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हरियाणा के किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही है खेती, देखें ये रिपोर्ट

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Published : Dec 28, 2019, 9:59 PM IST

हरियाणा के किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही है खेती
हरियाणा के किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही है खेती

हरियाणा के किसान इस समय कई तरह की दिक्कतों से जूझ रहे हैं. किसानों को खेती करना घाटे का सौदा बनता जा रहा है. इसलिए ईटीवी भारत हरियाणा की टीम ने जानना चाहा कि आखिर किसानों को खेती करने में किस तरह की परेशानियां सामने आ रही है.

सिरसा: हरियाणा कृषि प्रधान प्रदेश जरूर है, लेकिन खेती हरियाणा के किसानों के लिए अब घाटे का सौदा बनती जा रही है. हरियाणा के किसान आज कर्ज के कारण कराह रहे हैं. उपजाऊ जमीन कम हो रही है और डीजल, खाद, कीटनाशकों के दाम लगातार बढ़े रहे हैं. यही कारण है कि किसान सड़कों पर उतरकर धरना-प्रर्दशन करने को मजबूर हैं.

भूजल की चिंताजनक स्थिति
हरियाणा में आज भूजल के लिहाज से स्थिति चिंताजनक है. फसलीचक्र न अपनाने का नतीजा है की आज सोना उगलने वाली धरती बंजर होती जा रही है. सब्जियों और फलों की खेती के प्रति शासन और प्रशासन में उदासीनता का आलम है. तो वहीं जैविक खेती न के बराबर हो रही है.

हरियाणा के किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही है खेती, देखें वीडियो

कितनी भूमि पर किस फसल की खेती ?
हरियाणा में खेती के गणित को समझने के लिए हमें इसकी गहराई में जाना होगा. हरियाणा में करीब 36 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है रबी के सीजन में यहां करीब 25 लाख हेक्टेयर में गेहूं, सवा 6 लाख में धान, बाजरा और 70 हजार हेक्टेयर में ज्वार की खेती की जाती है. 4 लाख हेक्टेयर में सब्जियां और करीब 995 हेक्टेयर में फूलों की खेती की जाती है.

अगर सिंचाई की बात करें तो करीब 18 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई नलकूपों से जबकि 12 लाख हेक्टेयर भूमि की नहरी पानी से सिंचाई होती है. हरियाणा में करीब 2 लाख 79 हजार ट्रैक्टर है. हरित क्रांति के दौर में कीटनाशकों और खादों के प्रयोग व मशीनीकरण के बाद गेहूं धान का उत्पादन बढ़ा है. इससे किसानों की माली हालत भी सुधरी है और यहां के किसानों का लाइफ स्टाइल भी बदला, लेकिन इस उजले पक्ष के अलावा एक धुंधला पक्ष भी है.

अब जमीन की जोत कम हो रही है फरीदाबाद और गुरुग्राम में तो खेती के लिए जमीन न के बराबर बची है. किसान अपनी जमीन खोता जा रहा है और यहां के नौजवान प्राइवेट सेक्टर में छोटी मोटी नौकरी करने को मजबूर हो गए हैं. इसके अलावा फसल का उचित मूल्य ना मिलने के कारण नई पीढ़ी खेती से तौबा करने लगी है.

जमीन की जोत हो रही कम
हरियाणा कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा में कुल 16 लाख 17 हजार किसान परिवार हैं. इसमें मध्यम वर्गीय किसानों की संख्या 7 लाख 78 हजार है, जिनके पास एक से 2 एकड़ जमीन है. इसी तरह 1 से 2 हेक्टेयर भूमि वाले 3 लाख 15 हजार और दो हेक्टेयर से अधिक भूमि वाले 5 लाख 24 हजार किसान हैं. जाहिर है कि हरियाणा में अब जोत भी निरंतर कम होती जा रही है.

अन का कटोरा भर रहा है
रोचक पहलू ये है कि हरियाणा देश का प्रमुख गेहूं धान कपास और सरसों का उत्पादित राज्य है. साल 2018 और 19 में करीब एक करोड़ 17 लाख 80 हजार टन गेहूं का उत्पादन हुआ जबकि 6 लाख 12 हजार हेक्टेयर जमीन पर 11 लाख 23 हजार टन सरसों का उत्पादन हुआ. इसी तरह से खरीफ सीजन में 6 लाख 48 हजार हेक्टेयर जमीन पर 26 लाख 38 हजार गांठ नरमे का उत्पादन हुआ और 12 लाख हेक्टेयर जमीन पर में 42 लाख 4 हजार टन धान का उत्पादन हुआ.

