नई दिल्ली: नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है. कूष्मांडा माता ने अपनी मुस्कान से ब्रह्माण्ड की रचना की थी, इसीलिए इन्हें सृष्टि की आदि शक्ति के रूप में जाना जाता है. कूष्मांडा माता का रूप बहुत ही शांत, सौम्य और मोहक माना जाता है. इनकी आठ भुजाए हैं, इसीलिए इनको अष्ट भुजा भी कहते हैं. इनके सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों को देने वाली जप की माला है. इनका वाहन शेर है. माता की पूजा से भक्तों के सभी कष्टों का नाश होता है. मां कूष्मांडा के नाम का मतलब है, एक ऊर्जा का छोटा सा गोला. एक ऐसा पवित्र गोला जिसने इस समस्त ब्रह्माण्ड की रचना की.
मां कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-दुख मिट जाते हैं. इनकी पूजा के आयु, यश, बल और आरोग्य में वृद्धि होती है. मां का स्वभाव अत्यंत सौम्य है. इसलिए यदि कोई भी भक्त सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाता है, उसे परम पद की प्राप्ति हो जाती है.
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नवरात्रि के चतुर्थी के दिन मां कूष्मांडा की आराधना का विधान है. इनकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग और शोक का नाश होता है और आयु और यश में वृद्धि होती है. इस दिन संभव हो तो बड़े माथे वाली तेजस्वी विवाहित महिला का पूजन करना चाहिए और उन्हें भोजन कराना चाहिए. भोजन में दही, हलवा खिलाना लाभदायक होता है. इसके बाद फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करना चाहिए, जिससे मां कूष्मांडा प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करती हैं.
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मां कूष्मांडा की पूजा-विधि: सुबह स्नान से निवृत्त होने के बाद मां दुर्गा के कूष्मांडा रूप की पूजा करें. पूजा में मां को लाल रंग का पुष्प, गुड़हल या फिर गुलाब अर्पित करें. साथ ही सिंदूर, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाएं. मां की पूजा आप हरे रंग के वस्त्र पहनकर करें तो अधिक शुभ माना जाता है. इससे आपके समस्त दुख दूर होते हैं.
मां कूष्मांडा का मंत्र-
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।'
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मां कुष्मांडा की कथा: जब यह सृष्टि अंधकार में थी, तब एक छोटे से ऊर्जा के गोले ने जन्म लिया और यह गोला चारों तरफ प्रकाशित होने लगा और फिर उस गोले ने एक नारी का रूप लिया. वह कूष्मांडा मां के नाम से प्रचलित हुई. इनका स्थान सूर्य मंडल के भीतरी लोक में है. सूर्य मंडल में निवास करने की क्षमता और किसी में नहीं है.
मां ने सबसे पहले तीन देवियों की रचना की वह तीन देवियां मां महालक्ष्मी, मां महाकाली और मां सरस्वती थीं. महाकाली के शरीर से एक नर और नारी ने जन्म लिया. नर के पांच सिर और दस हाथ थे, उनका नाम शिव रखा गया और नारी का एक सिर और चार हाथ थे, उनका नाम उन्होंने सरस्वती रखा.
महालक्ष्मी के शरीर से एक नर और नारी का जन्म हुआ. नर के चार हाथ और चार सिर थे, उनका नाम ब्रह्मा रखा और नारी का नाम लक्ष्मी रखा गया. फिर मां सरस्वती के शरीर से एक नर और एक नारी का जन्म हुआ. नर का का एक सिर और चार हाथ थे. उनका नाम विष्णु रखा और महिला का एक सिर और चार हाथ थे, उसका नाम शक्ति रखा.
मां ने भगवान शिव को शक्ति, ब्रह्मा जी को सरस्वती और विष्णु जी को लक्ष्मी पत्निओं के रूप में प्रदान किया. मां ने अनेक देवी-देवताओं की रचना की. इसीलिए इन्हें सृष्टि की रचयिता माना जाता है.
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी पंडित जय प्रकाश शास्त्री से बातचीत पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि etvbharat.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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