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अब तक क्यों नहीं बन पाया जेपी के सपनों का बिहार, क्या संपूर्ण क्रांति पार्ट टू की फिर है दरकार?

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Published : Jun 5, 2022, 10:59 AM IST

संपूर्ण क्रांति के नायक जयप्रकाश नारायण (Hero of Total Revolution Jaiprakash Narayan) ने बिहार को बदलने का सपना देखा था. 32 साल से उनके राजनीतिक शिष्य लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार बिहार की सत्ता में हैं. इसके बावजूद आज भी 'जेपी के सपनों का बिहार' नहीं बन पाया है. नारों में अक्सर उनका जिक्र तो होता है लेकिन विचारों में कहीं लोकनायक नजर नहीं आते हैं. पढ़ें पूरी खबर...

जेपी के सपनों का बिहार
जेपी के सपनों का बिहार

पटना: आज यानी 5 जून को ही बिहार के सपूत लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Lok Nayak Jayaprakash Narayan) ने व्यवस्था परिवर्तन के लिए संपूर्ण क्रांति का नारा (Total Revolution) दिया था. जब वह सक्रिय राजनीति से दूर रहने के बाद भी 1974 में 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है' के नारे के साथ मैदान में उतरे तो समूचा देश उनके पीछे चल पड़ा. 5 जून 1974 के दिन पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जेपी ने जब संपूर्ण क्रांति की घोषणा की, तब पूरा देश आंदोलित हो उठा था. आंदोलन के जरिए वह राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा बदलाव करना चाहते थे. उनका मकसद आंदोलन के जरिए व्यवस्था परिवर्तन से था. साथ ही संपूर्ण क्रांति के जरिए जाति विहीन समाज का निर्माण चाहते थे लेकिन कही न कहीं आज भी उनका सपना अधूरा ही है.

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इंदिरा गांधी से मांग लिया इस्तीफा: जब जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था, उस समय इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी. जयप्रकाश की निगाह में इंदिरा गांधी की सरकार भ्रष्ट होती जा रही थी. 1975 में निचली अदालत में इंदिरा गांधी पर चुनाव में भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया. जयप्रकाश ने उनके इस्तीफे की मांग कर दी. जेपी का कहना था कि इंदिरा सरकार को गिरना ही होगा. आनन-फानन में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी. उन दिनों राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था- 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'. जनवरी 1977 आपातकाल काल हटा लिया गया और लोकनायक के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के चलते पहली बार देश में गैर कांग्रेसी सरकार बनी. आंदोलन का प्रभाव न केवल देश में, बल्कि दुनिया के तमाम छोटे-बड़े देशों पर पड़ा. सन 1977 में ऐसा माहौल था, जब जनता आगे थी और नेता पीछे थे. ये जेपी का ही करिश्माई नेतृत्व का प्रभाव था.

लालू-नीतीश जेपी आंदोलन की उपज: 5 जून 1975 को जयप्रकाश नारायण ने अपने भाषण में कहा था कि भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना और शिक्षा में क्रांति लाना हमारा मकसद है, लिहाजा आज के हालात से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती है. जेपी आंदोलन के गर्भ से रामविलास पासवान, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी सरीखे नेता निकले. इन नेताओं के पास लंबे समय तक के नेताओं के साथ सत्ता की बागडोर रही लेकिन बिहार का दुर्भाग्य यह रहा कि जेपी के सपनों को पंख नहीं लगे और वर्तमान परिस्थितियों में हालात दिनों दिन और भी बदतर होते जा रहे हैं.

जेपी के सपनों का बिहार: आलम ये है कि बेरोजगारी के मामले में बिहार राष्ट्रीय स्तर पर अव्वल है और रोजगार के लिए राज्य से बाहर पलायन बदस्तूर जारी है. सरकार के दावे धरातल पर नहीं उतरे. शिक्षा में सुधार भी बिहार वासियों के लिए सपना बनकर रह गया है. क्वालिटी एजुकेशन के लिए बिहार के छात्रों को पलायन करना पड़ता है. स्कूल और कॉलेजों में शिक्षकों की घोर कमी से शिक्षा के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है. भ्रष्टाचार की जड़ें और गहरी होती जा रही है. कमरतोड़ महंगाई के चलते जहां आम लोगों का जीना मुहाल है, वही बेलगाम नौकरशाही ने व्यवस्था के सामने चुनौती खड़ी कर दी है. राजनीति में भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार बनकर रह गया है. यही वजह है कि राजनीति में धनबल और बाहुबल का बोलबाला है. आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए राजनीति में जगह बना पाना दूर की कौड़ी हो गई है.

"हजारों छात्र जो आंखों में सपने लिए जेपी से मिलने आए, तब जेपी ने आंदोलन की कमान संभाली थी. आज की परिस्थितियों में भी हालात जस के तस हैं, कुछ भी नहीं बदला है. जो सत्ता में रहे, वह भी अपनी राजनीति और सरकार चलाने पर ही ध्यान दिया. बिहार की बेहतरी के लिए जो करने की जरूरत थी, नहीं हो पाया"- डॉ. मृदुला, संचालक, चरखा समिति

"जेपी ने बिहार और देश के लिए जो सपने संजोए थे, उसे सच करने का जिम्मा नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान सरीखे नेताओं के कंधों पर था लेकिन तमाम नेता रास्ते से भटक गए और भटकाव का खामियाजा आज भी बिहार की जनता भुगत रही है"- डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

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