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फरवरी में ही गर्मी का अहसास, मैदानी इलाकों में बढ़ रही तपन, जानें कैसे हो रहा वातावरण में बदलाव

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Published : Feb 22, 2023, 6:38 PM IST

इस साल फरवरी में ही आसमानी आग बरसने लगी है जिससे हमारे जीवन और स्वास्थ्य पर भी असर पड़ने लगा है. साथ ही बदलते मौसम से पर्यावरण पर असर पड़ रहा है. इस बार जहां पहाड़ों पर बर्फबारी भी कम देखी गई और बारिश भी बहुत ही कम हुई है. ऐसे में इस बार मौसम में बदलाव देखने को मिला है. इस विषय पर चंडीगढ़ पर्यावरण स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने ईटीवी भारत से बातचीत कर जानकारी दी है.

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फरवरी में ही गर्मी का अहसास, मैदानी इलाकों में बढ़ रही तपन, जानें कैसे हो रहा वातावरण में बदलाव

चंडीगढ़: फरवरी महीने में ही गर्मी को सितम देखा जा रहा है. जिससे लोग अभी से परेशान होना शुरू हो चुके हैं. दिन के समय कड़कती धूप से फरवरी में ही लोगों के पसीने छूटने शुरू हो गये हैं. जबकि शाम के समय हो रही हल्की ठंड और धुंध लोगों को हैरान कर रही है. आखिरकार फरवरी महीने में ही मौसम के इस सितम के पीछे वजह क्या है. वो भी मौसम विशेषज्ञ से जानेंगे.

क्या कहते हैं पर्यावरण विशेषज्ञ: सबसे पहले जानते हैं कि अल नीनो और ला नीना ये दोनों होते क्या हैं? इसका हम पर और मौसम पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है? इसे समझना जरूरी है. ऐसे में PGIMER चंडीगढ़ में पर्यावरण स्वास्थ्य प्रोफेसर डॉ रवींद्र खेवाल ने इसकी जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि अल नीनो और ला नीना का संदर्भ प्रशांत महासागर की समुद्री सतह के तापमान में समय-समय पर होने वाले बदलावों से है.

क्यों ठंडा और गर्म हो जाता है मौसम: अल नीनो की वजह से तापमाम काफी ज्यादा बढ़ जाता है जबकि ला नीना में मौसम ठंडा हो जाता है. वायुमंडलीय परिस्थितियों में जो बदलाव आता है और समुद्र के तापमान में भी बदलाव देखा जाता है वो अल नीनो की वजह से होता है वाकइ ये मौसम पर काफी गहरा असर डालता है. इतना ही नहीं इसकी वजह से सर्दी, बरसता, गर्मी सभी तरह के मौसम में बदलाव नजर आता है लेकिन राहत की बात इसमें ये है कि ये बदलाव हर साल में नहीं होते बल्कि 3 से 7 साल के अंतर में होते हैं.

मौसम में बदलाव की वजह: अगर बात करें ला नीना की तो प्रशांत महासागर इलाके की सतह पर निम्न हवा का दबाव होने पर ये स्थिति पैदा होती है. जब ट्रेड विंड, पूर्व से बहने वाली हवा काफी तेजी से बहती हैं. जिससे समुद्री सतह के तापमान में कमी भी देखी जा सकती है और इसका सीधा असर पड़ता है दुनियाभर के तापमान पर. तापमान औसत से ज्यादा ठंडा होता है. ला नीना का चक्रवात पर असर पड़ता है और इससे दक्षिण पूर्व एशिया में नमी वाली स्थिति पैदा हो जाती है.

इसलिए बढ़ जाती है सर्दी: इस वजह से आसापास वाले इलाकों में बरसात भी हो सकती है. ला नीना से उत्तर पश्चिम का मौसम सर्द हो जाता है जबकि दक्षिण पूर्व में गर्मी शुरू हो जाती है. डॉ रवींद्र खेवाल ने बताया कि मौजूदा समय में मौसम के हालात न ही बारिश वाले हैं, ना ही गर्मी वाले हैं. इस साल देखा जा सकता है कि एकदम से गर्मी के साथ-साथ ठंड का भी एहसास रहेगा. वहीं मौजूदा समय में अभी एक बार और ठंड बढ़ सकती है.

फरवरी में ही शुरू हो गई गर्मी: वहीं पर्यावरण को देखते हुए अंदाजा लगाया जा रहा था, कि आने वाले 2 या 3 दिनों में बारिश हो सकती है. लेकिन तेज हवाओं के चलते बारिश के बादल तितर-बितर होते हुए दिखाई दे रहे हैं. इसका असर सतह के साथ पहाड़ी इलाकों में भी देखा जा रहा है. जिसके चलते ऊंचाई पर बसे इलाकों में फरवरी महीने में ही गर्मी देखी जा रही है. वहीं पर्यावरण द्वारा जो रिपोर्ट दिखाई जा रही है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अब मौसम बदलना शुरू हो गया है.

जानिए कब बदल जाता है मौसम: लेकिन स्थिति को पूरी तरह समझने के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा. हालांकि यूके मेट की तरफ से जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया है, की एल नीनो और ला नीना का असर आने वाले दिनों में देखा जा सकता है. एल नीनो और ला नीना दोनों ही स्पेनिश शब्द है, लेकिन इनका मतलब मादा और पुरुष के तौर पर लिया जाता है. इन्हें पेसिफिक ओशन के नीचे चलने वाले तंत्र कहा जाता है. ऐसे अल नीनो 3 से 7 सालों के बीच में रहता है. वही उसके बाद ला नीना और शुरू हो जाता है. जिसका असर 1 से 2 साल के बीच में रहता है.

पर्यावरण में बदलाव: डॉ खेवाल ने बताया कि फरवरी महीने में ही हम एक बड़ा बदलाव देख रहे हैं. जो कि ला नीनो से अल नीनो के बीच जो औषधिक करंट से संबंधित है. जिसके कारण सतह का तापमान बढ़ जाता है. हमने देखा है कि सी ओ 2 अमिशन, मीथेन अमिशन बढ़ चुके हैं. उनका प्रभाव हमें दिखा रहा है. जो एक प्रकृति की सामान्य चाल होती थी. उसमें बदलाव पूरे सालों में जो पर्यावरण घटनाएं हुई है, उनकी वजह से हुए.

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बीते सालों के टूटे रिकॉर्ड: उन्होंने बताया कि आने वाले दिनों में उससे भी अधिक घटनाएं दर्ज की जा सकती हैैं. ऐसे में एक उदाहरण के तौर पर 28 फरवरी 1953 में राजस्थान के चूरू में तापमान 38.9 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया था. वहीं अगर हम इस साल की बात करें तो 16 फरवरी को 40 डिग्री के आसपास तापमान देखा गया है. वहीं दिल्ली में भी एक हफ्ते पहले 17 साल पुराना रिकॉर्ड टूटा है. ऐसे में जो बीते समय में खतरनाक साल रहे हैं, उनका अब रिकॉर्ड टूटता जा रहा है और यह सब हो रहा है. हमारे क्लाइमेट चेंज की वजह से जिस ओर हमें अभी से ध्यान देने की जरूरत है.

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