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दिवाली पर पटाखों पर थी रोक, लेकिन नहीं माने लोग, अब सांस लेना हुआ मुश्किल

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Published : Nov 6, 2021, 6:04 AM IST

एयर इमरजेंसी
एयर इमरजेंसी

दिवाली से पहले आशंका जतायी गयी थी कि दिल्ली में एयर इमरजेंसी (air emergency in delhi) की स्थिति आ सकती है. त्योहार के साथ पराली जलाने की आशंका थी. गुरुवार रात करीब नौ बजे दिल्ली की एयर क्वालिटी ‘गंभीर’ श्रेणी में आई थी. पराली जलाने और पटाखा फाेड़े जाने के कारण स्थिति और खराब हाे गयी.

नई दिल्लीः दिवाली पर पटाखों के इस्तेमाल पर रोक लगाए जाने के बावजूद दिल्ली के कुछ इलाके में रात 12:00 बजे तक ताबड़तोड़ पटाखे जलाए गए. इसका असर यह हुआ कि हवा इतनी खराब हो गई कि सांस लेना भी मुश्किल हो गया. सुबह जब लाेग सो कर उठे तो जहरीली हवा की एक परत आसमान में बन चुकी थी.

दिवाली के दिन यानि गुरुवार दोपहर चार बजे तक पीएम 2.5 का लेवल 382 दर्ज किया गया. शाम आठ बजे तक तापमान में गिरावट के साथ ही हवा में प्रदूषक तत्वों की मात्रा काफी बढ़ गयी. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शुक्रवार सुबह जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के पास पीएम 2.5 का लेवल 999 प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पीएम 2.5 का सुरक्षित स्तर 60 है. इससे अधिक होने पर यह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो जाता है. इसकी ज्यादा मात्रा ब्लड में जाने से कार्डियोवैस्कुलर रेस्पिरेट्री डिजीज (Cardiovascular respiratory disease) एवं लंग कैंसर (lung cancer) होने का खतरा बढ़ जाता है.

दिल्ली में एयर इमरजेंसी.

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शुक्रवार सुबह से लोगों ने आंखों में जलन, गले में खिचखिच की शिकायत करने लगे. हवा में धुंध की एक पतली चादर सी बन गई थी. विशेषज्ञ बताते हैं कि कम तापमान एवं निम्न मिश्रित ऊंचाई, हवा के वेग का लगभग शून्य पर पहुंच जाना, पटाखों से निकले धुआं और तेज आवाज एवं पड़ोसी राज्यों में जलाए जाने वाले पराली ने मिलकर हवा को जहरीला बना दिया.

एयर क्वालिटी एवं वेदर फोरकास्टिंग रिसर्च (Air Quality and Weather Forecasting Research) के मुताबिक, रविवार शाम यानी कि सात नवंबर से पहले हवा की गुणवत्ता में सुधार आने की कोई संभावना नहीं दिख रही है.

जहरीली हवा की एक परत आसमान में बन चुकी है.
जहरीली हवा की एक परत आसमान में बन चुकी है.
अस्पतालों में सांस की समस्या के साथ पहुंचे मरीज
AIIMS110
सफदरजंग अस्पताल 78
साकेत मैक्स अस्पताल 35
LNJP65
RML अस्पताल 70


अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिसॉर्डर (Asthma and Chronic Obstructive Pulmonary Disorder) मरीजों के वायु प्रदूषण की चपेट में आने का सर्वाधिक खतरा रहता. दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (Delhi Medical Association) के सचिव और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अजय गंभीर बताते हैं कि इन दिनों हवा अच्छी क्वालिटी की नहीं हाेने के चलते अस्थमा के मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. रिसर्च पहले भी बताते रहे हैं और अब भी बता रहे हैं कि बुजुर्गों को प्रदूषण सबसे अधिक प्रभावित करता है. अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिसॉर्डर (सीओपीडी) मरीजों को वायु प्रदूषण से सबसे अधिक खतरा रहता है.

दिवाली में पटाखे जलाए.
दिवाली में पटाखे जलाए.


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डॉ गंभीर बताते हैं कि बच्चों के मामले में भी यही बात लागू होती है. जिनका रेस्पिरेटरी सिस्टम अभी विकसित हो रहा होता है, जिसके चलते उन पर प्रदूषण से प्रभावित होने का खतरा ज्यादा रहता है. चूंकि बच्चे, वयस्क लोगों की तुलना में अधिक सक्रिय होते हैं, और बच्चों के फेफडे़ किशोरावस्था में पहुंचने तक विकसित होते रहते हैं, ऐसे में उनके फेफडों में प्रदूषित हवा का असर अधिक पड़ता है.


वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव से बचने के लिए करें ये उपाय

  • अगर प्रदूषण का स्तर 200 mcg/m3 से अधिक होता है तो बच्चाें, अस्थमा के मरीजाें और बुजुर्गों को बाहर नहीं निकलना चाहिए.
  • लोगों को बाहर की हवा में प्रदूषण के स्तर की जांच करते रहना चाहिए और यदि हवा में प्रदूषण की मात्रा अधिक हो तो बचाव के लिए अच्छी क्वालिटी का मास्क पहनना चाहिए.
  • घर के भीतर की हवा को भी स्वच्छ रखना बेहद जरूरी होता है.
  • अधिक समय तक सूरज की रोशनी के सम्पर्क में रहने से भी बचना चाहिए, क्योंकि धूप ओजाेन गैस बनाती है.
  • अपने आहार में एंटी‌ऑक्सिडेंट वाली चीजें जैसे कि फल व सब्जियां अधिक शामिल करें. ये शरीर में विटामिंस की मात्रा बढ़ाती हैं, जिसके चलते हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है.

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डॉ. अजय की मानें ताे वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा बच्चे प्रभावित होते हैं. स्किन में रैशेज से लेकर पेट में जलन, आंखों में जलन, खुजली जैसी समस्याओं के साथ अस्पताल में बच्चे पहुंच रहे हैं. प्रदूषण के लॉन्ग टर्म असर के रूप में बच्चों में एनीमिया लेड टाक्सीसिट, चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है. इसका असर बच्चों के इंटेलिजेंस पर भी पड़ता है. लॉन्ग टर्म में बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर भी इसका खतरनाक असर होता है.

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