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हमारे सामने एआई के नैतिक इस्तेमाल को लेकर मौलिक प्रश्न हैं: प्रधान न्यायाधीश

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By PTI

Published : Nov 25, 2023, 8:01 PM IST

Chief Justice of India D Y Chandrachud
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़

36वें 'द लॉ एसोसिएशन फॉर एशिया एंड द पैसिफिक' (LAWASIA) सम्मेलन में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कृत्रिम मेधा (एआई) युग में हमारे सारे टेक्नॉलाजी के नैतिक प्रयोग को लेकर मौलिक प्रश्न हैं. पढ़िए पूरी खबर... Chief Justice of India D Y Chandrachud, 36th LAWASIA conference

बेंगलुरु : प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि किसी व्यक्ति की पहचान और सरकार द्वारा इसे दी गई मान्यता उसे मिलने वाले संसाधनों और शिकायतें करने एवं अपने अधिकारों की मांग करने की उसकी क्षमताओं में अहम भूमिका निभाती है. उन्होंने साथ ही कहा कि कृत्रिम मेधा के युग में 'हमारे सामने इन प्रौद्योगिकियों के नैतिक इस्तेमाल को लेकर मौलिक प्रश्न हैं.' न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने 36वें 'द लॉ एसोसिएशन फॉर एशिया एंड द पैसिफिक' (LAWASIA) सम्मेलन के पूर्ण सत्र को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए 'पहचान, व्यक्ति और सरकार - स्वतंत्रता के नए रास्ते' विषय पर बात की.

एलएडब्ल्यूएएसआईए वकीलों, न्यायाधीशों, न्यायविदों और कानूनी संगठनों का एक क्षेत्रीय संघ है, जो एशिया प्रशांत कानूनी प्रगति के हितों और चिंताओं की वकालत करता है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आजादी स्वयं के लिए निर्णय लेने और अपने जीवन की दिशा बदलने की क्षमता देती है. उन्होंने कहा, 'जबकि सरकार और स्वतंत्रता के बीच संबंध को व्यापक रूप से समझा गया है, लेकिन पहचान और स्वतंत्रता के बीच संबंध स्थापित करने और समझाने का कार्य अभी अधूरा है.'

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि स्वतंत्रता को परंपरागत रूप से किसी व्यक्ति के चयन करने के अधिकार में सरकार का हस्तक्षेप नहीं करने के तौर पर समझा जाता है, लेकिन समकालीन विद्वान इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सामाजिक पूर्वाग्रहों और पदानुक्रमों को बनाए रखने में सरकार की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा, 'वास्तव में, चाहे सरकार हस्तक्षेप न करे, लेकिन वह सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत समुदायों को उन समुदायों पर प्रभुत्व स्थापित करने की स्वत: अनुमति दे देती है जो ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहे हैं.'

प्रधान न्यायाधीश ने यह भी कहा कि जो लोग अपनी जाति, नस्ल, धर्म या लिंग के कारण हाशिए पर हैं, उन्हें पारंपरिक, उदारवादी व्यवस्था में हमेशा उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा और यह सामाजिक रूप से प्रभुत्वशाली लोगों को सशक्त बनाता है. उन्होंने इस बारे में भी बात की कि कैसे डिजिटल युग में 'हम कृत्रिम मेधा (एआई) से जुड़े कई आकर्षक पहलुओं का सामना कर रहे हैं.' न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, 'हमारे सामने इन प्रौद्योगिकियों के नैतिक इस्तेमाल को लेकर मौलिक प्रश्न हैं.'

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