ETV Bharat / city

लजीज व्यंजनों में से एक है लाल चीटिंयों की चटनी, कोड़ा आदिवासी समुदाय के लोगों को है बेहद पसंद

author img

By

Published : Oct 9, 2019, 9:34 PM IST

Updated : Oct 10, 2019, 7:13 PM IST

धनबाद के रंगनीभीठा गांव में कोड़ा आदिवासी समुदाय के लोग लाल चीटिंयों की चटनी को बड़े स्वाद लेकर खाते हैं. उनका कहना है कि इसे खाने से कई तरह की बीमारियां दूर होती हैं. जबकि ये चीटियां आसानी से पेड़ों की टहनियों से मिल जाती हैं.

लाल चीटिंयों की चटनी

धनबादः आमतौर पर दैनिक दिनचर्या में अगर घर में चीटिंयां निकल आए तो लोग उसमें बचने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं, लेकिन आज भी एक ऐसा आदिवासी समुदाय है जिनके लिए चीटिंयां किसी लजीज व्यंजन से कम नहीं है. कोड़ा आदिवासी समुदाय के लोग चीटिंयों और उनके अंडों को बड़े चाव से चटनी बनाकर खाते हैं. उनका मानना है कि चीटिंयों में प्रतिरोधक क्षमता है. जिसके कारण उन्हें कभी कोई बीमारी नहीं होती है. समुदाय के लोग उन चींटियों को बेमौत चीटिंयों के नाम से जानते हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

जिले के रंगनीभीठा में कई कोड़ा आदिवासी समुदाय के लोग वर्षों रह रहे हैं, पांच छह पीढ़ी इनकी यहां गुजर चुकी है. रंगनीभीठा धनबाद नगर निगम क्षेत्र में आता है. यह शहरी क्षेत्र जरूर है, लेकिन यहां कोड़ा आदिवासी समुदाय के लोग पारंपरिक वेशभूषा में नजर आते हैं.

चीटिंयों के अंड्डे है लजीज व्यंजन
दरअसल, चीटिंयों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं. जिनमें से इन चीटिंयों को सुमदाय के लोग बेमौत चीटिंयों के नाम से जानते हैं. इनके लिए यह एक लजीज व्यंजन है. चीटिंयों एवं उनके अंडों को चटनी बनाकर ये खाने में इस्तेमाल करते हैं. यह चीटिंयां पेड़ों पर पाई जाती है. पेड़ों की छोटी-छोटी टहनियों पर घोसलानुमा आकार के पत्तों के बीच असंख्य चीटिंयां झुंड में अंडा देती हैं. समुदाय के लोग ऐसे वृक्षों को खोज निकालते हैं और फिर उन टहनियों को तोड़ कर नीचे लाते हैं.

खट्टी होती है अंड्डे की चटनी
वहीं, कोड़ा समुदाय का युवक सुरेश का कहना है कि वह इसे घर ले जाकर इनकी चटनी बनाता है और फिर खाता है. चीटिंयां थोड़ी खट्टी लगती हैं, लेकिन इनके अंडे खाने में बेहद टेस्टी लगते हैं. युवक का कहना है कि इसे खाने से उन्हें कभी बीमारी नहीं होती हो वो स्वास्थ्य रहते.

ये भी पढ़ें- मैं हूं कांग्रेस ऑफिस रोड, मेरी स्थिति और परिस्थिति राजनीति की शिकार है!

शोध करने की आवश्यकता
इस संबंध में कोयलांचल विश्वविद्यालय के जूलॉजी विभाग के प्रोफेसर से बात की तो उन्होंने कहा कि पेड़ों पर यह चीटिंयां इन्हें उपलब्ध हो जाती हैं. कोई खर्च भी नहीं लगता है. प्रोफेसर ने बताया कि एनिमल के अंडों में प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है. चीटिंयों के अंडे में भी प्रोटीन होने के कारण यह आदिवासी समुदाय इसका उपयोग खाने में करते हैं. उन्होंने कहा कि चीटिंयों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कितनी है, साथ ही यह यह शरीर के लिए कितना नुकसानदायक हो सकता है, इसके लिए शोध करने की आवश्यकता है. बहरहाल, कोड़ा आदिवासी समुदाय कई पीढ़ियों से चीटिंयों और अंडों का सेवन कर रहे हैं, लेकिन रिसर्च के बाद ही मालूम हो पाएगा कि चीटिंयों और अंडों के खाने से कितना नुकसानदेह है या लाभदायक.

