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1985 में बना था भिवानी साई सेंटर, बॉक्सिंग को हटाया तो पदकों का पड़ेगा सूखा, जानें भिवानी के मिनी क्यूबा बनने की कहानी

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Published : Apr 8, 2023, 9:05 PM IST

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देश में हरियाणा के भिवानी जिले को मिनी क्यूबा के नाम से जाना जाता है. मुक्केबाजी का हब कहे जाने वाले भिवानी में 24 मुक्केबाजी अकादमी हैं. जिनमें करीब 1200 मुक्केबाज रोजाना प्रैक्टिस करते हैं. इसके बावजूद भी स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने भिवानी साई सेंटर से बॉक्सिंग को खत्म करने का फैसला किया, लेकिन बाद में साई ने ये फैसला वापस ले लिया.

भिवानी: स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने शुक्रवार को ऐसा फैसला किया कि हरियाणा के खिलाड़ियों ने सड़कों पर उतरने का फैसला किया. हालांकि बढ़ते बवाल को देखते हुए स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने अपने फैसले को वापस ले लिया. दरअसल स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने भिवानी साई सेंटर से बॉक्सिंग के खेल खत्म करने का फैसला किया था. जिसका खिलाड़ियों ने जमकर विरोध किया.

यहां तक की बॉक्सर विजेंदर सिंह और वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर लौटी नीतू घणघस ने भी स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के इस फैसले पर नाराजगी जाहिर की. जिसके बाद स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने भिवानी साई सेंटर में बॉक्सिंग को जारी करने की बात कही. जिसके बाद खिलाड़ियों ने राहत की सांस ली.

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स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया का ट्वीट

क्यों कहा जाता है भिवानी को मिनी क्यूबा? बता दें कि हरियाणा का भिवानी जिला खिलाड़ियों की खान कहा जाता है. ज्यादातर बॉक्सर भिवानी जिले से ही निकले हैं. इसलिए भिवानी को मिनी क्यूबा भी कहा जाता है. दरअसल क्यूबा एक द्वीपीय देश है. यहां बॉक्सिंग का क्रेज इतना है कि आपको हर घर में चैंपियन बॉक्सर मिल जाएगा. ठीक वैसे ही हरियाणा का भिवानी जिला है. यहां भी आपको हर घर से बॉक्सर मिल जाएगा. इसलिए भिवानी को मिनी क्यूबा कहते हैं.

अगर भिवानी साई सेंटर से बॉक्सिंग खत्म हो जाती तो? भिवानी वो जिला है जहां एक समय में 1200 से ज्यादा मुक्केबाज प्रैक्टिस करते हैं. अगर यहां बॉक्सिंग खत्म हो जाती तो हजारों खिलाड़ियों का भविष्य अंधकार में चला जाता. क्योंकि भिवानी में सिर्फ जिले के ही नहीं बल्कि दूसरे जिलों और राज्यों के खिलाड़ी भी प्रशिक्षण लेते हैं. भिवानी बॉक्सिंग क्लब के प्रधान कमल सिंह ने बताया कि मई 1985 में तत्कालीन राज्यसभा सांसद सुरेंद्र सिंह ने भिवानी के स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के इस केंद्र की शुरुआत की थी.

यहां पर 200 सीटें होती थी. जिनमें 50 बॉलीबॉल, 50 मुक्केबाजी, 50 एथलीट व 50 कुश्ती की सीटें होती थी. पांच साल पहले वॉलीबॉल की 50 सीटों को यहां से समाप्त कर दिया गया. अगर मुक्केबाजी की सीटों को इस सेंटर से खत्म किया जाता तो देश की मुक्केबाजी पर व्यापक प्रभाव पड़ता, क्योंकि देश की मुक्केबाजी का गढ़ भिवानी ही कहलाता है.

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भिवानी में करीब 1200 मुक्केबाज रोजाना प्रैक्टिस करते हैं.

भिवानी और बॉक्सिंग का नाता: साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक में भिवानी के बॉक्सर विजेंदर सिंह ने पहला मेडल जीतकर इतिहास रचा था. उसके बाद से भिवानी में मुक्केबाजी का क्रेज बढ़ा. भिवानी के विजेंदर सिंह को देश को राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार और पद्म श्री पुरस्कार मिल चुका है. इसके अलावा भिवानी जिले के खिलाड़ी अब तक 23 अर्जुन अवॉर्ड, हरियाणा सरकार द्वारा दिए जाने वाले 28 भीम अवॉर्ड प्राप्त कर चुके हैं. खेल प्रशिक्षण के क्षेत्र में 4 द्रोणाचार्य अवॉर्ड भी भिवानी जिले के नाम दर्ज हैं. भिवानी जिले में अब तक लगभग 3 हजार के लगभग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी विभिन्न खेलों में अपनी पहचान बना चुके हैं. यही कारण है कि भिवानी को खेल नगरी की उपाधि मिली हुई है.

ऐसे हुई बॉक्सिंग की शुरुआत: भिवानी के द्रोणाचार्य अवॉर्डी कोच जगदीश सिंह ने बताया कि शहर में 12 मुक्केबाजी अकादमी हैं. इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र में लगभग 12 अकादमी हैं. कुल मिलाकर भिवानी में 24 मुक्केबाजी अकादमी हैं. उन्होंने बताया कि भिवानी में मुक्केबाजी की शुरुआत कैप्टन हवा सिंह और आरएस यादव ने की थी. भिवानी जिले से सबसे पहले मुक्केबाज संदीप गोलन ने 1992 में हुए बर्सिलोना ओलंपिक में भागीदारी की थी. उसके बाद मुक्केबाज राजकुमार सांगवान ने एशियन चैंपियनशिप में देश को गोल्ड मेडल दिलाया था. इसके बाद जितेंद्र सीनियर ने दो बार ओलंपिक में हिस्सा लिया.

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भिवानी में 24 मुक्केबाजी अकादमी हैं.

उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स में देश के लिए मेडल जीता. इसके बाद साल 2008 में विजेंदर बॉक्सर का दौर शुरू हुआ. जिसने ओलंपिक में मुक्केबाजी में देश को पहला ब्रॉन्ज मेडल दिलवाया. उसके समकालीन मुक्के बाद दिनेश, अखिल, विकास कृष्णनन, पूजा बूरा, जितेंद्र जूनियर ने देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीते हैं. इनके बाद दिलबाग, सुनील, नीतू घणघस, कविता चहल, साक्षी, सचिन, जैस्मिन, सोनिका जैसे खिलाड़ी अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर रहे हैं.

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मुक्केबाजी कोच जगदीश सिंह ने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने हरियाणा में खेल नीति की शुरुआत की थी, जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इस खेल नीति को आगे बढ़ाया तथा खिलाड़ियों को पदक जीतने पर डीएसपी स्तर तक की नौकरी व बेहतरीन नकद पुरस्कार की शुरुआत की. जिससे खिलाड़ियों में खेल के प्रति काफी क्रेज पैदा हुआ. वर्तमान हरियाणा सरकार ने भी कैश अवॉर्ड के नाम पर खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया है.

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