Intro:एंकर - खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है और किसान आज कर्ज से कराह रहा है जमीन की जोत कम हो रही है , और डीजल , खाद , कीटनाशकों के दाम ने खेती की लागत बढ़ा दी है। किसानों को उनकी फसल का उचित दाम नही मिल रहा, प्राकृतिक आपदा से हुई बर्बाद फ़सलो का बीमा सालों तक नही मिलता। जिसके लिए आज किसान सड़कों और सरकारी कार्यालय के सामने धरना प्रदर्शन करने को मजबूर हो गया है। हमने किसानों से जानने की कोशिश की कि आज के दौर में कृषि करना कितना मुश्किल हो गया है और सरकार की योजनाएं उनतक कितनी पहुंच रही है।


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वीओ - किसानों ने etv भारत की टीम से बात करते हुए किसानों ने बताया कि आज कृषि करना एक घाटे का सौदा हो गया है । उनकी फसलों पर लागत बहुत लग रहा है जिसके मुकाबले उन्हें उचित दाम नही मिल रहा । सरकारी योजनाओं पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि सरकारी कर्मचारी सारे अपने अपने ऑफिस और मीटिंग में व्यस्त रहते हैं। हमें कोई किसी योजना के बारे में बताने नही आता , हमें किसी योजना की कोई जानकारी हो तब तो हम उसका लाभ उठा सकें। जब हमें योजना के बारे में पता ही नही होगा तो हम कहाँ से किसी योजना का लाभ उठा पाएंगे। किसानों की हालत आज बद से बत्तर हो गयी है।

बाइट - ओमप्रकाश , बलवंत सिंह , विजय सिंह किसान

वीओ - वहीं कृषि विभाग के अधिकारी का कहना है कि इस सीजन में पिछ्ली बार से अधिक बिजाई हुई , अगर मौसम ने साथ दिया तो इस बार रिकॉर्ड रबी की फसलों का उत्पादन होगा। वहीं उन्होंने कहा कि सरकारी योजनाओं का भी किसानों को बहुत फायदा मिल रहा है। उन्होंने किसानों से अपील की कि वो कृषि में नई तकनीक को अपनाएं जिससे उनकी स्थिति में सुधार होगा।

बाइट सुखदेव कम्बोज , कृषि अधिकारी

वीओ - हालांकि कृषि विभाग जो भी कहे लेकिन आज पूरे देश में किसानों की क्या स्थिति है ये किसी से छुपा नहीं है। आज किसान अपनी मांगों को लेकर संसद का घेराव करने को मजबूर है। जहां उनपर लाठीचार्ज और FIR , जेल कारावास जैसे अन्य तरह की पड़ताना को झेलना पड़ रहा है।



हरियाणा कृषि की कुछ रोचक बातें


हरियाणा का किसान आज कर्ज से कराह रहा है खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है जमीन की जोत कम हो रही है , और डीजल खाद कीटनाशकों के दाम ने खेती की लागत बढ़ा दी है। आलम यह है कि हरियाणा में इस समय 20 लाख से अधिक किसानों पर करीब 39 हजार करोड़ रुपए का कर्जा है । यानी हर किसान कर्जदार है। जिसमें साहूकार और आढ़तियों से लिए कर्ज का आंकड़ा उपलब्ध ही नहीं है। हरियाणा में धान का रकबा बढ़ रहा है । जिस वजह से नलकूपों की संख्या 8 लाख 12 हजार तक पहुंच गई है। ऐसे में भूजल के लिहाज से स्थिति चिंताजनक है। फसलीचक्र न अपनाने का नतीजा है की आज सोना उगलने वाली धरती बंजर होती जा रही है। सब्जियों और फलों की खेती के प्रति शासन और प्रशासन में उदासीनता का आलम है। तो वहीं जैविक खेती न के बराबर हो रही है । आज यानी 23 दिसंबर को किसान दिवस है ऐसे में वर्तमान समय में कृषि कितनी कठिन हो गई है इस पर ईटीवी भारत की टीम ने एक पड़ताल की है।

