ETV Bharat / bharat

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में वाम दल हाशिये पर क्यों नजर आ रहे हैं ?

author img

By

Published : Feb 2, 2022, 3:14 PM IST

Updated : Feb 2, 2022, 4:31 PM IST

पांच राज्यों के चुनाव में वामपंथी दल हाशिए पर दिख रहे हैं. हालत यह है कि कभी देश की सबसे मजबूत पार्टी रही सीपीआई और सीपीआई (एम) आज मिलजुल कर भी सभी विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार खड़े नहीं कर रही है. पिछले कई चुनावों से उसका वोट प्रतिशत भी लगातार गिरता रहा है.

assembly elections in five states
assembly elections in five states

नई दिल्ली : पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल मैदान में हैं. उत्तरप्रदेश में बीजेपी, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बीएसपी समेत दर्जन भर राजनीतिक दलों के नेता गली-कूचों में घूमकर वोट मांग रहे हैं. ऐसा ही हाल पंजाब में हैं, जहां आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, बीजेपी, पंजाब लोक कांग्रेस, संयुक्त किसान मोर्चा और शिरोमणि अकाली दल ताल ठोंक रहे हैं. गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड में भी चुनावी घमासान चरम पर है.

assembly elections in five states
सीपीआई एम के महासचिव ने साफ किया है कि उनकी पार्टी का मकसद जीत के बजाय बीजेपी को हराना है.

इन सभी राज्यों के चुनावी हलचल में कॉमन यह है कि इन सभी राज्यों में वामपंथी पार्टियां नेपथ्य में है. सीपीआई (एम) और सीपीआई समेत अन्य वाम दलों के नेता इस चुनाव में कहीं नजर नहीं आ रही हैं. हालांकि उत्तराखंड और गोवा में वाम दल कभी मजबूत नहीं रहे, मगर वह उत्तर प्रदेश, मणिपुर और पंजाब में भी हाशिये पर नजर आ रही है.

assembly elections in five states
उत्तर प्रदेश में जब ट्रेड यूनियनें एक्टिव थीं, तब वाम दलों की पकड़ राजनीति में बनी रही.

उत्तरप्रदेश में 6 वामदलों मार्क्सवादी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक, माले, सीपीआई-एम (CPI-M) और एसयूसीआइ ने 150 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. इन वामदलों ने मिलकर 105 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी है. सीपीआई (एम) के प्रमुख सीताराम येचुरी ने कहा कि उनकी पार्टी राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हराने के लिए समाजवादी पार्टी का समर्थन करेगी. यानी इस चुनाव में भी सीपीआई (एम) और सीपीआई उत्तर प्रदेश में अस्तित्व की लड़ाई ही रहेगी.

ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश में वाम दल हमेशा से हाशिये पर रहे. वर्ष 1957 से 2002 के बीच हुए 13 विधानसभा चुनावों में वामपंथी पार्टियां बेहतर प्रदर्शन करती रहीं. मगर राम मंदिर और आरक्षण आंदोलन के बाद 90 के दशक में अचानक से चुनावी राजनीति में पिछड़ गई. 969 के यूपी विधानसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के 80 और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का एक सीट जीतकर इतिहास रच दिया था. मगर उसका ग्राफ धीरे-धीरे गिरता गया.

assembly elections in five states
सीपीआई के नेशनल सेकेट्री अतुल कुमार अनजान उत्तर प्रदेश में सीनियर लेफ्ट लीडर हैं, मगर उनका जनाधार नहीं है.

2017 के चुनाव में उत्तर प्रदेश चुनाव में पहली बार भाकपा, माकपा और भाकपा (माले) ने विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन किया. तब उनका लक्ष्य जीत नहीं बल्कि जनाधार हासिल करना था. इसके लिए इन दलों ने सौ सीटों पर कम से कम 10 से 15 हजार वोट हासिल करने का लक्ष्य रखा था. सीपीआई ने 2017 में 68 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और उसे कुल एक लाख 38 हजार 764 वोट मिले. यानी, एक सीट पर औसत 2040 वोट ही मिले. माकपा ने इस चुनाव में 26 उम्मीदवारों को को कुल 35 हजार 207 वोट मिले. नोटा के लिए प्रदेश की जनता ने 7 लाख 57 हजार 643 वोट दिए, जो वाम दलों के मिले कुल वोट का छह गुना था. इस चुनाव में वाम दलों के एक भी उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा पाए.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जब तक राज्यों में ट्रेड यूनियन की राजनीति होती रही, तब तक वाम दल भी चुनावी राजनीति में आगे दिखे. उत्तर प्रदेश के कानपुर, बनारस और बुंदेलखंड इलाकों में मजबूत रहे वाम दलों के पास अब व्यापक जन समर्थन नहीं बचा है. इसका कारण है कि जनसमस्याओं पर जन आंदोलनों में कमी आई है.

