नई दिल्ली/गाजियाबाद: केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ ग़ाज़ीपुर बॉर्डर समेत राजधानी दिल्ली की अन्य सीमाओं पर अन्नदाताओं का आंदोलन जारी है. सर्दी के मौसम में शुरू हुआ. आंदोलन अब गर्मी के मौसम में प्रवेश कर चुका है. आंदोलन को 15 हफ्तों से अधिक हो चुके हैं. बॉर्डर आंदोलन में बुज़ुर्ग, महिलाएं और बच्चे भी डटे हुए हैं. किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच वार्ताओं का सिलसिला भी रुका हुआ है. गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे राकेश टिकैत भी विभिन्न प्रदेशों में जाकर महापंचायत कर रहे हैं.
गाज़ीपुर बॉर्डर पर ऐसी होती है किसानों की दिनचर्या
भारतीय किसान यूनियन के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष राजवीर जादौन ने बताया आंदोलन स्थल पर सुबह 11 से शाम 5 बजे तक मंच का संचालन होता है, जिसमें विभिन्न प्रदेशों से आंदोलन का समर्थन करने के लिए लोग पहुंचते हैं. लोगों से मिलने-जुलने में ही किसानों का पूरा दिन व्यतीत हो जाता है. आंदोलन स्थल पर किसान आंदोलन की रणनीति को लेकर बैठकों का दौर चलता है. किसान नेता जगतार सिंह बाजवा ने बताया गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन में किसानों की दिनचर्या ऐसी है कि कोई भी किसान बोर नहीं हो सकता. प्रत्येक दिन मंच का संचालन होता है. वक्ता मंच से भाषण देते हैं और किसान मंच के समक्ष बैठकर वक्ताओं को सुनते हैं. भारी संख्या में किसान आंदोलन स्थल पर किसानों की सेवा में लगे हुए हैं. इसके साथ ही दिन भर किसान चर्चा कर आगे की रणनीति तैयार करते हैं.
हुक्का बनता है मनोरंजन का साधन
भाकियू गाज़ियाबाद जिलाध्यक्ष बिजेंद्र यादव ने बताया आंदोलन स्थल पर वक्त बिताने का एक मुख्य ज़रिया हुक्का है. हुक्के के सहारे किसान एक साथ बैठकर चर्चा करते हैं, जैसे आंदोलनकारी किसानों के लिए खाने में क्या कुछ तैयार होना है. किसान रागिनी गाकर भी समय व्यतीत करते हैं. बुजुर्ग किसान जब थक जाते हैं तो दोपहर में कुछ घंटे की नींद भी ले लेते हैं.
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"मंच के चक्कर लगाकर महसूस करते हैं, जैसे खेत का चक्कर लगा लिया हो"
मेरठ के जंगहटी गांव के रहने वाले किसान जगत सिंह राठी बताते हैं गांव में वक्त काटने के लिए दिन भर में खेतों के दो चार चक्कर लगा लिया करते थे और अब आंदोलन स्थल पर वक्त काटने के लिए मंच के दो चार चक्कर लग जाते हैं. मंच के चक्कर लगाकर ही ऐसा महसूस होता है जैसे खेत का चक्कर लगा लिया हो.