हरियाणा में खेती के गणित को समझने के लिए हमें इसकी गहराई में जाना होगा। हरियाणा में करीब 36 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है । रबी के सीजन में यहां करीब 25 लाख हेक्टेयर में गेहूं , सवा 6 लाख में धान, बाजरा व 70 हजार हेक्टेयर में ज्वार की खेती की जाती है । 4 लाख हेक्टेयर में सब्जियां और करीब 995 हेक्टेयर में फूलों की खेती की जाती है । वहीं अगर सिंचाई की बात करें तो करीब 18 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई नलकूपों से जबकि 12 लाख हेक्टेयर भूमि की नहरी पानी से सिंचाई होती है । हरियाणा में करीब 2 लाख 79 हजार ट्रैक्टर हैं । हरित क्रांति के दौर में कीटनाशकों व खादों के प्रयोग व मशीनीकरण के बाद गेहूं धान का उत्पादन बढ़ा । इससे किसानों की माली हालत भी सुधरी यहां के किसानों का लाइफ स्टाइल भी बदला । लेकिन इस उजले पक्ष के अलावा एक धुंधला पक्ष भी है । अब जमीन की जोत कम हो रही है फरीदाबाद और गुड़गांव में तो खेती के लिये जमीन न के बराबर बची है । किसान अपनी जमीन खोता जा रहा है। और यहां के नौजवान प्राइवेट सेक्टर में छोटी मोटी नौकरी करने को मजबूर हो गए हैं । इसके अलावा फसल का उचित मूल्य ना मिलने के कारण नई पीढ़ी खेती से तौबा करने लगी है।

जमीन की जोत हो रही कम

हरियाणा कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा में कुल 16 लाख 17 हजार किसान परिवार है इसमें मध्यम वर्गीय किसानों की संख्या 7 लाख 78 हजार है , जिनके पास एक से 2 एकड़ जमीन है ।। इसी तरह 1 से 2 हेक्टेयर भूमि वाले 3 लाख 15 हजार, और दो हेक्टेयर से अधिक भूमि वाले 5 लाख 24 हजार किसान है । जाहिर है कि हरियाणा में अब जोत भी निरंतर कम होती जा रही है।

अन का कटोरा भर रहा है

लेकिन रोचक पहलू यह है कि हरियाणा देश का प्रमुख गेहूं धान कपास व सरसों का उत्पादित राज्य है साल 2018 और 19 में करीब एक करोड़ 17 लाख 80 हजार टन गेहूं का उत्पादन हुआ जबकि 6 लाख 12 हजार हेक्टेयर जमीन पर 11 लाख 23 हजार टन सरसों का उत्पादन हुआ। इसी तरह से खरीफ सीजन में 6 लाख 48 हजार हेक्टेयर जमीन पर 26 लाख 38 हजार गांठ नरमे का उत्पादन हुआ और 12 लाख हेक्टेयर जमीन पर में 42 लाख 4 हजार टन धान का उत्पादन हुआ ।

नहीं मिल रहा फसलों का उचित भाव

चिंताजनक स्थिति यह है कि पिछले दो दशक में डीजल के दाम 6 गुना तक बढ़ गए हैं पेट्रोलियम मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 1998 में डीजल के दाम 10 रुपये 25 पैसे प्रति लीटर थे इस समय दाम 64 रुपये से अधिक हो गए हैं इसी अवधि में खाद के दाम 5 गुना कीटनाशकों के दाम 6 गुना तक बढ़ गए हैं ट्रैक्टर हल कल्टीवेटर सहित तमाम उपकरणों के दाम वृद्धि हुई है केंद्रीय कृषि मंत्रालय रिपोर्ट के अनुसार साल 1998 में कॉमन धान का रेट 440 जबकि ग्रेड ए धान का दाम 470 रुपये प्रति क्विंटल था साल 2017 -18 सीजन में कॉमन धान 1770 जबकि ग्रेड ए धान 1750 रुपए प्रति क्विंटल बिका, इसी तरह से साल 1998 में गेहूं का समर्थन मूल्य 550 रुपये था जो साल 2017 - 18 में 1735 रुपए रहा , साल 1998 मैं कॉटन का दाम 1440 रुपए क्विंटल था। जो साल 2017 - 18 में 4020 रुपए रहा। जाहिर है फसलों की लागत कई गुना बढ़ गई । लेकिन धाम नहीं । ऐसे में किसान कर्ज में डूबता चला गया।

