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35 के बाद महिलाएं कराएं नियमित स्वास्थ्य जांच

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Published : Oct 2, 2021, 2:16 PM IST

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35 की आयु के बाद महिलाओं के लिए कुछ विशेष प्रकार के टेस्ट नियमित अंतराल पर कराया जाना जरूरी है, जिससे भविष्य में किसी भी गंभीर रोग या समस्या के बारे में पहले से जाना जा सके और समय रहते उसका इलाज कराया जा सके.

30 वर्ष की आयु के बाद आमतौर पर चिकित्सक स्वास्थ्य की सही जानकारी के लिए नियमित जांच कराने की बात करते हैं, जिसके चलते महिला हो या पुरुष शुगर, बी.पी तथा कॉलेस्ट्रोल जैसे टेस्ट कराते भी हैं. लेकिन महिलाओं की बात करें तो उनके लिए सिर्फ इस प्रकार की जांचे काफी नहीं है. प्रजनन अंगों की जांच, स्तन स्वास्थ्य, तथा कैंसर सहित कई समस्याओं के बारे में जानकारी के लिए जरूरी है कि महिलाओं द्वारा एक उम्र के बाद नियमित अंतराल पर कुछ विशेष प्रकार की जांच करवाई जाए.

महिला रोग विशेषज्ञ आशा शर्मा बताती हैं की आमतौर पर महिलायें अपने स्वास्थ्य में होने वाले परिवर्तनों या समस्याओं को अनदेखा करती हैं जैसे पेट में दर्द, अचानक माहवारी के दिन कम हो जाना तथा मासिक धर्म के दौरान बहुत ज्यादा दर्द या रक्तस्राव होना व मासिक संबंधी अन्य समस्या, स्तन में गांठ, सांस फूलना या कमजोरी महसूस करना, पेशाब में हल्की जलन आदि. समस्या ज्यादा बढ़ने पर अगर वह जांच कराने आती भी है और चिकित्सक उन्हे जांच कराने के लिए बोलते हैं तो बड़ी संख्या में पढ़ी-लिखी महिलायें भी ज्यादातर टेस्ट से अनजान होती हैं, जो एक सोचनीय बात है.

डॉ. शर्मा बताती हैं कि वैसे भी 35 की आयु के बाद महिलाओं को नियमित स्वास्थ जांच तथा कुछ टेस्ट नियमित अंतराल पर कराते रहने चाहिए . अपने विशेषज्ञ की सलाह के आधार पर ETV भारत सुखीभवा आपके साथ साझा कर रहा है महिलाओं के लिए जरूरी कुछ विशेष टेस्ट से जुड़ी जानकारियां.

महिलाओं के लिए जरूरी टेस्ट

  • मैमोग्राम

मैमोग्राम को महिलाओं के लिए महत्त्वपूर्ण टेस्ट माना जाता है. यह एक प्रकार की एक्स-रे जांच होती है जो स्तन की जांच के लिए की जाती है. इसका इस्तेमाल विशेषतौर पर स्तन कैंसर का पता लगाने के लिए किया जाता है. इसे 40 की आयु के बाद महिलाओं को हर साल कराना चाहिए .

  • क्लीनिकल ब्रैस्ट ऐग्जामिनेशन (CBE)

क्लीनिकल ब्रैस्ट ऐग्जामिनेशन (Clinical Breast Examination), स्तन का फिजिकल ऐग्जामिनेशन है, जिसे मैमोग्राफी का विकल्प माना जाता है. यह टेस्ट चिकित्सक द्वारा किया जाता है. इस टेस्ट से स्तन में होने वाले बदलाव जैसे आकार में बदलाव, स्तन में गठान, निप्पल का आकार बदलना या इससे डिस्चार्ज तथा दर्द, की जांच की जाती है. आमतौर पर इस टेस्ट से कैंसर होने की संभावना का पता लगाया जा सकता है. महिलाओं को साल में एक बार सीबीई टेस्ट करवाना चाहिए .

  • पैप स्मियर टेस्ट

महिलाओं में गर्भाशय ग्रीवा कैंसर (cervical cancer) बेहद आम है और दुनियाभर में कैंसर से होने वाले मौत के आंकड़ों में यह चौथा सबसे ज्यादा घातक कैंसर है. पैप स्मियर टेस्ट गर्भाशय में कैंसर की जांच के लिए किया जाता है . यह टेस्ट बहुत ही आसान, कम समय लेने वाला और आमतौर पर दर्दरहित स्क्रीनिंग टेस्ट होता है. इस टेस्ट में योनि में एक यंत्र “स्पैक्युलम” डाल कर सर्विक्स की कुछ कोशिकाओं के नमूने लिए जाते हैं. इन कोशिकाओं की जांच की जाती है कि कहीं इन में कोई असमानता तो नहीं है. इस टेस्ट को 3 साल में 1 बार अवश्य कराना चाहिए.

  • ओवेरियन सिस्ट टेस्ट

महिलाओं में लगातार पेट के निचले हिस्से में दर्द, अनियमित माहवारी अथवा मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव हो तो ओवेरियन सिस्ट का खतरा हो सकता है. ऐसे में सामान्य पैल्विक परीक्षण के दौरान पेट के अल्ट्रासाउंड के माध्यम से सिस्ट की स्तिथि और उसके आकार का पता लगाया जा सकता है. गौरतलब है छोटे आकार की सिस्ट सामान्य अवस्था में अपने आप ठीक हो जाती हैं, लेकिन यदि ओवेरियन ग्रोथ या सिस्ट का आकार 1 इंच से बड़ा हो, तो ओवेरियन कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है. ऐसे में किसी भी प्रकार के लक्षण नजर आने पर यह टेस्ट करवा लेना चाहिए.

  • बोन डेन्सिटी टैस्ट

एक समय के बाद महिलाओं में कैल्शियम की कमी की समस्या पुरुषों के मुकाबले ज्यादा नजर आने लगती है. ऐसे में हड्डियों के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है. बोन डेन्सिटी टेस्ट 35 की उम्र के बाद महिलाओं के लिए बहुत जरूरी हो जाता है. इस टेस्ट में एक विशेष प्रकार के ऐक्स-रे के माध्यम से रीढ़ की हड्डी, कलाइयों तथा कूल्हों की हड्डियों की डेन्सिटी मापी जाती है, जिससे हड्डियों में कमजोरी का पता चलता है. 35 के बाद यह टेस्ट हर 5 साल बाद जरूर कराना चाहिए.

  • कोलेस्ट्रोल टेस्ट

कोलेस्ट्रॉल की अधिकता दिल के लिए घातक होती है. ऐसे में दिल के स्वास्थ्य की जानकारी के लिए यह टेस्ट जरूरी होता है. कोलेस्ट्रॉल 2 प्रकार के होते हैं-एचडीएल (HDL) या हाई डैंसिटी लिपोप्रोटीन्स और एलडीएल (LDL) या लो डैंसिटी लिपोप्रोटीन्स. इस टेस्ट में रक्त में दोनों के स्तर की जांच होती है. इस टेस्ट को 3 वर्ष में 1 बार अवश्य कराना चाहिए. लेकिन अगर जांच में कोलेस्ट्रॉल का स्तर सामान्य से ज्यादा आता है और यदि महिला के परिवार में दिल की बीमारी का पारिवारिक इतिहास रहा हो तो चिकित्सक हर 6 से 12 महीनों में यह जांच कराने की सलाह देते हैं.

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