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Karsog Kamaksha Temple: करसोग में विद्यमान है 10 महाविद्याओं की देवी, साल में एक बार अष्टमी की रात भक्तों को दर्शन देगीं माता कामाक्षा

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Oct 19, 2023, 12:30 PM IST

हिमाचल प्रदेश देवी-देवताओं की भूमि है. यहां पर विश्व प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां दर्शनों के लिए देश-प्रदेश से लोग आते हैं. ऐसा ही एक मंदिर मंडी जिले के करसोग में स्थित है. इसे कामाक्षा मंदिर के नाम से जाना जाता है, जो कि माता कामाक्षा को समर्पित है. मंदिर से जुड़े रोचक तथ्यों को जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर..... (Shardiya Navratri 2023) (Karsog Kamaksha Temple)

Karsog Kamaksha Temple
कामाक्षा माता

करसोग: हिमाचल के विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद कई मंदिर आज भी अपने में गहरे रहस्य समेटे हुए हैं. ऐसा ही एक प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर जिला मंडी के तहत करसोग में स्थित है. हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध मंदिरों में एक कामाक्षा मंदिर में 21 अक्टूबर को अष्टमी की रात माता का मेला लगेगा. जिसमें मध्य रात्रि में माता साल में एक बार भक्तों को दर्शन देगी. ये मंदिर माता कामाक्षा के नाम से प्रसिद्ध है. वैसे तो यहां साल भर प्रदेश समेत देशभर से श्रद्धालु माता के दर्शनों के लिए आते हैं, लेकिन इन दिनों शारदीय नवरात्रि में माता के दर्शनों का विशेष महत्व बताया गया है. जिला मंडी के करसोग तहसील मुख्यालय से कुछ ही मीटर की दूरी पर काओ नामक स्थान पर पांडवों के काल से संबंध रखने वाला कामाक्षा मंदिर शिल्प कला का उत्कृष्ट उदाहरण है.

देशभर में माता के 3 मंदिर: हर मनोकामना को पूर्ण करने वाली कामाक्षा माता को 10 महाविद्याओं की देवी भी कहा जाता है. जिला मंडी के करसोग तहसील मुख्यालय से कुछ ही मीटर की दूरी पर काओ नामक स्थान पर पांडव काल से संबंध रखने वाला कामाक्षा मंदिर शिल्पकला का उत्कृष्ट उदाहरण है. लकड़ी पर नक्काशी से बने इस प्रसिद्ध मंदिर में माता अष्टधातु की मूर्ति के रूप में विराजमान है. देशभर में कामाक्षा माता के केवल 3 ही मंदिर हैं. जहां अलग अलग रूपों में माता की पूजा होती है.

Karsog Kamaksha Temple
कामाक्षा माता मंदिर

ये है मान्यता: बताया जाता है कि माता सती जहां पर टुकड़ों के रूप में गिरी थी, वहां माता के प्रसिद्ध मंदिर विद्यमान हैं. इसमें मुख्य मंदिर भारत के उत्तर पूर्व दिशा में असम में स्थित है. यहां इस मंदिर को कामाख्या मंदिर नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि यहां माता सती के शरीर का एक टुकड़ा योनि रूप में गिरा था, इसलिए आसाम में माता को योनि रूप में कामाख्या के नाम से जाना जाता है. दूसरा मंदिर कांचीपुरम में स्थित है. जहां माता को ज्योति रूप पूजा जाता है और माता को कामाक्षी कहा जाता है. माता का तीसरा स्थान करसोग के काओ में है. यहां माता को कामाक्षा नाम से पूजा जाता है.

'आधी रात को माता देती है दर्शन': कामाक्षा माता मंदिर के पुजारी तनिश शर्मा ने बताया कि हर साल शारदीय नवरात्रि के दौरान मंदिर में अष्टमी की रात माता का मेला लगता है. इस दौरान माता साल में एक बार किसी स्थानीय व्यक्ति में आकर भक्तों को दर्शन देती हैं. ऐसे में मेले की रात को दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शनों के लिए आते हैं.

सांस्कृतिक संध्या का आयोजन: प्रसिद्ध कामाक्षा मंदिर में 21 अक्टूबर को अष्टमी की रात को 8 से मध्य रात्रि 2 बजे तक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया जाएगा. जिसमें नाटी फेम ठाकुर रघुवीर सिंह, फोक सिंगर निशा भारद्वाज व मेल एंड फीमेल वॉइस किंग मोहन गुलेरिया अपने मधुर सुरों का जादू बिखेरेंगे. इसके बाद मध्य रात्रि में 2 से सुबह 6 बजे तक शोभायात्रा निकाली जाएगी. बताया जाता है कि इसी रात साल में एक बार मंदिर में उपस्थित स्थानीय गांव के किसी एक व्यक्ति में माता जागृत होती हैं. जिसके बाद माता कामाक्षा आधी रात को दोनों और पहाड़ियों में विराजमान जोगनियों की परिक्रमा कर सुबह तक वापस मंदिर में लौटेंगी. मान्यता है कि अष्टमी की रात माता के दर्शन करने से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है.

