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हिमाचल की एप्पल मार्केट को झटका, इन कारणों से गिरे सेब के दाम

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Published : Aug 26, 2021, 8:54 PM IST

एप्पल
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एप्पल बाउल हिमाचल (Apple Bowl Himachal) में इन दिनों बागवान दामों के गिरने से परेशान है. करीब 4 हजार करोड़ के सेब कारोबार में सेब की बंपर क्रॉप हुई, लेकिन तीन कारणों से बागावानों को निराशा हाथ लगी. वहीं, सेब सीजन को लेकर सरकार ने पूरी तैयारियां कर ली हैं.

शिमला: देश का एप्पल बाउल हिमाचल (Apple Bowl Himachal) प्रदेश के बागवान इन दिनों निराश और हताश हैं. करीब 4 हजार करोड़ के सेब कारोबार में इस बार मार्केट डाउन हो गई है. बागवानों को अपनी उपज के बेहतर दाम नहीं मिल रहे हैं. यह बात सही है कि इस बार सेब की बंपर क्रॉप हुई, लेकिन दाम के मामले में बागवानों को निराशा हाथ लगी है.

दाम गिरने के तीन प्रमुख कारण हैं. हिमाचल में मुख्यत: सेब उत्पादन तीन बेल्ट में होता है, इसे लोअर मिडिल व हाई बेल्ट कहा जाता है. लोअर बेल्ट में 15 जुलाई से 15 अगस्त तक सेब का सीजन चलता है. इस दौरान देश की पूरी मार्केट खाली होती है. ऐसे में बागवानों को अच्छे दाम मिलते है, लेकिन लोअर एलिवेशन में सेब उत्पादन का एरिया काफी कम है फिर मिडिल बेल्ट में 15 अगस्त से 15 सितंबर के बीच सेब सीजन चलता है. मिडिल बेल्ट में हिमाचल में सबसे अधिक एरिया आता है और इस कारण सेब उत्पादन का सबसे बड़ा हिस्सा इसी बेल्ट का होता है.

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इस समय देश की एप्पल मार्केट में बड़ी मात्रा में सेब पहुंचता है. हिमाचल के विख्यात प्रगतिशील बागवान पंकज डोगरा के अनुसार इस दफा हिमाचल में लोअर और मिडिल बेल्ट में सेब का बंपर पैदावार हुआ है. इस कारण लोअर बेल्ट का सिर्फ सेब अभी मार्केट में पहुंच रहा और मिडिल बेल्ट का सेब भी पूरी क्षमता के साथ पहुंचा है. ऐसे में मार्केट डाउन हो गई. तीसरा कारण मौसम की मार है.इस बार असमय बारिश और ओलावृष्टि से सेब का आकार व रंग प्रभावित हुआ है.

दागी सेब को भी मार्केट में अच्छे दाम नहीं मिलते. इस कारण हिमाचल का बागवान परेशानी से घिर गया है. छोटी सेब को पित्तु कहते हैं. पित्तु का अर्थ आकर में छोटा सेब माना जाता है. इस सेब की मार्केट देश के कोलकाता व साथ लगते इलाकों में है. मौसम के विपरीत प्रभाव के कारण फीसदी से आकार में छोटा और इस तरह का सेब कुल उत्पादन का 80 फीसदी है. जिससे भी मार्केट डाउन हुई है. सेब मार्केट डाउन होने के यह तीन प्रमुख कारण है.

कोरोना संकट के कारण दो साल से हिमाचल के सेब कारोबार प्रभावित हुआ है. यह बात ठीक है कि बंपर क्रॉप होने से बागवान खुश थे, लेकिन मार्केट डाउन होने के कारण उन्हें दाम नहीं मिल रहे हैं. उल्लेखनीय है कि हिमाचल में चार लाख बागवान परिवार हैं. सेब सीजन के दौरान ट्रांसपोर्ट सेक्टर और लेबर को भी काम मिलता है. मार्केट डाउन होने से पूरा कारोबार प्रभावित होता है. सबसे अधिक मार शिमला जिले को झेलनी पड़ती है, क्योंकि हिमाचल प्रदेश का कुल उत्पादन का 80 फीसदी शिमला जिले में होता है. जिले में सेब उत्पादन की तीनों बेल्ट का एरिया है. इस तरह शिमला जिले के बागवानों को आर्थिक नुकसान उठाना पढ़ रहा है.

