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अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस: देशव्यापी लॉकडाउन ने बढ़ायी प्रवासी मजदूरों की दुश्वारियां

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Published : Dec 18, 2020, 6:01 AM IST

Updated : Dec 18, 2020, 8:07 AM IST

अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस: देशव्यापी लॉकडाउन ने बढ़ायी प्रवासी मजदूरों की दुश्वारियां
अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस: देशव्यापी लॉकडाउन ने बढ़ायी प्रवासी मजदूरों की दुश्वारियां

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस ने संपूर्ण अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया. इसका सबसे व्यापक प्रभाव उस तबके पर पड़ा जो अपनी आजीविका के लिए दिहाड़ी मजदूरी या अनौपचारिक क्षेत्रों पर निर्भर हैं. देशव्यापी लॉकडाउन ने प्रवासी मजदूरों की समस्याओं को और भी बढ़ा दिया.

हैदराबाद: संयुक्त राष्ट्र ने महासभा ने 4 दिसंबर 2000 को, दुनिया में प्रवासियों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए 18 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस घोषित किया. अंतरराष्ट्रीय प्रवास की चुनौतियों और कठिनाइयों में देशों और क्षेत्रों के बीच सहयोग और सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता होती है, जिसे हासिल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने दूरदर्शिता दिखाते हुए इस दिवस की घोषणा की.

भारत में इंट्रा स्टेट माइग्रेशन

प्रवासन अपने सामान्य स्थान से लोगों के कहीं दूर आवाजाही की प्रक्रिया है, जो आंतरिक (देश के भीतर) या अंतरराष्ट्रीय (देशों के पार) सीमाओं के पार हो सकती है. प्रवासन का नवीनतम सरकारी डेटा 2011 की जनगणना में मिलता है.

जनगणना के अनुसार, 2011 में भारत में 45.6 करोड़ प्रवासी थे (जनसंख्या का 38 फीसदी). वहीं 2001 में यह संख्या 31.5 करोड़ थी (जनसंख्या का 31 फीसदी). 2001 और 2011 के बीच, जहां जनसंख्या में 18% की वृद्धि हुई, वहीं प्रवासियों की संख्या में 45% की वृद्धि हुई.

प्रवासन संकट

वैश्विक महामारी कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए भारत में 25 मार्च, 2020 से संपूर्ण देश में लॉकडाउन लगा दिया गया था. इस दौरान, आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन और आपूर्ति में योगदान देने वाली गतिविधियों को छोड़ बाकि गतिविधियां पूरी तरह या आंशिक रूप से निलंबित कर दिया गया. पैसेंजर ट्रेनों और उड़ानों पर रोक लगा दिया गया.

लॉकडाउन ने प्रवासियों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिनमें से काफी प्रवासी उद्योगों के बंद होने के कारण अपनी नौकरी खोकर अपने स्थानों पर फंसे रह गए.

इसका संज्ञान लेते हुए 9 जून को, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को फंसे प्रवासियों को उनके मूल निवास स्थान तक पहुंचाने और प्रवासियों के लिए रोजगार की सुविधा के लिए राहत उपायों के विस्तार का निर्देश दिया.

रॉयल जियोग्राफिकल सोसाइटी (इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रिटिश जियोग्राफर) उन मुद्दों को उजागर करता है जो प्रवासियों के पलायन के पीछे काफी हद तक मौजूदत रहते हैं.

