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जेपी की राह पर चलकर तेज प्रताप चाहते हैं लालू जैसी कामयाबी.. लेकिन अब ये आसान नहीं !

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Published : Oct 11, 2021, 3:34 AM IST

बिहार में दो सीटों पर उपचुनाव को लेकर तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव में सियासत खड़ी हो गई है. जिसकी वजह से लालू यादव की बनाई हुई राष्ट्रीय जनता दल परिवार की नीतियों की भेंट चढ़ गई हैं. अब तेज प्रताप जेपी को फिर एक बार प्रासंगिक करते हुए लालू यादव जैसा मुकाम पाने की कवायद में हैं. पढ़ें रिपोर्ट..

जेपी की राह पर चलकर तेज प्रताप चाहते हैं लालू जैसी कामयाबी
जेपी की राह पर चलकर तेज प्रताप चाहते हैं लालू जैसी कामयाबी

पटना: लालू यादव (Lalu Yadav) की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल परिवार की नीतियों की भेंट चढ़ गई और विभेद इतना बढ़ गया कि पार्टी पर परिवार की नीति हावी हो गई. जिसमें परिवार कहां जा रहा है यह देखने वाला कोई नहीं है. बता दें, लालू यादव 20 तारीख को बिहार आने वाले हैं, लेकिन 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव को लेकर जिस तरीके से दोनों भाई तेजस्वी और तेजप्रताप में सियासत खड़ी हो गई है, उसमें तेज प्रताप ने तो रफ्तार पकड़ ली है, लेकिन तेजस्वी के लिए परेशानी खड़ी हो गई है.

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या यूं कहें कि तेजस्वी ने जिस तरीके की नीतियां बनाई हैं उसके ओढ़ के लिए तेज प्रताप को रफ्तार पकड़नी ही पड़ी. लेकिन, जिस तरीके की तैयारी तेज प्रताप कर रहे हैं उससे राजद को काफी नुकसान होगा, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि जिन कंधों पर जिम्मेदारी लालू ने दी है, अब वही कंधे एक दूसरे से आमने सामने लड़ने को तैयार हो गए हैं.

तेज प्रताप यादव बहुत बेहतर भाषण तो नहीं देते, लेकिन पिता को अपना सब कुछ मानते हैं, यह भाषण में जरूर कहते हैं. तेज प्रताप यादव ने एक बार इस बार तो साक्षात्कार में कहा था कि मेरे लिए राजनैतिक नीति लालू यादव हैं. मेरे लिए राजनीति का सिद्धांत लालू यादव हैं. मेरे लिए राजनीति का जीवन लालू यादव हैं. मेरे लिए राजनीति के भगवान भी लालू यादव हैं, लेकिन लालू यादव को लेकर जिस तरीके से तेज प्रताप बयान देना शुरू कर दिए हैं.

अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिर तेज प्रताप सही कब थे. जब लालू यादव के बारे में कसीदे कर रहे थे तब या फिर अब जब लालू यादव को बंधक बनाने की बात कह रहे हैं. आखिर राजनीति का कौन सा रंग सही है जो तेजप्रताप इतनी तेज तेज कह रहे हैं और इसके लिए लालू यादव ने अपने बेटों को किस राजनैतिक पाठशाला में पढ़ाया था जिसमें अभी बहुत कुछ जोड़ा नहीं लेकिन भटकाव शुरू हो गया.

तेज प्रताप यादव जनशक्ति मार्च निकालने जा रहे हैं, अब यह फॉर्मूला लालू यादव की पार्टी को कितना भारी पड़ेगा, इसका गुणा गणित पार्टी के भीतर शुरू हो गया है. दरअसल, लड़ाई के लिए नीतीश को विरोधी के तौर पर रखना था, लेकिन विरोध की जिस लड़ाई में अब तेजस्वी और तेजप्रताप आ गए हैं उसमें इसे पाट पाना बड़ा मुश्किल हो रहा है.

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2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में तेज प्रताप यादव ने जिस उम्मीदवार को मैदान में उतारा था, तेजस्वी ने उसे अपने साथ मिला लिया, चलिए यह एक बड़ी बात है कि अभी भी तेज प्रताप अपनी पार्टी के विरोध के लिए गए थे, लेकिन उसने विरोध छोड़कर के पार्टी के साथ दे दिया लेकिन राजनीति के जिस विरोध को लेकर के बिहार की राजनीति आज तक भटक रही है, उसे फिर एक बार तेज प्रताप यादव जनशक्ति मार्च निकालकर जमीन पर उतारने जा रहे हैं. विरोध में और विरोधियों के लिए भी मुद्दों की एक नई राजनीति तेज प्रताप देंगे ये बिल्कुल निश्चित है.