Intro:ANCHOR:-आमतौर पर दैनिक दिनचर्या में यदि घर मे चींटियां निकल आए तो लोग उनसे बचने के लिए तरह तरह के उपाय करते हैं।लेकिन आज भी एक ऐसा आदिवासी समुदाय है जिनके लिए चींटियां किसी लजीज व्यंजन से कम नही है।कोड़ा आदिवासी समुदाय के लोग चींटियों और उनके अंडों को बड़े चाव से चटनी बनाकर खाते हैं।उनका मानना है कि चींटियों में प्रतिरोधक क्षमता है।जिसके कारण उन्हें कभी कोई बीमारी नही होती है।समुदाय के लोग उन चींटियों को बेमौत चींटियों के नाम से जानते हैं।


Body:जिले के रंगनी भीठा में कई कोड़ा आदिवासी समुदाय के लोग वर्षों रह रहे हैं।पांच छह पीढ़ी इनकी यहां गुजर चुकी है।रंगनीभीठा धनबाद नगर निगम क्षेत्र में आता है।यह शहरी क्षेत्र जरूर है लेकिन यहां कोड़ा आदिवासी समुदाय के लोग पारम्परिक वेशभूषा में नजर आते हैं।चीटियाँ की कई प्रजातियां पाई जाती हैं।सुमदाय के लोग जिसे बेमौत चींटियों के नाम से जानते हैं।इनके लिए एक लजीज व्यंजन है।चींटियों एवं उनके अंडों को चटनी बनाकर ये खाने में इस्तेमाल करते हैं।यह चीटियाँ पेडों पर पाई जाती है।पेड़ो की छोटे छोटे टहनियाँ पर घोसलानुमा आकार के पत्तों के बीच असंख्य चीटियाँ झुंड में अंडा देती है।समुदाय के लोग ऐसे वृक्षों को खोज निकालते हैं।और फिर उन टहनियों को तोड़ कर निचे लाते हैं।कोड़ा समुदाय का युवक सुरेश कहता है कि वह इसे घर ले जाकर इनकी चटनी बनाता है और फिर खाता है।चींटियां थोड़ी खट्टी लगती है।लेकिन इनके अंडे बेहद टेस्टी लगते हैं खाने में।वह कहता है कि इसे खाने से उन्हें कभी बीमारी नही होती वह हमेशा स्वस्थ रहता है।

वहीं इस संबंध में जब हमने बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय के जूलॉजी विभाग के प्रोफेसर से बात की तो उन्होंने कहा कि पेडों पर यह चीटियाँ इन्हें उपलब्ध हो जाती है।कोई खर्च भी नही लगता है।वैसे एनिमल के अंडों में प्रोटीन की मात्रा पायी जाती है।चींटियों के अंडे में भी प्रोटीन होने के कारण यह समुदाय इसका उपयोग करते हैं।वहीं बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय के जूलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ उपेंद्र कुमार सिंह ने कहा आदिवासी प्रोटीन के कारण चींटियों और उसके अंडे का इस्तेमाल करते हैं।लेकिन उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता कितनी है।साथ ही यह यह शरीर के लिए यह कितना नुकसानदायक हो सकता है।इसके लिए शोध करने की आवश्यकता है।


Conclusion:बहरहाल, कोड़ा आदिवासी समुदाय कई पीढ़ियों से चींटियों और अंडों का सेवन कर रहे हैं।लेकिन रिसर्च के बाद ही मालूम चल सकेगा कि चींटियां और अंडे नुकसानदेह है या लाभदायक।

नरेंद्र कुमार, ईटीवी भारत, धनबाद
Last Updated :Oct 10, 2019, 7:13 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.