assembly elections in five states
1984 के बाद से पंजाब में वाम दलों की तरफ लोगों का रुझान कम हो गया.

पंजाब में भी एक सीट के लिए तरस रहे हैं वामपंथी दल

20 साल से पंजाब में एक सीट के लिए तरस रहे वाम दलों ने इस बार संयुक्त समाज मोर्चा (SSM) के साथ गठबंधन किया है. मगर इनका यह गठबंधन भी मुश्किल में फंसता नजर आ रहा है. सीपीआई और सीपीआई (ML) लिबरेशन ने SSM के चुनाव चिन्ह पर लड़ने से इनकार कर दिया है. इनका कहना है कि वाम दलों के उम्मीदवार पार्टी के सिंबल पर चुनाव में उतरेंगे. इसके बाद सीपीआई ने 21 सीटों पर कैंडिडेट उतारने की घोषणा कर दी.

assembly elections in five states
पंजाब में लेफ्ट पार्टियों का चुनावी हाल.

1957 में वाम दल का वोट प्रतिशत 13.56 फीसदी था, जबकि उन्हें छह सीटों पर जीत मिली थी. 1977 में सीपीआई ने 18 में से सात सीटें जीती थीं और सीपीएम ने आठ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से उन्हें सभी सीटों पर जीत मिली थी. यह उनका गोल्डेन फेज था. 1980 के असेंबली इलेक्शन में सीपीआई को नौ और सीपीआई (M) को पांच सीटें मिली थीं. मगर ऑपरेशन ब्लूस्टार और दिल्ली में सिखों के खिलाफ दंगों के बाद वाम दलों का भारी नुकसान हुआ. उसके बाद हुए चुनाव में उसे सिर्फ एक सीट मिली. 2007 से उन्हें एक भी सीट नहीं मिली. यानी 20 साल से वहां वाम दलों का एक भी विधायक नहीं जीता. पिछले विधानसभा चुनाव 2017 में सीपीआई का वोट प्रतिशत 0.22 फीसदी और सीपीएम का वोट प्रतिशत 0.07 फीसदी था.

assembly elections in five states
मणिपुर विधानसभा चुनावों में सीपीआई या किसी लेफ्ट पार्टी को 2007 में आखिरी बार 4 सीटों पर जीत मिली थी.

15 साल से मणिपुर में भी नहीं खुला वाम दलों का खाता

मणिपुर में सीपीआई और सीपीआई (एम) चुनाव लड़ती रही है मगर कांग्रेस के अखंड दौर और क्षेत्रीय दलों के बीच घमासान के कारण बड़ी ताकत नहीं बन पाई. 1990 के विधानसभा चुनाव में सीपीआई ने 3 सीटें जीती थीं. तब बीजेपी के खाते में जीरो सीटें थीं. 1984 में उसने एक सीट पर कब्जा किया था. 1995 में उसने 5 सीटें जीतीं थीं, तब बीजेपी का एक सीट से खाता खुला था. 2000 में वाम दल शून्य पर पहुंच गए और मणिपुर में भाजपा ने 6 सीटें जीतीं. इस दौर में भी वहां कांग्रेस और मणिपुर कांग्रेस का राज रहा. 2002 में सीपीआई ने 5 सीटें जीतकर लंबी छलांग लगाई थी. 2007 में सीपीआई ने 4 सीटें जीती थी. इसके बाद से किसी भी चुनाव में वाम दलों का मणिपुर में खाता नहीं खुला.

पढ़ें : क्या पंजाब विधानसभा चुनाव में बनेगा दलित वोटरों का वोट बैंक ?

Last Updated :Feb 2, 2022, 4:31 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.