नई दिल्ली: शारदीय नवरात्रि 2022 के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है. स्कंदमाता नाम दो शब्दों से मिलकर बनता है. स्कंद और माता. स्कंद भगवान कार्तिकेय का दूसरा नाम है. कार्तिकेय भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं. इसीलिए स्कंदमाता का अर्थ है, कार्तिकेय की माता. माता की चार भुजाएं हैं. वह एक हाथ में कार्तिकेय को पकड़े हुए हैं, दूसरे और तीसरे हाथ में कमल रखती है और चौथे हाथ से भक्तों को आशीर्वाद देती हैं. उनका वाहन शेर है और वह कमल पर बिराजमान है. स्कंदमाता विशुद्ध चक्र की अधिष्ठात्री देवी हैं.
विशुद्ध चक्र हमारे गले के उभरे हुए भाग के ठीक नीचे स्थित होता है. स्कंदमाता की पूजा करने से विशुद्ध चक्र जागृत होता है और उस व्यक्ति को वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है. व्यक्ति का आयुष्य बढ़ता है और वह विद्वान बनता है. इनकी पूजा से सोलह कलाओं और सोलह विभूतिओं का ज्ञान होता है.
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स्कंदमाता की पूजा विधि: स्कंदमाता की पूजा करने के लिए सुबह उठकर पीले रंग के वस्त्र धारण करें. इसके बाद कलश की पूजा करें और फिर स्कंदमाता का ध्यान करते हुए उन्हें पीले रंग के फूल अर्पित करें. साथ ही उन्हें पीली चीजों का भोग लगाएं. मां का ध्यान करते हुए "ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः" मंत्र का जप करें.
स्कंदमाता का मंत्र-
ॐ स्कन्द मात्रै नमः।।
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
महाबले महोत्साहे महाभय विनाशिनी।
त्राहिमाम स्कन्दमाते शत्रुनाम भयवर्धिन।।
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मां स्कंदमाता की कथा: सती जब अग्नि में जलकर भष्म हो गईं, उसके बाद भगवान शंकर सांसारिक मोह माया से दूर हो गए और कठिन तपस्या में लीन हो गए. उसी समय देवता गण तारकासुर के अत्याचार भोग रहे थे. तारकासुर को वरदान था कि केवल भगवान शिव की संतान उसका वध कर सकती है. बिना सती के संतान नहीं हो सकती थी.
इसीलिए सारे देवता भगवान विष्णु के पास गए, तब विष्णुजी ने उनको कहा की यह सबकी वजह आप लोग ही हैं, अगर आप सब राजा दक्ष के वहां बिना शिवजी के नहीं गए होते, तो सती को अपना शरीर नहीं छोड़ना पड़ता. उसके बाद भगवान विष्णु देवताओं को माता पार्वती के बारे में बताते हैं, जो सती माता की अवतार हैं. तब नारदमुनि माता पार्वती के पास जाकर उन्हें तपस्या करके भगवान शिव को प्राप्त करने को कहते हैं.
मां पार्वती की हजारों वर्षों की तपस्या के बाद भगवान शिव उनसे विवाह करते हैं. उन दोनों की ऊर्जा से एक ज्वलंत बीज पैदा होता है. उस बीज से छह मुख वाले कार्तिकेय जन्म लेते हैं और फिर कार्तिकेय तारकासुर का एक भयंकर युद्ध में वध कर देते हैं. तभी से स्कंदमाता एक सर्वश्रेष्ठ पुत्र कार्तिकेय की माता के नाम से जानी जाती है.
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी पंडित जय प्रकाश शास्त्री से बातचीत पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि etvbharat.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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