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भिवानी के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर्स की कमी, निजी अस्पताल संचालक कूट रहे चांदी

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Published : Dec 4, 2019, 6:22 PM IST

इन दिनों भिवानी में सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर्स की भारी कमी है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अकेले सिविल अस्पताल में 66 स्वीकृत पदों पर मात्र 16 डाक्टर ही कार्यरत हैं.

shortage of doctors in bhiwani
shortage of doctors in bhiwani

भिवानी: डॉक्टर्स की कमी के चलते जहां जिले के लोगों को निजी अस्पतालों का सहारा लेना पड़ता है तो वहीं निजी अस्पतालों के संचालकों मोटा पैसा कमा रहे हैं. इससे खासकर गरीब लोगों को बहुत आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है.

बता दें कि प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में ओपीडी की फीस मात्र 5 रुपए है. उसके बाद मरीज को चैक अप के बाद सरकारी अस्पतालों में दवाइयां भी मुफ्त में दी जाती हैं. हालांकि एकाध दवाई ऐसी होती है जो सरकारी अस्पतालों में नहीं मिल पाती, जिन्हें मरीजों को बाहर से खरीदना पड़ता है. इसके अलावा सरकारी अस्पतालों में मरीजों के सभी तरह के चैक अप और यहां तक की अल्ट्रासाउंड भी मुफ्त में किए जाते हैं.

भिवानी के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर्स की कमी का निजी अस्पताल उठा रहे हैं फायदा.

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इन सबके सुविधाओं के बावजूद जिले के सरकारी अस्पतालों में जब डॉक्टर ही नहीं तो मरीजों को मजबूरन निजी अस्पतालों में जाना पड़ रहा है. जिले में डाक्टरों की कमी से सिविल अस्पताल के साथ साथ ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं भी पूरी तरह से लड़खड़ा रही हैं.

सिविल अस्पताल में इतने पद खाली

इसमें पहले शहर के सिविल अस्पताल का जिक्र किया जाए तो यहां मेडिकल ऑफिसर के 66 पद स्वीकृत हैं लेकिन 16 पद ही भरे हुए हैं बाकि 50 पद रिक्त पड़े हैं. इसी तरह से सीएचसी व पीएचसी केंद्रों में भी चिकित्सकों के एक तिहाई से ज्यादा पद रिक्त पड़े हुए हैं. इसके अलावा जिले में जरूरत के अनुसार चिकित्सा विशेषज्ञों के पदों पर भी चिकित्सक नियुक्त नहीं होने के कारण मरीजों को निजी नर्सिंग होम में उपचार लेने को मजबूर होना पड़ रहा है.ॉ

जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में 127 मेडिकल ऑफिसर के पद स्वीकृत हैं, उनमें से 52 पदों पर ही डॉक्टर कार्यरत हैं जबकि बाकि पद खाली पड़े हैं. इसी प्रकार जिले में डेंटल चिकित्सकों के 37 स्वीकृत पदों में से 21 भरे हुए हैं और 16 पद रिक्त हैं. इसके अलावा जिले में डिप्टी सीएमओ व एसएमओ समेत 28 स्वीकृत हैं, लेकिन 11 पद ही भरे हैं जबकि 17 पद खाली हैं. इसी प्रकार जिले में 8 आयुर्वेदिक मेडिकल अधिकारियों के पद स्वीकृत हैं जिनमें 4 पदों पर ही डाक्टर कार्यरत हैं.

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मनोचिकित्सक के 2 पदों में से दोनों पद रिक्त हैं. फिजियोथैरपिस्ट के 3 पदों में से तीनों रिक्त हैं. नर्सिंग सिस्टर 14 में से नौ पद रिक्त हैं. स्टाफ नर्स के 143 में से 71 पद रिक्त हैं. फार्मासिस्ट के 16 में से 8 पद रिक्त हैं. इसके अलावा सिविल अस्पताल में स्किन स्पेशलिस्ट, रेडियोलॉजिस्ट, ऑडियोलॉजिस्ट के पद भी खाली पड़े हैं.

परेशान होते हैं मरीज

जिला मुख्यालय स्थित सिविल अस्पताल में रोजाना औसतन 1500 मरीज उपचार के लिए पहुंचते हैं. इसके लिए सुबह से ही मरीजों का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जाता है कि जब इस अस्पताल में डॉक्टर अपने केबिन में आकर बैठते हैं तो उनके कमरों के सामने भारी भीड़ जमा हो जाती है.