सेब उत्पादक संघ के अध्यक्ष हरीश चौहान ने कहा कि सेब के दाम गिरने से किसानों की आर्थिकी की पर बुरा प्रभाव पड़ा है. फल सब्जी और सेब उत्पादक संघ हिमाचल तरफ से उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग रखी है कि कश्मीर की तर्ज पर ए ग्रेड, बी ग्रेड, सी ग्रेड आधार पर सेब की खरीद की जाती है. उसी तर्ज पर हिमाचल में भी बागवानों से एमएसपी पर सरकार खरीद करें. उन्होंने कहा कि पिछले 15 दिनों में बागवानों को पर पेटी हजार रुपए के करीब का नुकसान हुआ. उन्होंने कहा कि एक देश एक मंडी के आधार पर हिमाचल प्रदेश में भी जम्मू कश्मीर की तर्ज पर सेब खरीद होनी चाहिए.

दिक्कत नहीं होगी : राज्य सरकार ने सेब सीजन के लिए तैयारियां पूरी कर ली हैं. नियंत्रण कक्ष स्थापित किए जा चुके हैं. पिछले साल मौसम और कोरोना के कारण सेब कारोबार प्रभावित हुआ था. इस बार आसार है कि सेब को मंडियों तक पहुंचाने में कोई खास दिक्कत नहीं होगी. हिमाचल में पिछले साल 2.80 करोड़ पेटी सेब उत्पादन हुआ था. इस बार अकेले शिमला जिले में सवा दो करोड़ पेटी सेब उत्पादन का अनुमान है. हिमाचल का सेब देश के महानगरों के फाइव स्टार होटलों में भी धाक जमा चुका है.

दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, मद्रास सहित देश के हर महानगर में हिमाचल के सेब की मांग रहती है. यहां सेब की परंपरागत रॉयल किस्म के अलावा विदेशी किस्मों का भी उत्पादन होता है. हिमाचल प्रदेश में विगत डेढ़ दशक का आंकड़ा देखा जाए तो वर्ष 2010 में सबसे अधिक 4.46 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन हुआ था. सेब उत्पादन के लिए शिमला जिले का जुब्बल, कोटखाई, नारकंडा, चौपाल, कोटगढ़, क्यारी, रोहड़ू इलाका विख्यात है. शिमला जिला के अलावा कुल्लू, मंडी, किन्नौर, चंबा, लाहौल-स्पीति व सिरमौर में भी सेब पैदा होता है. कुछ सालों से प्रयोगधर्मी लोगों ने गर्म जलवायु वाले इलाकों में भी सफलतापूर्वक सेब को उगाया है.


अमीर गांव: हिमाचल प्रदेश को सेब ने कई तोहफे दिए हैं. यहां सेब उत्पादन का सफर सौ साल से अधिक का हो गया है. सेब से आई समृद्धि यहां सहज ही देखी जा सकती है. सेब उत्पादन के कारण हिमाचल के बागवान करोड़पति हुए हैं. यही नहीं, सेब के कारण ही हिमाचल प्रदेश के दो गांव एशिया के सबसे अमीर गांव रह चुके हैं. उनमें से एक गांव क्यारी तो अस्सी के दशक में एशिया का सबसे अमीर गांव रहा है. उसके बाद इसी दशक में ऊपरी शिमला का मड़ावग गांव एशिया का सबसे अमीर गांव रहा है. हिमाचल के बागवानों ने अपनी मेहनत से समृद्धि की ये कहानी लिखी है. अब नौजवान सरकारी नौकरी का मोह छोडक़र बागवानी की तरफ झुकाव रख रहे हैं. कई युवाओं ने एमएनसी की नौकरियां छोडक़र अपने बागीचे तैयार किए. सेब के अलावा हिमाचल अब प्लम, आड़ू, नाशपाती के अलावा स्टोन फ्रूट उत्पादन में भी नाम कमा रहा है.

हिमाचल में सेब उत्पादन

सालपेटी
20072.96 करोड़ पेटी
20082.55 करोड़ पेटी
20091.40 करोड़ पेटी
20104.46 करोड़ पेटी
2011 1.38 करोड़ पेटी
2012 1.84 करोड़ पेटी
2013 3.69 करोड़ पेटी
2014 2.80 करोड़ पेटी
2015 3.88 करोड़ पेटी
2016 2.40 करोड़ पेटी
2017 2.08 करोड़ पेटी
2018 1.65 करोड़ पेटी
2019 3.75 करोड़ पेटी
2020 2.80 करोड़ पेटी

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