  • व्यवसाय और उद्योग प्रवासी श्रम पर निर्भर करता है, क्योंकि उन्हें स्थानीय श्रम ती तुलना में कम भुगतान किया जाता है और लंबे समय तक काम लिया जाता है. दुनिया के कई हिस्सों में प्रवासी मजदूर देश के सीमाओं के पार जाकर श्रम करते हैं, वहीं भारत में आंतरिक प्रवासियों की संख्या अधिक है, जो दूसरे राज्यों में अनौपचारिक अनुबंध पर काम करते हैं, जहां उन्हें दूसरे दर्जे के नागरिक के समान व्यवहार किया जाता है.
  • भारत में, इन प्रवासियों में से कई (लगभग 100 मिलियन) प्रवासी मौसम के अनुसार काम करते हैं और वर्ष के एक हिस्से में अपने ग्रामीण घरों से दूर के कार्य स्थलों के बीच प्रसारित होते हैं.
  • श्रमिकों के साथ सबसे बुरा व्यवहार अक्सर भारत के झारखंड, ओडिशा या छत्तीसगढ़ राज्यों से आए प्रवासियों के साथ होता है, जो लंबे समय से आंतरिक रूप से दमनकारी संरचनाओं का रूप धारण कर चुके हैं. जैसे कि उनके स्वदेशी धन, खनिज, वन, अन्य प्राकृतिक संसाधनों को बाहरी लोगों द्वारा निकाला गया, लेकिन स्थानीय लोग उच्च स्तर की गरीबी का सामना कर रहे हैं.
  • सबसे खराब रहने की स्थिति में सबसे कठिन काम भारत के ऐतिहासिक रूप से वंचित अल्पसंख्यकों द्वारा किया जाता है. दलितों और आदिवासियों को मौसमी श्रम प्रवासियों के रूप में प्रतिनिधित्व किया जाता है; वे मौसमी प्रवासी कार्यबल के 40% से अधिक का निर्माण करते हैं, भले ही वे आबादी का केवल 25% हैं.

महामारी के दौरान प्रवासियों का इन संकट का सामना करना पड़ा

  • भीड़-भाड़ वाले रहने के स्थान
  • भोजन और राशन तक पहुंच का अभाव
  • नौकरी का अभाव
  • जानकारी के अभाव में दहशत

एक करोड़ प्रवासी घर लौट आए

प्रवासियों की वापसी के मामले में उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा प्रवाह (32.49 लाख) देखा गया, उसके बाद बिहार (15 लाख) और पश्चिम बंगाल (13.89 लाख) का स्थान रहा. तीनों राज्यों में लगभग 60% प्रवासियों की वापसी हुई.

केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान कुल 1.04 करोड़ प्रवासी वापस चले गए.

रेल मंत्रालय ने प्रवासी मजदूरों को देश के सभी हिस्सों से वापस उनके घर राज्यों तक वापस लाने के लिए 'श्रमिक स्पेशल ट्रेन' की व्यवस्था की थी. रेल मंत्रालय द्वारा उत्पादित आंकड़ों के अनुसार, 1.04 करोड़ प्रवासियों को पहुंचाने के लिए 1 मई से 15 सितंबर तक 4,611 ऐसी ट्रेनों का परिचालन किया गया है.

श्रम और रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा, "भारतीय रेलवे ने श्रमिकों की सुविधा के लिए 4611 से अधिक श्रमिक ट्रेनों का परिचालन किया है. यात्रा के दौरान भोजन और पानी मुफ्त दिया जाता था."

लॉकडाउन के दौरान पूर्वोत्तर राज्यों में लगभग पांच लाख प्रवासियों की वापसी हुई. उनमें से, 4.91 लाख (या 86.69 प्रतिशत) अकेले असम से थे. वहीं मिजोरम में किसी भी प्रवासी की वापसी नहीं हुई.

घरों को वापस आते प्रवासी मजदूरों की त्रासदी

जून में, सड़क सुरक्षा पर काम करने वाले नई दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संगठन सेव लाइफ़ फाउंडेशन ने 25 मार्च से 31 मई के बीच सड़क दुर्घटनाओं में कम से कम 198 प्रवासी कामगारों के मारे जाने की रिपोर्ट दी है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दौरान 1,400 से अधिक सड़क दुर्घटनाओं में भारत में 750 लोग मारे गए और उनमें से 198 प्रवासी श्रमिक थे.

इनके अलावा, कई मीडिया रिपोर्टों के अनुसार गृह यात्रा के दौरान श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में कम से कम 80 प्रवासी श्रमिक मारे गए थे.