यहां तक की कई बार मरीजों में धक्का मुक्की तक भी हो जाती है. इसके अलावा कई बार मरीजों की संख्या अधिक होने के चलते उनका कई मरीजों का तय समय तक नंबर ही नहीं आता इसलिए इस तरह के मरीज या तो उपचार के लिए निजी अस्पतालों में जाते हैं या फिर वे दूसरे दिन का इंतजार करते हैं. कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि सिविल अस्पताल ही नहीं बल्कि पूरे जिले में ही सरकारी डाक्टरों का टोटा होने से जिले के मरीजों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

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Intro:रिपोर्ट इन्द्रवेश भिवानी
दिनांक 4 दिसंबर।
भिवानी में सरकारी डाक्टरों का टोटा
निजी अस्पताल संचालक कूट रहे चांदी
इन दिनों जिले में सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों का भारी टोटा बना हुआ है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अकेले सिविल अस्पताल में 66 स्वीकृत पदों पर मात्र 16 डाक्टर ही कार्यरत हैं। इसके चलते जहां जिले के लोगों को निजी अस्पतालों का सहारा लेना पड़ता है तो निजी अस्पतालों के संचालकों मोटा पैसा कमा रहे हैं। इससे खासकर गरीब लोगों को बहुत आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ रहा है।
बता दें कि प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में ओपीडी की फीस मात्र 5 रुपए है। उसके बाद मरीज को चैक अप के बाद सरकारी अस्पतालों में दवाइयां भी मुफ्त में दी जाती हैं। हालांकि एकाध दवाई ऐसी होती है जो सरकारी अस्पतालों में नहीं मिल पाती, जिन्हें मरीजों को बाहर से खरीदना पड़ता है। इसके अलावा सरकारी अस्पतालों में मरीजों के सभी तरह के चैक अप और यहां तक की अल्ट्रासाउंड भी मुफ्त में किए जाते हैं।
हालांकि सरकार की ओर से सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों को कई तरह की सुविधाएं मुफ्त दी हुई हैं। मगर जिले के सरकारी अस्पतालों में जब डाक्टर ही नहीं तो मरीजों को मजबूरन निजी अस्पतालों जाना पड़ रहा है। जिले में डाक्टरों की कमी से सिविल अस्पताल के साथ साथ ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं भी पूरी तरह से लडख़ड़ा रही हैं। इसमें पहले शहर के सिविल अस्पताल का जिक्र किया जाए तो यहां मेडिकल ऑफिसर के 66 पद स्वीकृत हैं लेकिन 16 पद ही भरे हुए हैं। बाकि 50 पद रिक्त पड़े हैं। इसी तरह से सीएचसी व पीएचसी केंद्रों में भी चिकित्सकों के एक तिहाई से ज्यादा पद रिक्त पड़े हुए हैं। ऐसे में जिले भर में स्वास्थ्य सेवाएं शहर में स्थित निजी नर्सिंग अस्पतालों के सहारे चल रही है। इसके अलावा जिले में जरूरत के अनुसार चिकित्सा विशेषज्ञों के पदों पर भी चिकित्सक नियुक्त नहीं होने के कारण मरीजों को निजी नर्सिंग होम में उपचार लेने को मजबूर होना पड़ रहा है।
जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में 127 मेडिकल ऑफिसर के पद स्वीकृत हैं, उनमें से 52 पदों पर ही डाक्टर कार्यरत हैं जबकि बाकि पद खाली पड़े हैं। इसी प्रकार जिले में डेंटल चिकित्सकों के 37 स्वीकृत पदों में से 21 भरे हुए हैं और 16 पद रिक्त हैं। इसके अलावा जिले में डिप्टी सीएमओ व एसएमओ समेत 28 स्वीकृत हैं, लेकिन 11 पद ही भरे हुए जबकि 17 पद खाली हैं। इसी प्रकार जिले में 8 आयुर्वेदिक मेडिकल अधिकारियों के पद स्वीकृत हैं जिनमें 4 पदों पर ही डाक्टर कार्यरत हैं।
Body: मनोचिकित्सक के 2 पदों में से दोनों पद रिक्त हैं। फिजियोथैरपिस्ट के 3 पदों में से तीनों रिक्त हैं। नर्सिंग सिस्टर 14 में से नौ पद रिक्त हैं।
स्टाफ नर्स के 143 में से 71 पद रिक्त हैं। फार्मासिस्ट के 16 में से 8 पद रिक्त हैं। इसके अलावा सिविल अस्पताल में स्किन स्पेशलिस्ट, रेडियोलॉजिस्ट, ऑडियोलॉजिस्ट के पद भी खाली पड़े हैं।
जिला मुख्यालय स्थित सिविल अस्पताल में रोजाना औसतन 1500 मरीज उपचार के लिए पहुंचते हैं। इसके लिए सुबह से ही मरीजों का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जाता है कि जब इस अस्पताल में डाक्टर अपने केबिन में आकर बैठते हैं तो उनके कमरों के सामने भारी भीड़ जमा हो जाती है। यहां तक की कई बार मरीजों में धक्का मुुक्की तक भी हो जाती है। इसके अलावा कई बार मरीजों की संख्या अधिक होने के चलते उनका कई मरीजों का तय समय तक नंबर ही नहीं आता। इसलिए इस तरह के मरीज या तो उपचार के लिए निजी अस्पतालों में जाते हैं या फिर वे दूसरे दिन का इंतजार करते हैं।
Conclusion: दूसरी ओर यहां भले ही डाक्टरों की कमी हो, लेकिन यहां के वार्डों में मरीजों की संख्या भरी रहती है। कई बार तो ऐसा होता है कि एक-एक बैड पर 2-2 मरीजों को उपचार के लिए लिटाया जाता है। इसलिए कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सिविल अस्पताल ही नहीं बल्कि पूरे जिले में ही सरकारी डाक्टरों का टोटा होने से जिले के मरीजों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
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