बिहार में जेपी आंदोलन के बाद लालू यादव इतने मजबूत होकर निकले कि उनकी गिनती नेताओं की अगली पंक्ति में होने लगी और मंडल कमीशन के बाद उनकी हस्ती इतनी बड़ी हो गई कि कई बड़े राजनीतिक दलों के आगे वह बैठने लगे. लेकिन, बदले राजनीतिक हालात में राजनीतिक दलों के यह समीकरण टूट रहे हैं. ऐसे में जोड़ने के लिए जिन चीजों को लालू यादव को करना है, उसमें जे पी के सिद्धांत और सिद्धांत में जे पी की राजनीति फिर से एक मुद्दा लेकर खड़ी हो रही है.

तेज प्रताप यादव ने जनशक्ति मार्च के लिए ऐलान किया तो बिहार की राजनीति में लालू विरोधियों ने कहना शुरू कर दिया कि बेटे ने सही राह पकड़ ली है. बाप ने जेपी को जितना बेचना था बेच दिए और जब राजनीति में कुछ नहीं चला तो जेपी जिनके खिलाफ लड़े थे, लालू उनकी गोदी में बैठकर सियासत करने लगे और सियासत भी ऐसी वैसी नहीं हुई, आज जिस हालत में लालू हैं, वह लालू के अपने सिद्धांतों की राजनीति सिर्फ जेपी को बेचकर की गई है.

अब एक बार तेजप्रताप को ऐसा लग रहा है कि जेपी को फिर से प्रासंगिक किया जाए, तो बाप वाली जैसी राजनीति तेज प्रताप को भी मिल जाएगी, क्योंकि जेपी सिद्धांत को राजनीति के बाजार में लाकर लालू यादव ने जो सियासी मुकाम हासिल किया, वह निश्चित तौर पर जेपी के बिना नहीं हो पाता. तेज प्रताप को शायद यह पता चल गया है कि जेपी को फिर एक बार प्रासंगिक किया जाए तो लालू यादव जैसा मुकाम पाया जा सकता है, लेकिन शायद तेजप्रताप इस बात को भूल गए हैं कि बदले राजनीतिक हालात में जेपी की प्रासंगिकता सिद्धांतों के बेचने से ज्यादा रही नहीं.

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विपक्ष का यही आरोप है कि लालू यादव सिद्धांतों में जेपी की बात तो करते हैं, लेकिन सैद्धांतिक राजनीति में कभी जेपी को रखे ही नहीं. अब उनके बेटे जिस सिद्धांत को पाए हैं वह बाप की उसी सियासत से सीख रहे हैं, जिसमें मुंह में कुछ और जुबान पर कुछ और है और हकीकत में कुछ और है. दरअसल, लालू यादव अपना बोया ही काट रहे हैं, क्योंकि अगर जेपी को लालू यादव सचमुच लेकर चले होते तो आज तेजस्वी और तेजप्रताप उस सिद्धांत से दूर जा ही नहीं पाते जो लालू यादव खड़ा करते, क्योंकि लालू यादव ने सिद्धांत को खड़ा करने के बजाय जेपी को सिर्फ राजनीति के लिए इस्तेमाल किया.

यही वजह है कि अब लालू यादव के बेटे राजनीति में लालू यादव के बनाए हुए राजनीतिक फलक का इस्तेमाल कर रहे हैं और यही सियासत लालू यादव की पूरी राजनीति की मटियामेट कर रही है, यह विपक्ष का आरोप है और अपने अपने तरीके से सियासत में विपक्ष आरोप लगाता भी रहता है. लेकिन, इसका पक्ष तो यह जरूर है कि अगर समय रहते इस पर लालू यादव ने रोक नहीं लगाई, तो यह तो तय है कि जेपी को लेकर जनशक्ति मार्च का रूप चाहे जो हो, लेकिन यह सैद्धांतिक रूप से बड़ा मुकाम नहीं लेगा यह तो तय है.

तेज प्रताप यादव के लिए भी उनके चहेतों का संदेश भी यही है कि अभी राजनीतिक सफर के कई बसंत उन्होंने देखे नहीं हैं. बाप के रहते सियासत मिली, पहली बार मंत्री भी बन गए, दूसरी बार लड़े तो विधायक बन गए, अभी पतझड़ की कई सियासत बाकी है और इसी से बचना भी जरूरी है, क्योंकि बार-बार एक सिद्धांत को बाजार में रखकर के सियासत नहीं की जा सकती, क्योंकि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती.

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