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Positive Bharat Podcast: वीर राजा पोरस, जिसका पराक्रम देख विश्व विजेता भी था हैरान

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Published : Sep 20, 2021, 10:31 AM IST

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राजा पोरस की कहानी

आज ईटीवी पॅाजिटिव भारत के पॅाडकास्ट के ऐतिहासिक किस्से के संस्करण में आप सुनेंगे वीर और विराट राजा पोरस की कहानी, जिसने अपनी अल्प सेना होने के बावजूद अपने पराक्रम और विश्वास से युनानी राजा सिकंदर को युद्ध मैदान में ऐसी टक्कर दी, जिससे सिकंदर का भारत में यह अंतिम युद्ध साबित हुआ.

नई दिल्ली: पोरस पंजाब में झेलम से चेनाब नदी तक के क्षेत्र के शासक थे. वह एक महान शक्तिशाली राजा थे (King Porus), जिन्हें अपनी मिट्टी से अत्यंत प्रेम था और उनके सैनिकों में वफादारी (King Porus army). पोरस एक छोटे से राज्य के शासक होने के बाद भी आस पास के राज्यों से कहीं ज्यादा मजबूत थे. पोरस को अपनी सैन्य शक्ति पर न केवल गर्व था, बल्की भरोसा भी और शायद यही कारण रहा था कि जिससे कोई भी राजा पोरस के राज्य में आक्रमण करने से पहले कई बार सोचता था (King Porus Battle).

वहीं दूसरी ओर एक राजा, लगातार युद्ध के आधार पर विश्व विजय के सपने को लेकर अपने शासन का क्षेत्रफल बढ़ाता जा रहा है. यह राजा था सिकंदर (King Alexander), जिसे इतिहास के पन्नों ने अब तक का महान राजा घोषित किया था (King Alexander story).

राजा पोरस की कहानी

सिकंदर इस विजय यात्रा (King Alexander Victory) में इरान सहित कई अन्य देशों को हराते हुए अब भारत आ पहुंचा था (King Alexander Battle). यह दौर 326 ईसा पूर्व का था, जहां एक तरफ सिकंदर की बढ़ती यात्रा के साथ कई राज्यों के तमाम शासक बिना लड़े ही उसके सामने घुटने टेक रहे थे (King Alexander success), वहीं दूसरी ओर पोरस की जीवनी में एक नई शौर्यगाथा लिखे जाने की शुरुआत हो चुकी थी (King Porus).

सिकंदर के मंसूबों से बेखबर पोरस एक आम समय की तरह ही अपने राज्य को चला रहा था, लेकिन तभी खबर मिली की पोरस के राज्य के पास स्थित तक्षशिला (King Alexander Takshshila Battle) के राजा ने सिकंदर के आगे घुटने टेक दिए है और अब सिकंदर अपने राज्य विस्तार के लिए पोरस के राज्य की तरफ रुख करने वाला है. राजा पोरस ने यह सुनते ही युद्ध का ऐलान कर दिया. इस फैसले को लेकर मंत्रिमंडल में खूब चर्चाएं हुईं, कईयों ने अपनी राय रखी कि एसा करना राज्य की लिए हितकारी नहीं होगा. क्योंकि अभी तक कई शासकों ने बीना लड़े ही सिकंदर के सामने हार कबूल कर ली है और जिन्होंने सिकंदर का सामना करने का साहस किया उनका और उनके राज्य का बहुत बुरा हश्र हुआ है.

अब सब की नजर पोरस पर टिकी थी, लेकिन पोरस की आखों में राज्य की सुरक्षा का दायित्व था. वे अपने फैसले से पीछे नहीं हटने वाले थे. ऐसे में पोरस ने युद्ध की तैयारी का एलान किया (King Porus Alexander Battle), जिसे सुन कर राज्य में हड़कंप मच गया, लेकिन अपने राजा पर पूरा विश्वास दिखाते हुए सेना सिपाहियों सहित प्रजा ने युद्ध की तैयारी शुरू की और शायद पोरस की प्रजा और सेना का उनपर इसी भरोसे ने राज्य को सशक्त बनाए रखा.

इन सब के बाद अब युद्ध की घड़ी थी. कोई नहीं जानता था क्या होना है. पोरस की सेना कम थी, हथियार तनिक थे लेकिन जज्बा भरपूर था (King Porus ammunition). वहीं युद्ध मैदान के दूसरी और खड़ा राजा सिकंदर अपनी सैन्य शक्ति पर अभिमान के साथ कठोर कदम जमाया हुआ था. सिकंदर अपनी शक्तिशाली सेना के साथ पोरस की सेना पर टूट पड़ा. वहीं पोरस की सेना ने जवाबी आक्रमण में सिकंदर की सेना का जमकर संहार किया. पोरस की सेना का पराक्रम देखते हुए सिकंदर और उसकी सेना आतंकित हो उठी, सिकंदर को भारत की इस भूमि पर ऐसे युद्ध का सामना करना पड़ रहा था, जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी. सिकंदर पोरस के इस बहादुरी से प्रभावित तो था, लेकिन अपनी विश्व विजय की हठ के चलते अधिक क्रूरता पूर्वक पोरस की सेना पर आक्रमण करने लगा, धिरे-धिरे पोरस की सेना कमजोर पड़ने लगी, सिकंदर की सेना के आगे संख्या में कम होने के चलते वे कड़ा मुकाबला नहीं दे पा रहे थे और अंत में पोरस की सेना को सेनिकों की भारी क्षती झेलने के बाद पीछे हटना पड़ा और सिकंदर ने युद्ध को अपने नाम कर लिया.

हालांकि पोरस और उनकी सेना की इस शौर्यगाथा में कई इतिहासकारों द्वारा समय-समय पर बदलाव किए जाते रहे हैं (King Porus historian), सभी इस कहानी में अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं जोड़ते रहे हैं (King Alexander historian), लेकिन अंतिम सच यही था कि पोरस द्वारा लड़ा गया यह युद्ध सिकंदर पूरी जिंदगी नहीं भूल पाया और विराम के रूप में सिकंदर ने पोरस से दोस्ती का हाथ बढ़ाया (King Porus King Alexander Friendship).

बाद में जब सिकंदर ने पोरस से पुछा कि तुम्हारे साथ कैसा बरताव किया जाना चाहिए, तो पोरस का जवाब था, जैसा एक राजा दुसरे राजा के साथ करता है.

यह थी भारत में जन्मे विराट राजा पोरस के बड़े इतिहास से जुड़ा एक छोटा सा किस्सा, जिससे हमें यह समझ आता है कि कोई लक्ष्य मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं होता, असल में हारता वही है, जो चुनौतियों से लड़ता नहीं है.

पोरस और सिकंदर की इस जंग का परिणाम जैसा भी रहा हो, लेकिन एक बात निश्चित थी, पोरस का साहस और अपनों के प्रति उसका विश्वास उसके स्वाभिमान को अटल बनाता रहा, अगर यही कुछ भी कर गुजरने का हौसला और अपनों के प्रती भरोसा बनाए रखे, तो हम अपनी जिंदगी में सफलता की सीढ़ी बहुत कम समय में चढ़ सकते हैं.

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