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हरियाणा के युवा मछली पालक इन नई तकनीकों से कमा रहे लाखों, यहां लीजिए पूरी जानकारी

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Published : Jul 1, 2021, 10:28 PM IST

हरियाणा के किसानों का रुझान मत्स्य पालन की ओर ज्यादा बढ़ रहा है. आज प्रदेश में ऐसे हजारों युवा हैं जो लाखों रुपये की नौकरी छोड़ मत्स्य पालन के जरिए अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे हैं. जानें कैसे-

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हरियाणा के युवा मछली पालक इन नई तकनीकों से कमा रहे लाखों

हिसार: देश में बढ़ती मछली की खपत को देखते हुए अब हरियाणा के युवा भी मत्स्य पालन की ओर बढ़ रहे हैं. हरियाणा के युवा नई तकनीकों के जरिए मत्स्य पालन से सालाना लाखों रुपये कमा रहें है. कम पानी और खर्च में ज्यादा से ज्यादा मछली उत्पादन करने के लिए इन दिनों सबसे ज्यादा रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम (recirculating aquaculture system) और बायो फ्लॉक तकनीक (biofloc system technology) अपनाई जा रही है.

रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम (recirculating aquaculture system) एक लेटेस्ट तकनीक है, जिसमें सीमेंट के टैंक बनाकर मछली पालन किया जाता है. वहीं बायो फ्लॉक तकनीक में किसान बिना तालाब की खुदाई किए एक प्लास्टिक टैंक में मछली पालन कर सकते हैं.

हरियाणा के युवा मछली पालक इन नई तकनीकों से कमा रहे लाखों

रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम क्या है?

चलिए सबसे पहले जानते हैं कि रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम (what is recirculating aquaculture system) होता क्या है. दरअसल, मछली पालन शुरू करने के लिए अब बड़े तालाब और ज्यादा पानी की जरूरत नहीं है. रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस) तकनीक की मदद से सीमेंट के टैंक बनाकर मछली पालन किया जा रहा है. इस तकनीक के लिए केंद्र सरकार मदद भी करती है. आरएएस वो तकनीक है, जिसमें पानी का बहाव निरंतर बनाए रखने लिए पानी के आने-जाने की व्यवस्था की जाती है. इसमें कम पानी और कम जगह की जरूरत होती है.

सामान्य तौर पर एक एकड़ तालाब में 20 हजार मछली डाली हैं तो एक मछली को 300 लीटर पानी में रखा जाता है, जबकि इस सिस्टम टैंक के जरिए 1 हजार लीटर पानी में 110-120 मछली डालते हैं. इस हिसाब से एक मछली को सिर्फ नौ लीटर पानी में रखा जाता है.

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रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम से मछली पालन

इस तकनीक के फायदे

आरएएस तकनीक का ये फायदा है कि इस तकनीक से 90 फीसदी पानी को दोबारा से किया जा सकता है. वहीं इस तकनीक के जरिए 1 एकड़ में उतना मुनाफा कमाया जा सकता है. जितना 10 एकड़ की पारंपरिक में किसान कमाता है.

वहीं पुरानी तकनीक, जिनसे तालाब में मछली पालन किया जाता था अब इस तकनीक के जरिए उससे 10 गुना उत्पादन लिया जा सकता है. आने वाले समय में मछली की खपत लगातार बढ़ रही है, जिससे कृषि क्षेत्र में भविष्य में मछली पालन का एक अहम योगदान होगा.

पालन योग्य मछली की प्रजातियां

पंगेसियस, तिलापिया, देशी मांगुर, सिंघी, कवई, पाब्दा और कॉमन कार्प

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बायो फ्लॉक तकनीक के जरिये ऐसे हो रहा मत्स्य पालन

500 गज जमीन में 4 मीटर व्यास के 10 टैंक बनाए जाते हैं. कंप्रेशर मशीन से इन टैंक में ऑक्सीजन घोली जाती है. टैंक में 4000 से 5000 मछली प्रति टैंक छोड़ी जाती है. क्षमता से ज्यादा पानी को निकालने के लिए टैंक से एक पाइप जोड़ा जाता है. 10 टैंक के सेट सहित पूरे प्लांट को तैयार करने में करीब 8 लाख रुपये का खर्च आता है, जिसमें 6 महीने तक का फीड भी शामिल है.

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बायो फ्लॉक तकनीक से मछली पालन

तालाब में मछली पालन से कैसे है अलग?

एक हेक्टेयर के तालाब में एक बार में उंगली के आकार की 10 से 15 हजार मछलियां छोड़ी जाती हैं. इन बच्चों को 600 ग्राम का होने में दस से 11 महीने का समय लगता है, जबकि एक टैंक में एक बार में मछली के 4000 बच्चे यानि 10 टैंक में 40000 बच्चे छोड़े जा सकते हैं. 6 महीने में ही ये बच्चे 600 ग्राम के हो जाते हैं (मछली की नस्ल पर निर्भर करता). 10 टैंक में 1 साल में 80000 हजार से ज्यादा मछली विकसित होती हैं.

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बायो फ्लॉक तकनीक को क्यों चुनें?

बायो फ्लॉक विधि में मछली पालन में भी जैविक विधि अपनाई जाती है. तालाब के पानी में मछली मल करती हैं. इस मल के जरिए संख्या में एकत्रित होने से पानी में अमोनिया बढ़ जाता है. अमोनिया मछलियों के लिए जहर का काम करता है. इससे मछली मर जाती हैं. वहीं बायो फ्लॉक विधि में टैंक में बैक्टीरिया पैदा की जाती हैं. ये बैक्टीरिया मछली के 20 प्रतिशत मल को प्रोटीन में बदल देता है. मछली इस प्रोटीन को खा लेती हैं. बचा मल टैंक में नीचे जमा हो जाता है. इसे वाल्व के जरिए निकाल दिया जाता है. मछलियों को कोई नुकसान नहीं होता है.

मत्स्य पालन विभाग के निदेशक प्रेम सिंह मलिक ने कहा कि हरियाणा सरकार प्रदेश में नीली क्रांति को बढ़ावा देने के लिए कारगर कदम उठा रही है. विभाग की ओर से प्रदेश में 5 हजार 579 किसानों को मत्स्य पालन का प्रशिक्षण देने के अतिरिक्त 11 हजार 805 किसानों को लाभान्वित किया गया है, जिसमें 1500 अनुसूचित जाति के परिवार शामिल हैं.

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कितनी मिलती है सरकारी सहायता?

विभाग की ओर से पंचायती तालाब पर 50 प्रतिशत अनुदान, खाद और खुराक पर 60 प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत सामान्य वर्ग के लिए आरएएस, बायोफ्लॉक, निजी/पट्टा भूमि पर नए तालाब की खुदाई पर 40 प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है. मत्स्य पालन का व्यवसाय करने वाले किसानों को पहले मत्स्य बीज बाहरी प्रदेशों से लाना पड़ता था, लेकिन इस समय प्रदेश में 15 मत्स्य बीज फार्म कार्यरत हैं. आधुनिक तकनीक की वजह से पहले 10 एकड़ में होने वाला मत्स्य उत्पादन अब एक एकड़ में हो रहा है.

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