उत्तर प्रदेश के औरैया में 16 मई को ऐसी सबसे भीषण त्रासदी हुई थी, जिसमें 27 प्रवासी श्रमिक मारे गए थे और 33 लोग घायल हो गए थे.

8 मई को, महाराष्ट्र के औरंगाबाद में एक मालगाड़ी ने 16 से अधिक प्रवासी कामगारों को कुचल दिया और भाग गई जो मध्य प्रदेश में अपने घर की ओर जा रहे थे. मजदूर थकावट के कारण रेलवे पटरियों पर सो गए थे.

21 अप्रैल को, 12 वर्षीय जमलो मकदाम की तेलंगाना से लगभग 110 किलोमीटर दूर पैदल चलने के बाद थकावट और निर्जलीकरण से मृत्यु हो गई. छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले की निवासी मकदाम कथित तौर पर मिर्च के खेतों में काम करने के लिए तेलंगाना गई थी. लॉकडाउन के कारण परिवहन स्थगित होने से, वह और उसके गांव के अन्य प्रवासी श्रमिक घर चलने लगे.

लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रम के संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कदम

परिवहन: 1 मई को, भारतीय रेलवे ने अपने गृह राज्य के बाहर फंसे प्रवासियों की आवाजाही की सुविधा के लिए श्रमिक विशेष ट्रेनों के साथ (22 मार्च के बाद पहली बार) यात्री आवागमन फिर से शुरू किया. 1 मई से 3 जून के बीच, भारतीय रेलवे ने 58 लाख से अधिक प्रवासियों को परिवहन करने वाली 4,197 श्रमिक ट्रेनें संचालित कीं. सबसे ज्यादा ट्रेनें गुजरात और महाराष्ट्र से निकली और सबसे ज्यादा प्रवासी उत्तर प्रदेश और बिहार की तरफ गए.

खाद्य वितरण: 1 अप्रैल को, स्वास्थ्य और परिवार मामलों के मंत्रालय ने राज्य सरकारों को भोजन, स्वच्छता और चिकित्सा सेवाओं की व्यवस्था के साथ प्रवासी श्रमिकों के लिए राहत शिविर संचालित करने का निर्देश दिया. 14 मई को, आत्मनिर्भर भारत अभियान की दूसरी किश्त के तहत, वित्त मंत्री ने घोषणा की कि प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाएगा. इस उपाय से आठ करोड़ प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों को लाभ मिलने की उम्मीद जतायी गई है. वित्त मंत्री ने यह भी घोषणा की कि पीडीएस के तहत पोर्टेबल लाभ प्रदान करने के लिए मार्च 2021 तक वन नेशन वन राशन कार्ड लागू किया जाएगा. यह भारत में किसी भी उचित मूल्य की दुकान से राशन तक पहुंच की अनुमति देगा.

आवास: पीएमएवाई के तहत किफायती किराये की आवास इकाइयां उपलब्ध कराने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान ने प्रवासी श्रमिकों और शहरी गरीबों के लिए किफायती किराये के आवास परिसरों के लिए एक योजना शुरू की. योजना में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी आवास मिशन (जेएनएनआरयूएम) के तहत मौजूदा आवास स्टॉक का उपयोग करने का प्रस्ताव है, साथ ही सार्वजनिक और निजी एजेंसियों को किराए के लिए नई सस्ती इकाइयों के निर्माण के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. इसके अलावा, मध्य आय समूह के लिए पीएमएवाई के तहत क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना के लिए अतिरिक्त धन आवंटित किया गया है.

वित्तीय सहायता: कुछ राज्य सरकारों (जैसे बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश) ने प्रवासी श्रमिकों को लौटाने के लिए एकमुश्त नकद हस्तांतरण की घोषणा की. यूपी सरकार ने प्रवासियों को लौटाने के लिए 1,000 रुपये के रखरखाव भत्ते का प्रावधान करने की घोषणा की.

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Last Updated :Dec 18, 2020, 8:07 AM IST
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