बीमार हो रही जमीन

सबसे ज्यादा चिंताजनक पहलू यह है कि उपजाऊ जमीन की सेहत बिगड़ रही है , भूमि बीमार है और उसे उपचार देने की आवश्यकता है। राज्य की करीब 33 फ़ीसदी भूमि में जिंक जैसा पोषक तत्व न के बराबर रह गया है । 12 लाख 47 हजार हेक्टेयर भूमि में जिंक, 10 लाख हेक्टेयर में आयरन और सवा 5 लाख हेक्टेयर भूमि में मेगनीज तत्व की कमी है । पोषक तत्व की निरंतर कमी होने से भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो गई है। सिरसा , फतेहाबाद, हिसार व जींद जिलों में जरूरत से ज्यादा खादों का प्रयोग किया जाता है। राज्य में 2001-02 में प्रति हेक्टेयर औसतन 151 किलोग्राम रासायनिक उर्वरकों की खपत हुई , 2006-07 में यह आंकड़ा 177 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गया , जबकि साल 2017 -18 में 180 किलोग्राम प्रति एकड़ तक पहुंच गया ।

नसों में जहर घोल रही दवा

हरियाणा में खादो एवं कीटनाशकों के बहुत ज्यादा इस्तेमाल से भूमि बीमार हो रही है वहीं इंसानी नसों में भी धीमा जहर घुल रहा है। हरियाणा में हर साल करीब 4100 मेट्रिक टन कीटनाशकों का छिड़काव अनाज, कॉटन सब्जियों, दालों व पशुओं के चारे पर हो रहा है। तय मानकों से भी करीब 35 फ़ीसदी अधिक है। कीटनाशकों व खादों का के इस्तेमाल से गेहूं, चावल , सब्जियों व दालो में कीटनाशकों अवशेष अवज़र्व हो रहे हैं । जो इंसानों को कई बीमारियों में जकड़ रहे हैं । खासकर इससे कैंसर जैसे रोग भी पनप रहा है । कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार ही हर साल हरियाणा में 2.77 लाख मैट्रिक टन उर्वरकों की खपत हो रही है साल 1966 में हरियाणा में कीटनाशकों की सालाना खपत 1550 मैट्रिक टन थी अब यह बढ़कर 6000 मेट्रिक टन को पार कर गई । जरूरत से अधिक कीटनाशक व खाद के इस्तेमाल से यहां की उपजाऊ धरती बीमार हो गई । पिछले साल हरियाणा के विधानसभा में उठे मसले में सामने आया की हरियाणा में हर 5 साल में कैंसर से मरने वालों की संख्या दोगुनी हो गई है । साल 2013 में कैंसर के कुल 11 हजार 117 मामले सामने आए थे । जिसमें 1845 की मौत हो गई थी। जबकि साल 2016 में कैंसर के करीब 16180 के सामने आए, जिसमें से 3668 की मौतें हुई ।

धान बना संकट

वही खेती के लिहाज से यह भी चिंताजनक स्थिति है कि धान हरियाणा में संकट बन गया है धान के बढ़ते रखने के चलते भूजल स्तर नीचे गिर रहा है हरियाणा में साल 1966 - 67 की तुलना में धान का रकबा 2018-19 में 13 लाख हेक्टेयर के पार पहुंच गया है । पिछले सीजन में धान की 1386000 हेक्टेयर में बिजाई की गई साल 1974 में राज्य में 9.19 मीटर पर भूजल स्तर था जो अब करीब 9 मीटर की गिरावट से 18 मीटर तक पहुंच गया है 1967 में हरियाणा में 7767 डीजल जबकि 20 हजार190 नलकूप थे वही 2017 तक डीजल नलकूपों की संख्या 3 लाख 1986 जबकि बिजली से चलने वाले नलकूपों की संख्या 5 लाख 75 हजार 165 हो गई हरियाणा में भूजल के लिहाज से 31 ब्लॉक डार्क जोन में आ गए हैं।




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