ये भी पढ़ें: Kamaksha Temple Karsog: 10 महाविद्याओं की देवी है मां कामाक्षा, अष्टमी पर्व पर मंदिर में होगा जागरण

करसोग: हिमाचल के विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद कई मंदिर आज भी अपने में गहरे रहस्य समेटे हुए हैं. ऐसा ही एक प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर जिला मंडी के तहत करसोग में स्थित है. हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध मंदिरों में एक कामाक्षा मंदिर में 21 अक्टूबर को अष्टमी की रात माता का मेला लगेगा. जिसमें मध्य रात्रि में माता साल में एक बार भक्तों को दर्शन देगी. ये मंदिर माता कामाक्षा के नाम से प्रसिद्ध है. वैसे तो यहां साल भर प्रदेश समेत देशभर से श्रद्धालु माता के दर्शनों के लिए आते हैं, लेकिन इन दिनों शारदीय नवरात्रि में माता के दर्शनों का विशेष महत्व बताया गया है. जिला मंडी के करसोग तहसील मुख्यालय से कुछ ही मीटर की दूरी पर काओ नामक स्थान पर पांडवों के काल से संबंध रखने वाला कामाक्षा मंदिर शिल्प कला का उत्कृष्ट उदाहरण है.

देशभर में माता के 3 मंदिर: हर मनोकामना को पूर्ण करने वाली कामाक्षा माता को 10 महाविद्याओं की देवी भी कहा जाता है. जिला मंडी के करसोग तहसील मुख्यालय से कुछ ही मीटर की दूरी पर काओ नामक स्थान पर पांडव काल से संबंध रखने वाला कामाक्षा मंदिर शिल्पकला का उत्कृष्ट उदाहरण है. लकड़ी पर नक्काशी से बने इस प्रसिद्ध मंदिर में माता अष्टधातु की मूर्ति के रूप में विराजमान है. देशभर में कामाक्षा माता के केवल 3 ही मंदिर हैं. जहां अलग अलग रूपों में माता की पूजा होती है.

Karsog Kamaksha Temple
कामाक्षा माता मंदिर

ये है मान्यता: बताया जाता है कि माता सती जहां पर टुकड़ों के रूप में गिरी थी, वहां माता के प्रसिद्ध मंदिर विद्यमान हैं. इसमें मुख्य मंदिर भारत के उत्तर पूर्व दिशा में असम में स्थित है. यहां इस मंदिर को कामाख्या मंदिर नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि यहां माता सती के शरीर का एक टुकड़ा योनि रूप में गिरा था, इसलिए आसाम में माता को योनि रूप में कामाख्या के नाम से जाना जाता है. दूसरा मंदिर कांचीपुरम में स्थित है. जहां माता को ज्योति रूप पूजा जाता है और माता को कामाक्षी कहा जाता है. माता का तीसरा स्थान करसोग के काओ में है. यहां माता को कामाक्षा नाम से पूजा जाता है.

'आधी रात को माता देती है दर्शन': कामाक्षा माता मंदिर के पुजारी तनिश शर्मा ने बताया कि हर साल शारदीय नवरात्रि के दौरान मंदिर में अष्टमी की रात माता का मेला लगता है. इस दौरान माता साल में एक बार किसी स्थानीय व्यक्ति में आकर भक्तों को दर्शन देती हैं. ऐसे में मेले की रात को दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शनों के लिए आते हैं.

सांस्कृतिक संध्या का आयोजन: प्रसिद्ध कामाक्षा मंदिर में 21 अक्टूबर को अष्टमी की रात को 8 से मध्य रात्रि 2 बजे तक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया जाएगा. जिसमें नाटी फेम ठाकुर रघुवीर सिंह, फोक सिंगर निशा भारद्वाज व मेल एंड फीमेल वॉइस किंग मोहन गुलेरिया अपने मधुर सुरों का जादू बिखेरेंगे. इसके बाद मध्य रात्रि में 2 से सुबह 6 बजे तक शोभायात्रा निकाली जाएगी. बताया जाता है कि इसी रात साल में एक बार मंदिर में उपस्थित स्थानीय गांव के किसी एक व्यक्ति में माता जागृत होती हैं. जिसके बाद माता कामाक्षा आधी रात को दोनों और पहाड़ियों में विराजमान जोगनियों की परिक्रमा कर सुबह तक वापस मंदिर में लौटेंगी. मान्यता है कि अष्टमी की रात माता के दर्शन करने से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है.

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