माउंटेन टैंक, 105 एमएम गेन बैरल का निर्माण, आईएनएस राणा के लिए गियर सिस्टम का निर्माण, चंद्रयान के लिए लॉन्चिंग पैड निर्माण सहित कई बड़े उपकरणों का निर्माण कर एचईसी ने देश को मजबूत किया.


मजदूरों के लिए आवाज उठाने वाले भारतीय मजदूर संघ के महामंत्री व एचईसी के कर्मचारी अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि एचईसी की हालत आज खराब हुई है. इसका कारण सिर्फ वर्तमान सरकार नहीं बल्कि पूर्ववर्ती सरकार भी है. क्योंकि एचईसी की हालत वर्ष 2000 से गिरना शुरू हुआ उस वक्त केंद्र में बैठी सरकार ने कारखाना के जीर्णोद्धार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया. जिसके बाद कारखाना दिन प्रतिदिन अपनी बदहाली की हालत में जाता चला गया. उन्होंने अपनी संघ की ओर से कहा कि उन्हें वर्तमान सरकार से उम्मीद है. लेकिन इसके लिए मजदूरों को एकजुट होना पड़ेगा अगर मजदूर एकजुट नहीं होंगे तो आने वाले समय में एचईसी एक इतिहास बनकर रह जाएगा.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय बताते हैं कि एचईसी का निर्माण रूस से आए इंजीनियर्स ने किया था ताकि यहां पर हेवी उपकरण बन सके. इसके उपकरणों से देश का विकास हो सके इसीलिए एचईसी को केंद्र सरकार की निगरानी में रखा गया था. लेकिन वर्तमान की केंद्र सरकार गूंगी बहरी होकर एचईसी के जीर्णोद्धार की बात भी नहीं कर रही है जो कि निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है.

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वर्तमान में एचईसी के मजदूरों की हालत को देखें तो वह वाकई में काफी खराब है. मजदूरों का कहना है कि उन्हें इस समय पर वेतन दिया जाए और एचईसी में बेहतर तरीके से काम नहीं हो रहा है. सारी मशीनें खराब हो रही हैं 50 साल पहले बनाए मशीनों से अब प्रोडक्शन बेहतर नहीं हो पा रहा है इसलिए जरूरी है कि एचईसी को आधुनिकरण की जाए. एचईसी का विकास को लेकर मजदूर भी चिंतिंत हैं. मजदूरों ने कहा कि एचईसी के पास अभी भी बहुत जमीन है अगर सरकार एचईसी की जमीन को बेचकर या लीज में रखकर आर्थिक मदद करे तो एचईसी फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है.

एचईसी क्षेत्र में रहने वाले रिटायर्ड कर्मचारियों ने बताया कि वर्ष 1970 के दशक में एचईसी के पास लगभग 5200 एकड़ जमीन थी. लेकिन अधिकारियों और सरकार में बैठे लोगों ने जमीन का बंदरबांट कर लगभग दो हजार एकड़ जमीन को बेच दिया और उससे मिली आमदनी को व्यक्तिगत लाभ में तब्दील कर दिया, यूं कहें तो सारे पैसे का अधिकारियों के बीच बंदरबांट हो गया. लेकिन अभी भी एचईसी के पास काफी जमीन है इसका सदुपयोग किया जाए तो एचईसी फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा और मजदूरों के आर्थिक हालात भी सुधर जाएगी.

1970 से 90 के दशक में एचईसी में लगभग 18 हजार स्थायी कर्मचारी (PERMANENT STAFF) और करीब 15 हजार अस्थाई कर्मचारी (CONTRACT STAFF) काम करते थे. लेकिन आज की तारीख में देखें तो महज तीन हजार कर्मचारी एचईसी को चला रहे हैं जिसमें की आधे से अधिक अस्थाई ही हैं और जो स्थायी हैं उन्हें भी समय पर वेतन नहीं मिल पा रहा है चाहे वह अधिकारी हो या फिर कर्मचारी. कई रिटायर्ड कर्मचारियों को अभी तक वेतन और बकाए पैसे नहीं मिले हैं वह भी आंदोलन कर सरकार से अपने हक के पैसे की मांग करते आ रहे हैं. वर्तमान में काम कर रहे मजदूरों को 6 महीने का वेतन नहीं मिला है जिसको लेकर एक सप्ताह पूर्व तक 36 दिनों का हड़ताल मजदूरों द्वारा किया गया था. एचईसी का गौरवशाली इतिहास रहा है इसीलिए एचईसी को बचाने के लिए मजदूर अभी भी उम्मीद नहीं छोड़ रहे हैं. अब देखने वाली बात होगी कि क्या फिर से एचईसी के पुराने दिन लौट आएंगे या मजदूरों का संघर्ष ऐसे ही जारी रहेगा.

Last Updated :Jan 16, 2022, 8:48 PM IST
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