नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि भले ही बलात्कार के मामलों में दोषसिद्धि अभियोक्ता की एकमात्र गवाही पर आधारित हो सकती है, अगर अभियोक्ता द्वारा पेश की गई कहानी को असंभव पाया जाता है तो मामले को खारिज किया जा सकता है.
उपरोक्त के आधार पर, एकल-न्यायाधीश न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने बलात्कार के आरोप में एक व्यक्ति की 15 साल पुरानी सजा को रद्द कर दिया.
कोर्ट ने कहा, "यदि अदालत के पास अभियोजन पक्ष के बयान को उसके अंकित मूल्य पर स्वीकार नहीं करने का कारण है, तो वह पुष्टि की तलाश कर सकता है. यदि साक्ष्य को उसकी समग्रता में पढ़ा जाता है और अभियोक्ता द्वारा पेश की गई कहानी को असंभव पाया जाता है, तो अभियोक्ता का मामला खारिज होने के लिए उत्तरदायी हो जाता है."
जस्टिस सिंह ने आगे कहा कि यह तयशुदा कानून है कि जब तक आरोपी की बेगुनाही का प्रारंभिक अनुमान न हो और जब तक कि कानूनी साक्ष्य के आधार पर उचित संदेह से परे अपराध स्थापित नहीं किया जाता है, तब तक किसी को अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.
फैसले ने कहा, "बचाव पक्ष का यह कर्तव्य नहीं है कि वह यह बताए कि कैसे और क्यों बलात्कार के मामले में पीड़िता और अन्य गवाहों ने आरोपी को झूठा फंसाया है। अभियोजन पक्ष को अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ता है और बचाव के मामले की कमजोरी से समर्थन नहीं ले सकता."
किस मामले में आया ये फैसला?
जुलाई 2006 के एक निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली राम बक्श नाम की एक याचिका पर फैसला सुनाया गया, जिसमें उसे एक लड़की के बलात्कार के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत दोषी ठहराया गया था.
बैक्स की ओर से पेश वकील ने अदालत को बताया था कि लड़की के बयान में कई भौतिक विरोधाभास हैं. अदालत को बताया गया कि निचली अदालत ने लड़की की मां, उसके सौतेले भाई और जांच अधिकारी (आईओ) सहित कई गवाहों से पूछताछ तक नहीं की. इसलिए उनके बयान की पुष्टि नहीं हो पाई.
यह प्रस्तुत किया गया था, मेडिकल रिपोर्ट में पीड़िता के निजी अंगों पर कोई चोट नहीं दिखाई गई, जबकि उसके कपड़ों पर पाया गया वीर्य आरोपी से मेल नहीं खाता था.
इसलिए, यह तर्क दिया गया कि उस व्यक्ति को मामले में झूठा फंसाया गया था, क्योंकि वह दूसरे धर्म के एक स्थानीय लड़के के साथ उसके रिश्ते के खिलाफ था.
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कोर्ट ने कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि सबूतों पर जब समग्रता से विचार किया गया तो लड़की के बयान पर विश्वास नहीं हुआ. इसमें कहा गया है कि अभियोजन पक्ष ने अपराध की वास्तविक उत्पत्ति का खुलासा नहीं किया था और इसलिए ऐसी स्थिति में अपीलकर्ता संदेह का लाभ पाने का हकदार था.इसलिए कोर्ट ने उस व्यक्ति के आदेश और सजा को रद्द कर दिया.
मामले में अपीलकर्ता का प्रतिनिधित्व दिल्ली उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति के वकील अनुज कपूर ने किया, जबकि अतिरिक्त लोक अभियोजक पन्ना लाल शर्मा राज्य के लिए पेश हुए.